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उत्तर प्रदेश में आयुर्वेदिक एवं यूनानी डॉक्टरों के जिंदा होने का सुबूत चिट्ठी देती है। यदि डॉक्टर की उम्र 70 साल से अधिक है तो उन्हें दोबारा चिट्ठी नहीं भेजी जाती। पहली चिट्ठी का जवाब नहीं आने पर ही उन्हें मृत मान लिया जाता है। प्रदेश के आयुर्वेद एवं यूनानी तिब्बी चिकित्सा पद्धति बोर्ड में अभी तक यही दस्तूर जारी है।
आयुर्वेद, यूनानी एवं तिब्बी चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों को पंजीकृत करने के लिए 1925 में बनी समिति को 1926 में भारतीय चिकित्सा बोर्ड का दर्जा दिया गया। यूपी इंडियन मेडिसिन एक्ट-1939 एक अक्टूबर 1946 को लागू हुआ और एक मार्च 1947 को प्रदेश में पहला बोर्ड गठित हुआ। अब हर पांच साल में होने वाले बोर्ड के चुनाव में पंजीकृत डॉक्टर (हकीम एवं वैद्य) मतदान करते हैं।
इसके लिए बोर्ड की ओर से उनके नाम चिट्ठी भेजी जाती है। जिन चिट्ठियों के जवाब नहीं आते और उनकी उम्र 70 साल से अधिक है, उन्हें मृत मान लिया जाता है। कम उम्र वालों को दोबारा चिट्ठी भेजी जाती है, यदि जवाब नहीं आया तो उन्हें भी मृत मानकर पंजीकृत सूची से नाम हटा दिया जाता है। सालभर पहले करीब ऐसे ही 10 हजार नाम हटाए गए हैं। इस समय प्रदेश में 42 हजार 372 आयुर्वेदिक एवं 16 हजार 306 यूनानी विधा के डॉक्टर पंजीकृत हैं।
अनुभव वाले भी हटाए गए
पहले अनुभव के आधार पर बिना डिग्री के भी हकीम एवं वैद्य का पंजीयन किया जाता था। इन्हें मरीज देखने की छूट थी, लेकिन अब ऐसे पंजीकरण नहीं किए जाते हैं। बिना अनुभव पंजीयन कराने वाले करीब 35 हजार से अधिक नाम सूची से हटाए गए हैं। बोर्ड के रजिस्ट्रार डॉ. अखिलेश कुमार वर्मा ने बताया कि अब ऑनलाइन व्यवस्था की जा रही है। अन्य बोर्ड की तरह यहां भी हर दो साल में पंजीयन नवीनीकरण की व्यवस्था की जाएगी।
होम्योपैथिक में ऑनलाइन व्यवस्था
1952 में गठित होम्योपैथिक मेडिसिन बोर्ड में करीब 40 हजार से अधिक चिकित्सक (बीएचएमएस) पंजीकृत हैं। यहां से होम्योपैथिक डॉक्टरों को प्रमाण और परिचय पत्र जारी किया जाता है। इसका हर पांच साल में नवीनीकरण किया जाता है। नवीनीकरण न कराने वालों को नोटिस भेजा जाता है। जवाब नहीं देने वालों को मृत मान लिया जाता है।
एलोपैथ में हटाने की व्यवस्था नहीं
उत्तर प्रदेश मेडिकल फैकल्टी बोर्ड में 14 मई 1918 से एमबीबीएस करने के बाद डॉक्टरों का पंजीयन चल रहा है। अब तक एक लाख तीन हजार पांच सौ 61 डॉक्टर पंजीयन करा चुके हैं। बोर्ड से नाम हटाने की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि किसी डॉक्टर ने दिल्ली में प्रैक्टिस शुरू की तो उसे दिल्ली में पंजीयन कराना होगा, लेकिन यूपी में उसका पंजीयन चलता रहेगा।