‘मैं तो कहता हूं आप पुरुष ही नहीं हैं, (सामने वाले के चौंकने के बाद)..महापुरुष हैं, महापुरुष!’
‘ये तेजा तेजा क्या है, ये तेजा तेजा’
‘तेजा मैं हूं, मार्क इधर है’
‘गलती से मिस्टेक हो गया’
‘जो जीता वो सिकंदर, जो हारा वो बंदर’
‘जब जब तू खुश हुआ है, मैं बर्बाद हुआ हूं’
‘आइ ला, जूही चावला’
‘आया हूं, कुछ तो लेके जाऊंगा, खानदानी चोर हूं मैं’
‘क्राइम मास्टर गोगो नाम है मेरा, आंखें निकाल के गोटियां खेलता हूं...’
किसी फिल्म के एक से बढ़कर एक ऐसे संवाद हिंदी सिनेमा में बहुत कम फिल्मों के ही लोकप्रिय हुए हैं। ये ऐसे संवाद हैं जो न सिर्फ लोकप्रिय हुए बल्कि लोगों की बोलचाल में भी इनका शुमार हुआ और ये लोकभाषा का हिस्सा बन गए। निर्देशक राज कुमार संतोषी को इस फिल्म की टीम लीड करने का मौका मिला। निर्माता विनय सिन्हा की किस्मत से ये संयोग बना और फिल्म बनाने में भी तमाम ग्रह दशाओं ने अपना अपना काम किया। फिल्म है, ‘अंदाज अपना अपना’ और ये रिलीज हुई थी 4 नवंबर 1994 को। पिछले साल फिल्म ने अपनी रिलीज के 25 साल पूरे किए। इसी साल जनवरी में इसके निर्माता इसे नए सिरे से बनाने का ख्वाब लिए भगवान के पास चले गए। उनकी बेटी प्रीति पिछले कई साल से इस फिल्म की सीक्वेल, रीबूट की खबरों से दो दो हाथ करती रही हैं।
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फिल्म ‘अंदाज अपना अपना’ के बनने में इसके निर्माता विनय सिन्हा का सबसे बड़ा हाथ रहा। आमिर के घर उनका आना जाना था और उनके पिता के ताहिर हुसैन के दफ्तर भी वह आते जाते ही रहते थे। विनय सिन्हा के भाई उन दिनों आमिर के साथ थे। विनय को एक ख्याल आया आमिर को लेकर एक कॉमेडी फिल्म बनाने का। ये बात है साल 1991 की। आमिर की नौ फिल्में तब तक रिलीज हो चुकी थीं। दो हिट और सात फ्लॉप का स्कोर था और ताहिर हुसैन को भी लगा कि बेटे के लिए कोई तो विषय ऐसा होना चाहिए जो उनके बेटे को रोमांटिक हीरो की छवि से आगे लेकर जाए। ताहिर हुसैन ने ये बात अपने भाई नासिर हुसैन से साझा की तो उन्हें ये ख्याल अच्छा लगा। उन्होंने विनय सिन्हा से कहा, ‘आइडिया अच्छा है, बात आगे बढ़ाते हैं।’ आमिर की रजामंदी हासिल हुई तो बात सलमान तक पहुंची। और, तब तक सलमान खान का स्कोर कार्ड भी चार-पांच फिल्म तक ही पहुंचा था और उनके खाते में तब तक बस ‘मैंने प्यार किया’ की कामयाबी ही दर्ज हो पाई थी। दोनों कुछ अलग करना चाहते थे। दोनों कुछ बड़ा करना चाहते थे और इस ट्यूनिंग ने ही दोनों को पहली बार एक साथ (और आखिरी बार भी) कैमरे के सामने ला दिया।
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आमिर ने सुझाया संतोषी का नाम
तमाम जगहों पर इस बात का जिक्र मिलता है कि फिल्म ‘अंदाज अपना अपना’ के लिए पहले इसके निर्देशक राजकुमार संतोषी का नाम फाइनल हुआ और फिर उन्होंने ही आमिर खान का नाम इस फिल्म के लिए सुझाया। लेकिन, असलियत ये है कि फिल्म की कहानी का आइडिया लॉक होने के बाद सबसे पहले आमिर खान फिल्म में आए, फिर सलमान और उसके बाद आमिर के कहने पर ही फिल्म के निर्माता विनय सिन्हा ने राजकुमार संतोषी से संपर्क किया। विनय सिन्हा को उस दिन संतोषी सनी सुपर साउंड में मिले। अपनी पत्नी का बनाया खाना लेकर विनय सिन्हा सुबह ही घर से निकल चुके थे। संतोषी ने बुलाया तो दोपहर में वहीं चले गए और घर का बना ये खाना दोनों ने साथ खाया। आमिर और सलमान जैसे दो सितारे जिस निर्देशक को तश्तरी में परोस कर मिल रहे हों, वह भला इंकार कैसे करेगा। तीनों की बात पक्की हो गई। हालांकि, विनय सिन्हा के मन में इससे पहले निर्देशक अजीज सजावल का नाम इस फिल्म के निर्देशन के लिए चल रहा था। फिल्म में हीरोइन के लिए ममता कुलकर्णी और मनीषा कोइराला निर्माता की पहली पसंद थीं। ममता कुलकर्णी तब दूसरे निर्माता के करार से बंधी थीं और मनीषा ने मना कर दिया था। नीलम का नाम भी इस फिल्म के लिए चला। इन चर्चित नामों के अलावा एक नया नाम तनुश्री कौशल का भी फिल्म की कास्टिंग के दौरान सामने आता है लेकिन आखिर में फिल्म की दोनों हीरोइनें बनीं, करिश्मा कपूर और रवीना टंडन।
