उत्तराखंड वन विभाग में फील्ड स्टाफ को डंडे से ही आदमखोर को मारने की ट्रेनिंग मिलती है। चौंकिए नहीं, जो हालात हैं, वह इसी तरफ इशारा करते हैं। सीधे आदमखोर से लेकर शिकारी और तस्करों से भिड़ने वाले वनरक्षक, वन दरोगा को हथियार चलाने का प्रशिक्षण ही नहीं मिलता है।
असलहा ट्रेनिंग उनके कोर्स का हिस्सा नहीं है। वन विभाग के फील्ड स्टाफ में वनरक्षक (बीट इंचार्ज) वन दरोगा (सेक्शन इंचार्ज) का सबसे अहम रोल होता है। इनके ऊपर जंगल के तिनके-तिनके का हिसाब रखने से लेकर सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है लेकिन, इन दोनों कैडर के कर्मियों का प्रशिक्षण सत्र होता है, उसमें हथियारों की ट्रेनिंग का हिस्सा नहीं होता।
हथियार चलाने का प्रशिक्षण रेंजर (वन क्षेत्राधिकारी) स्तर से मिलना शुरू होता है। ऐसे में वनकर्मियों को आदमखोर से लेकर शिकारी तक निपटने के लिए हथियार के नाम पर केवल डंडा मिलता है। स्थिति यह है कि वन विभाग में कई लोग सम सामयिक कर्मकार से वनरक्षक बने हैं, इनको तो नियमित प्रशिक्षण भी नहीं मिला है।
वह अनुभव के आधार पर ही काम कर रहे हैं। अभी तक छिटपुट तरीके से वनरक्षक की तैनाती के बाद डीएफओ स्तर से ही सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से हथियार का प्रशिक्षण दिलाने का प्रयास किया जाता रहा है। पश्चिमी वृत्त वन संरक्षक डा. पराग मधुकर धकाते कहते हैं कि अब प्रभाग स्तर पर चयनित वन कर्मियों को ट्रंकोलाइजर गन और वन रक्षक, वन दरोगा को असलहा चलाने का प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।
अभी रेंजर को उनके प्रशिक्षण सत्र में हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन जो चुनौतियां है, उसमें वन रक्षक, वन दरोगा को भी कोर्स के दौरान ही हथियार ही चलाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। प्रयास किया जा रहा है कि यह भी उनके कोर्स में शामिल किया जाए। ट्रेनिंग में अन्य बिंदुओं को भी जोड़ा जाएगा।
- डा. कपिल जोशी, निदेशक फारेस्ट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट