सूर्य का तुला राशि में प्रवेश करने को 'तुला संक्रांति' कहते हैं। इस संक्रांति को खास तौर पर उड़ीसा और कर्नाटक में मनाया जाता है। इस दिन का काफी महत्व है। सूर्य कन्या राशि को छोड़कर अब तुला राशि में आ रहे हैं। पंचांग के अनुसार तुला राशि में सूर्य का गोचर 17 अक्टूबर 2021 को दोपहर 1:00 बजे होगा. सूर्य उत्तरी से दक्षिणी गोलार्द्ध में चला जाता है। इस बार 17 अक्टूबर से 16 नवंबर तक सूर्य तुला राशि में रहेगा। तुला संक्रांति के दिन तीर्थ स्नान, दान और सूर्य की पूजा करने से याचक की उम्र और आजीविका दोनों में सकारात्मक वृद्धि होती है. ऐसे में तुला संक्रांति पर पूजा के विशेष लाभ हैं। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक ऋग्वेद सहित पद्म, स्कंद और विष्णु पुराण के साथ महाभारत में सूर्य पूजा का महत्व का उल्लेख है। राशि परिवर्तन के समय सूर्य पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इस दिन महालक्ष्मी की विशेष रूप से स्तुति करनी चाहिए, ऐसा करने से इंसान को कभी भी धन की कमी नहीं होती है, उसे हमेशा पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं तुला संक्रांति की कथा और पूजा विधि।
तुला संक्रांति की कथा
प्राचीन भारतीय साहित्य स्कंद पुराण में कावेरी नदी की उत्पत्ति से संबंधित कई कहानियां शामिल है। इसमें से एक कहानी विष्णु माया नामक एक लड़की के बारे में है। जो भगवान ब्रह्मा की बेटी थी जो कि बाद में कावेरा मुनि की बेटी बन गई थी। कावेरा मुनि ने ही विष्णु माया को कावेरी नाम दिया था। अगस्त्य मुनि को कावेरी से प्रेम हो गया और उन्होंने उससे विवाह कर लिया था। एक दिन अगस्त्य मुनि अपने कामों में इतने व्यस्त थे कि वे अपनी पत्नी कावेरी से मिलना भूल जाते हैं। उनकी लापरवाही के कारण, कावेरी अगस्त्य मुनि के स्नान क्षेत्र में गिर जाती है और कावेरी नदी के रूप में भूमि पर उद्धृत होती हैं। तभी से इस दिन को कावेरी संक्रमण या फिर तुला संक्रांति के रूप में जाना जाता है।
तुला संक्रांति की पूजा विधि
- तुला संक्रांति के दिन देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती का पूजन करें।
- इस दिन देवी लक्ष्मी को ताजे चावल अनाज, गेहूं के अनाजों और कराई पौधों की शाखाओं के साथ भोग लगायें।
- देवी पार्वती को सुपारी के पत्ते, चंदन के लेप के साथ भोग लगायें।
तुला संक्रांति का पर्व अकाल तथा सूखे को कम करने के लिए मनाया जाता है, ताकि फसल अच्छी हो और किसानों को अधिक से अधिक कमाई करने का लाभ प्राप्त हो। कर्नाटक में नारियल को एक रेशम के कपड़े से ढका जाता है और देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व मालाओं से सजाया जाता है। उड़ीसा में एक और अनुष्ठान चावल, गेहूं और दालों की उपज को मापना है ताकि कोई कमी ना हो।