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एक फिल्म जिसमें आमिर खान, सलमान खान, रवीना टंडन और करिश्मा कपूर जैसे सितारे हों और साथ में दर्जन भर के करीब दमदार दूसरे कलाकार हों तो उसमें सारे किरदारों का संतुलन बनाए रखना आसान नहीं। ऊपर से सलमान का स्वैग, सो अलग। वह अपने हिसाब से सेट पर पहुंचते और आमिर तब तक इंतजार करते करते बोर हो जाते। फिल्म में आमिर को इतना आत्मिक कष्ट हुआ कि इस फिल्म के बाद उन्होंने सलमान के साथ कभी काम न करने का मन बना लिया। उधऱ, करिश्मा और रवीना की कट्टी चल रही थी। ये दोनों भी एक दूसरे से बातें नहीं करती थीं। एक दूसरे से ऑफ स्क्रीन मुंह फुलाए रहने वाले इन कलाकारों ने ऑन स्क्रीन बेहद उम्दा काम किया है। संतोषी के मुताबिक फिल्म की आत्मा उन्होंने मशहूर कॉमिक किरदारों टॉम और जेरी से ली और आमिर का किरदार अमर व सलमान का किरदार प्रेम इन्हीं के हिसाब से गढ़ दिया। इसी साल जनवरी में जब फिल्म के निर्माता विनय सिन्हा का निधन हुआ तो आमिर ने लिखा था कि ‘अंदाज अपना अपना’ भारतीय सिनेमा की सबसे बेहतरीन कॉमेडी फिल्म थी, है, और रहेगी। आमिर का कहना एक तरह से सही भी है, ‘अंदाज अपना अपना’ हिंदी सिनेमा की उन गिनी चुनी फिल्मो में हैं, जिन्हें आप कितनी भी बार देखें, उनका नयापन कभी कम नहीं होता। समय का फिल्म की कहानी पर अब तक असर नहीं हुआ। ‘अंदाज अपना अपना’ हिंदी सिनेमा की उन फिल्मों में भी शामिल है जिन्हें अपनी रिलीज के वक़्त भले दर्शकों से प्यार न मिला हो लेकिन समय के साथ साथ ये फिल्में दर्शकों के दिलो दिमाग पर छाने में कामयाब रहीं।
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फिल्म ‘अंदाज अपना अपना’ दो लफंगों की कहानी है जो किसी भी तरह से बस अमीर हो जाना चाहते हैं। दोनों के निशाने पर है मालदार सेठ की बेटी रवीना। इस सेठ का उसका हमशक्ल भाई अपहरण कर लेता है। मामला तब रोचक मोड़ लेता है जब पता ये चलता है कि जिसे सब रवीना समझ रहे थे, वह तो रवीना है ही नहीं। बल्कि, रवीना की सेक्रेटरी बनकर रहती रही करिश्मा ही असली रवीना है। फिल्म के लेखन में राजकुमार संतोषी ने अपने खास राइटर दिलीप शुक्ला की भी मदद ली। दोनों ने मिलकर दक्षिण की फिल्में मसलन ‘बोम्मालट्टम’ और ‘मझई’ देखीं और तमाम डिसक्शन के बाद ये फिल्म लिख डाली। मार्च 1991 में फिल्म का मुहूर्त शानदार तरीके से हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर आमिर के कहने पर मशहूर खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने शिरकत की। फिल्म की शुरूआत एक क्विकी के तौर पर हुई थी लेकिन फिल्म के लीड कलाकारों के नखरों के चलते इसे पूरा करने में विनय सिन्हा को चार साल लग गए। फिल्म के रिलीज होने के तीन दिन पहले तक सिनेमाघर मालिकों को यकीन नहीं था कि फिल्म रिलीज होगी भी कि नहीं। कहीं किसी तरह का कोई प्रचार नहीं। दर्शकों को फिल्म के बारे में पता नहीं और फिल्म पहुंच गई सिनेमाघरों में। जब तक लोगों को एक दूसरे से फिल्म की कमाल की कॉमेडी के बारे में पता चल पाता, दूसरी फिल्में सिनेमाघरों में पहुंचने लगी। लेकिन, गोविंदा की डबल मीनिंग वाली फिल्मों के दौर में जिस किसी ने भी ये फिल्म देखी, उसने कम से कम 10 लोगों को और ये फिल्म देखने की सलाह जरूर दे डाली।
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