साल 1993 एक मायने में हिंदी सिनेमा के लिए मील के तमाम पत्थर पार करने वाला साल रहा। बाइस्कोप में आज हम ऋषि कपूर की आज ही के दिन रिलीज हुई फिल्म दामिनी की तो चर्चा करेंगे ही और ये भी बताएंगे कि आखिर इतनी दमदार फिल्म होने के बावजूद फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ऑस्कर पुरस्कारों के लिए इसे भारतीय प्रतिनिधि फिल्म बनाकर क्यों नहीं भेजा? लेकिन, उससे पहले आपको बता देते हैं साल 1993 की उन अंगड़ाइयों के बारे में जिनके बारे में सालों साल तक चर्चाएं होती रहीं।
जैसे फिल्म दामिनी में सनी देओल के बोले संवाद तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख और ढाई किलो के हाथ को लोग अब भी नहीं भूले हैं, वैसे ही लोग नहीं भूले हैं साल 1993 में रिलीज हुई सलमान खान की फ्लॉप फिल्म चंद्रमुखी को जिसकी कहानी खुद सलमान ने लिखी थी। आमिर ने इस साल दामिनी में तो स्पेशल अपीयरेंस किया ही, उनकी इस साल रिलीज हुई फिल्म हम हैं राही प्यार के भी हिट रही। लेकिन, सुपर हिट फिल्मों के मामले में ये साल रहा था शाहरुख खान का क्योंकि साल 1993 में ही रिलीज हुई थी शाहरुख खान की दो डरा देने वाली फिल्में, डर और बाजीगर। दोनों फिल्मों में वह विलेन बने। इसके अलावा शाहरुख इस साल माया मेमसाब और किंग अंकल से भी तारीफें बटोरने में कामयाब रहे।
फिल्म दामिनी देखा जाए तो एक तरह से कंटेंट ड्रिवेन सिनेमा की तरफ हिंदी सिनेमा की पहली ठोस शुरूआत उस दौर में हो रही थी, जिस दौर में डेविड धवन लाल दुपट्टे वाली को छेड़कर उसका नाम पूछने के लिए गोविंदा और चंकी पांडे को मैदान में उतार चुके थे। ऋषि कपूर को जमाने का बदलता चलन समझ आ रहा था और वह अपनी फिल्मों के साथ लगातार प्रयोग भी कर रहे थे। साल 1993 में ऋषि कपूर की चार फिल्में रिलीज हुईं। इनमें दामिनी के अलावा शामिल रहीं अनमोल, धरतीपुत्र और गुरुदेव। गुरुदेव के निर्देशक थे विनोद मेहरा। जी हां, अभिनेता विनोद मेहरा, जिन्होंने राजेश खन्ना वाले कंपटीशन में दूसरा स्थान पाया था। गुरुदेव की कहानी बहुत दिलचस्प है, इसे विस्तार से फिर कभी। अभी के लिए इतना जान लीजिए कि इस फिल्म को बनकर रिलीज होने में करीब 10 साल लग गए थे और ये रिलीज हो पाई थी विनोद मेहरा के निधन के बाद, निर्देशक राज सिप्पी की मदद से।
दामिनी निर्देशक राजकुमार संतोषी की रिलीज हुई दूसरी फिल्म है। फिल्म अर्ध सत्य और विजेता में गोविंद निहलानी के असिस्टेंट रहे संतोषी इसके पहले वह घायल बना चुके थे और उनके तेवर ऐसे थे कि किसी को वह कुछ समझते नहीं थे। सनी देओल उनकी फिल्म के लिए हां कर चुके थे, हीरोइन के लिए वह मीनाक्षी शेषाद्रि को साइन कर चुके थे। लेकिन तमाम कोशिशें करके भी संतोषी की शेषाद्रि से वैसी ट्यूनिंग नहीं हो पा रही थी जैसी वह चाहते थे और सनी देओल का भी बड़ा मन था कि फिल्म में डिंपल कपाड़िया को ले लिया जाए। लेकिन, ऋषि कपूर अड़ गए कि हीरोइन बदली गई तो वह फिल्म छोड़ देंगे। करीम मोरानी और अली मोरानी फिल्म के प्रोड्यूसर थे, उनका भी ठीक ठाक बंबई से लेकर दुबई और लंदन तक रुतबा बन रहा था, उन्होंने संतोषी को एक दिन बिठाकर समझाया और कायदे से समझाया। उसके बाद फिल्म खत्म होने तक संतोषी ने चूं तक नहीं की।
दिलचस्प बात ये है कि इसी साल डिंपल कपाड़िया ने निर्देशक कल्पना लाजिमी की फिल्म रुदाली में टाइटल रोल किया और उनकी ये फिल्म भारत की तरफ से आधिकारिक एंट्री बनकर ऑस्कर तक जा पहुंची। और, फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दामिनी को यह कहकर रोक लिया कि इसकी कहानी ओरीजनल नहीं है। बहुत बाद में पता चला कि दामिनी की कहानी अमेरिका में वाकई हुए एक रेप केस पर आधारित है, इस केस पर वहां 1985 में एक फिल्म साइलेंट विटनेस बन चुकी थी। जो कुछ भी हो ये फिल्म सनी देओल को मिले नेशनल अवार्ड और उनकी डॉयलॉगबाजी के लिए तो लोगों को खूब याद रही लेकिन फिल्म में मीनाक्षी शेषाद्रि के काबिले तारीफ अभिनय को भुला दिया गया। एक तरह से देखा जाए तो ये फिल्म नरगिस की मदर इंडिया के टक्कर की फिल्म रही। मदर इंडिया में राधा अपने बेटे को गांव की लाज बचाने के लिए कुर्बान कर देती है। दामिनी अपने घर में हुए अपराध का सच सामने लाने के लिए पूरे परिवार को दांव पर लगा देती है, पति समेत।