लखनऊ। मैं लखनऊ विश्वविद्यालय हूं...। वही लखनऊ विश्वविद्यालय जिसकी नींव एक मई 1864 में अंग्रेजी शासनकाल में कैनिंग कॉलेज के रूप में पड़ी और 25 नवंबर 1920 में मैंने विश्वविद्यालय का रूप ले लिया। नवाबों की नगरी में इल्म की रोशनी फैलाने का मंसूबा लेकर शुरू हुआ सफर आज रफ्ता-रफ्ता 102 साल का हो गया है।
मैं आपको बताना चाहता हूं कि बदलते वक्त के साथ मैंने न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे। यहीं से अपने छात्रों को अफसर, वकील, जज, इंजीनियर, खिलाड़ी, वैज्ञानिक, शिक्षाविद् और राजनेता बनते देखा। हर क्षेत्र में मेरे छात्रों ने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मेरा नाम रोशन किया। 1921 में मेरे जन्म की शुरुआत में सिर्फदो कॉलेज आईटी गर्ल्स कॉलेज व केजीएमसी थे। यह कारवां बढ़ता गया और राजधानी में 175 से अधिक कॉलेजों के साथ पिछले साल चार जिलों सीतापुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई व सीतापुर के भी कॉलेज जुड़ गए। इसके साथ ही संबद्ध कॉलेजों की संख्या आज 550 के करीब पहुंच गई है। वहीं हाल ही में नैक में ए प्लस प्लस ग्रेडिंग के बाद अब मैं अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाने के लिए कवायद शुरू कर चुका है।
मुझे इस बात का फख्र है कि आज लखनऊ विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों को मिलाकर मेरे पास सवा लाख छात्र-छात्राएं हैं। अभी ये कारवां और भी आगे बढ़ेगा। अभी बहुत सी नई उपलब्धियां जुड़ेंगी। लाखों छात्र जुड़ते रहेंगे। बीती पीढ़ियों को मुझ पर गर्व है तो आने वाली नई पौध का मैं हमेशा खुले दिल से स्वागत करता रहूंगा। छात्रों के भविष्य को संवारने की मेरी कोशिश आगे भी जारी रहेगी...। अपने जन्मदिन पर साहिर लुधियानवी की दो पंक्तियां आपको सौंपता हूं...
रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होतीं।
वक्त का पहिया चलता है, मियादें खत्म नहीं होतीं।