मुंडका की आग से ज्यादा तकलीफदेह है भूखे बच्चों के पेट की आग। भीषण आग से बच गईं महिलाओं के हालात इसके गवाह हैं। इन महिलाओं के पास हादसे का शोक मनाने का भी वक्त नहीं है। इन्हें अपनी आजीविका और भविष्य को लेकर चिंता सता रही है।
ममता (45 साल) की आंखों में आग का वह भयानक मंजर आज भी तैर रहा है। उनके कानों में उनके साथ काम करने वाले उन तमाम सहयोगियों की चीखें सुनाई दे रही हैं, जो धुएं में फंसकर अपनी जान बचाने के लिए आखिर तक चिल्लाते रहे। लेकिन वह बिल्डिंग से बाहर नहीं निकल पाए और आज हमारे बीच में नहीं हैं। उनकी दोस्त गीता भी उनके बगल में ही खड़ी थी, उसे भी रस्सी पकड़कर नीचे कूदने के लिए बार-बार कहा। लेकिन वह डर गई और बिल्डिंग से नहीं कूद पाई।
ममता (45 साल) की आंखों में आग का वह भयानक मंजर आज भी तैर रहा है। उनके कानों में उनके साथ काम करने वाले उन तमाम सहयोगियों की चीखें सुनाई दे रही हैं, जो धुएं में फंसकर अपनी जान बचाने के लिए आखिर तक चिल्लाते रहे। लेकिन वह बिल्डिंग से बाहर नहीं निकल पाए और आज हमारे बीच में नहीं हैं। उनकी दोस्त गीता भी उनके बगल में ही खड़ी थी, उसे भी रस्सी पकड़कर नीचे कूदने के लिए बार-बार कहा। लेकिन वह डर गई और बिल्डिंग से नहीं कूद पाई।