शहीद स्थल जलियांवाला बाग कोरोना और सौंदर्यीकरण के कारण पिछले डेढ़ साल से जनता के लिए बंद था। शनिवार को इसे खोला जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक वर्चुअल कार्यक्रम से इसका उद्घाटन करेंगे। पंजाब सरकार ने 20 करोड़ रुपये खर्च जलियांवाला बाग को संवारा है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने जलियांवाला बाग के शताब्दी वर्ष 13 अप्रैल 2019 को आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान शहीद स्थली के सौंदर्यीकरण का नींव पत्थर रखा था। 20 करोड़ रुपये से जलियांवाला बाग के मुख्य प्रवेश द्वार, ऐतिहासिक कुएं के साथ-साथ गैलरी, शहीद लाट और गलियारा को एक नया रूप दिया गया। जलियांवाला बाग के सौंदर्यीकरण का काम कई महीने पहले पूरा हो चुका था, लेकिन अब इसे खोला जाएगा। बीते वर्ष के दौरान भी केंद्र ने जलियांवाला बाग को खोलने के लिए कई बार तारीखों की घोषणा की, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। अब लोग दोबारा शहीदों की स्थली को देख सकेंगे और शहादत को नमन कर सकेंगे। जानिए जलियांवाला बाग का इतिहास...
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने नरसंहार की घटना को अंजाम दिया था। उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का सभा आयोजित कर लोग विरोध कर रहे थे। शहर में कर्फ्यू लगा था। कर्फ्यू के बीच हजारों की संख्या में लोग सभा स्थल पहुंच गए। इनमें वह लोग भी शामिल थे जो बैसाखी पर परिवार के साथ मेला देखने आए थे। लेकिन जानकारी मिलने पर जलियांवाला बाग पहुंच गए थे।
जलियांवाला बाग में लोगों की संख्या का अंदाजा होते ही ब्रिटिश हुकूमत बौखला गई थी। यहां लगभग पांच हजार लोग मौजूद थे। ब्रिटिश हुकूमत इसे 1857 की क्रांति की पुनरावृत्ति मान रही थी। इसे कुचलने के लिए ही क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं गई थीं।
बाग में जब नेता भाषण दे रहे थे तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां आया और सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरु कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था।
ऐसे में कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1000 से अधिक लोग शहीद हुए और 2000 से अधिक घायल हुए। इस हत्याकांड को 102 साल हो गए हैं। ब्रिटिश सरकार ने इस नरसंहार के 100 साल बाद गहरा अफसोस व्यक्त किया था। मगर इस क्रूर घटना के जख्म इतने गहरे हैं कि जलियांवाला बाग की प्राचीर में आज भी मौजूद हैं।