कभी आत्महत्या का ख्याल तो कभी हाउस लोन का दबाव, कभी घर की तंगहाली तो कभी मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, इसके बावजूद इन सबसे उबरते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में छाप छोड़ जाना। ऐसा शायद सुरेश रैना ही कर सकते थे और उन्होंने इसे किया भी। धोनी के साथ ही इसी साल 15 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने वाले रैना आज 34 साल के हो गए और परिवार के साथ मालदीव में समय बिता रहे हैं।
टीम इंडिया के पूर्व ऑलराउंडर सुरेश रैना ने क्रिकेट में ऊंचाइयों को छुआ और वो सबकुछ हासिल किया जो एक क्रिकेटर का सपना होता है। उन्होंने रिकॉर्ड बुक में कई कीर्तिमान बनाए तो बल्लेबाजी, फील्डिंग से लेकर गेंदबाजी तक, क्रिकेट के हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया।
बात करें रैना की निजी जिंदगी की तो उन्होंने कई सारी दिक्कतों का सामना किया, उनके पिता त्रिलोकचंद रैना कश्मीरी और मां हिमाचली थी, मगर उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में हुआ। पिता सेना में कार्यरत थे और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बम बनाने का काम करते थे लेकिन बड़ा परिवार और कम आमदनी होने की वजह से सुरेश के लिए अपने सपनों को पूरा करना आसान नहीं था। इस वजह से उन्होंने लखनऊ जाने का फैसला किया और वहीं पर हॉस्टल में रहकर अपनी पढाई और खेल की शुरुआत की। हालांकि ये सब उनके लिए इतना आसान नहीं था। सीनियरों द्वारा प्रताड़ना और तमाम दिक्कतों के बीच वो जिंदगी से हारने लगे थे और एक समय आत्महत्या का मन बना लिया था।
रैना को हॉस्टल में सीनियर द्वारा अमानवीयता की हद तक परेशान किया गया और इससे तंग आकर उन्होंने आत्महत्या तक करने की ठान ली थी। रैना ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, 'शुरुआती दिनों में जब वह ट्रेन के फर्श पर न्यूज पेपर बिछाकर सोते हुए मैच खेलने के लिए जा रहे थे तो उन्हें अपनी छाती पर वजन सा महसूस हुआ। इससे पहले की वह अपनी आंखें खोल पाते उनके हाथों को नीचे दबा दिया गया। जब आंखें खोलकर उन्होंने देखा तो एक बड़ा लड़का उनकी छाती पर बैठा था। इसके बाद उस लड़के ने रैना के चेहरे पर पेशाब कर दिया।'
लड़के हॉस्टल में सुरेश रैना के साथ काफी निर्दयी व्यवहार करते थे। रैना के साथ इस तरह का व्यवाहर करने वाले लड़के ज्यादातर एथलेटिक्स ब्रांच के थे और वह क्रिकेट कोचों की रैना को मिलती तवज्जो के कारण जलते थे। रैना के मुताबिक, 'कुछ लड़के दूध की डोल्ची में गंदगी वगैराह डाल देते थे, हम इसे छन्नी की मदद से साफ किया करते। सर्दियों की कड़कड़ाती रात में भी सुबह तीन बजे दूध की डोल्ची बिखेर देते थे।