कभी देश की सबसे बड़ी संगीत कंपनी बनाने में कामयाब रहे टी सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार ने 80 के दशक के आखिर में एक प्रयोग किया था, गानों के अलबम निकालने का और गाने हिट हो जाने पर उन्हें एक कहानी में पिरोकर वीएचएस फिल्म बना देने का। ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ और ‘जीना तेरी गली में’ ये प्रयोग सुपरहिट रहा। फिल्म ‘आशिकी’ भी ऐसे ही बनी। इसके सारे गाने रिकॉर्ड हो चुके थे, अलबम बाजार में आ चुका था। निर्देशक महेश भट्ट ने ये गाने सुने तो उन्होंने इन गानों पर भी एक फिल्म बनाने के लिए गुलशन कुमार के सामने जिद की। महेश भट्ट को इंडस्ट्री का सबसे बड़ा ‘कानसेन’ कहा जाता है।
कुछ अपने पिता की विरासत और कुछ देश विदेश के संगीत से उनका लगाव, महेश भट्ट ने हिंदी सिनेमा के संगीत को भी काफी कुछ अपने करियर के सफल दौर के वक्त दिया है। महेश भट्ट ने जब ये गाने सुने थे तो उन्हें अपनी प्रेम कहानी याद आने लगी थी। बस उन्होंने तय किया कि इन गानों को पिरोते हुए ये लव स्टोरी वह खुद लिखेंगे और इसे निर्देशित भी करेंगे।
कुछ अपने पिता की विरासत और कुछ देश विदेश के संगीत से उनका लगाव, महेश भट्ट ने हिंदी सिनेमा के संगीत को भी काफी कुछ अपने करियर के सफल दौर के वक्त दिया है। महेश भट्ट ने जब ये गाने सुने थे तो उन्हें अपनी प्रेम कहानी याद आने लगी थी। बस उन्होंने तय किया कि इन गानों को पिरोते हुए ये लव स्टोरी वह खुद लिखेंगे और इसे निर्देशित भी करेंगे।

‘मैंने प्यार किया’ के बाद ‘आशिकी’
महज 26 साल की उम्र में पहली फिल्म ‘मंजिलें और भी हैं’ निर्देशित करने वाले महेश ने इसके बाद ‘लहू के दो रंग’, ‘अर्थ’, ‘जनम’ और ‘सारांश’ जैसी कई चर्चित फिल्में बनाईं। लेकिन, कमर्शियल सिनेमा में महेश भट्ट को पहली कामयाबी मिली 1990 में 17 अगस्त को रिलीज हुई फिल्म ‘आशिकी’ से। ‘अशिकी’ उस दौर की फिल्म है जब सलमान खान नाम के एक नए लड़के ने एक नई लड़की भाग्यश्री के साथ दोस्ती करके बॉक्स ऑफिस पर हलचल मचा दी थी। किसी को तब इस बात से लेना देना नहीं था कि सलमान खान किसी बड़े राइटर सलीम खान के बेटे हैं या कि वह हिंदी सिनेमा में वंशवाद की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। फिल्म के निर्देशक सूरज बड़जात्या भी फिल्मी परिवार से ही थे। फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई। तब सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का माध्यम हुआ करता था, उसकी अंदरूनी सियासत से लोगों को ज्यादा लेना देना नहीं होता था।
महज 26 साल की उम्र में पहली फिल्म ‘मंजिलें और भी हैं’ निर्देशित करने वाले महेश ने इसके बाद ‘लहू के दो रंग’, ‘अर्थ’, ‘जनम’ और ‘सारांश’ जैसी कई चर्चित फिल्में बनाईं। लेकिन, कमर्शियल सिनेमा में महेश भट्ट को पहली कामयाबी मिली 1990 में 17 अगस्त को रिलीज हुई फिल्म ‘आशिकी’ से। ‘अशिकी’ उस दौर की फिल्म है जब सलमान खान नाम के एक नए लड़के ने एक नई लड़की भाग्यश्री के साथ दोस्ती करके बॉक्स ऑफिस पर हलचल मचा दी थी। किसी को तब इस बात से लेना देना नहीं था कि सलमान खान किसी बड़े राइटर सलीम खान के बेटे हैं या कि वह हिंदी सिनेमा में वंशवाद की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। फिल्म के निर्देशक सूरज बड़जात्या भी फिल्मी परिवार से ही थे। फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई। तब सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का माध्यम हुआ करता था, उसकी अंदरूनी सियासत से लोगों को ज्यादा लेना देना नहीं होता था।

कुमार शानू बने सुपरस्टार
खैर, ‘आशिकी’ बनी, रिलीज हुई। रिलीज हुई तो सारे रिकॉर्ड एक तरफ और आशिकी के बनाए रिकॉर्ड एक तरफ। एक वक्त ऐसा भी आया कि इन कैसेट की बिक्री की तादाद एक करोड़ से ऊपर निकल गई। ‘आशिकी’ का संगीत टी सीरीज का नहीं देश का संगीत हो चुका था। ये उन दिनों की बात है जब तक नदीम श्रवण का गुलशन कुमार से पंगा नहीं हुआ था। दोनों टी सीरीज के लिए लगातार काम भी कर रहे थे। फिल्म ने अगले साल फिल्मफेयर अवार्ड्स में भी तहलका मचाया। बेस्ट म्यूजिक, बेस्ट लिरिसिस्ट, बेस्ट प्लेबैक सिंगर- मेल, बेस्ट प्लेबैक सिंगर – फीमेल, यानी फिल्म संगीत से जुड़ी चारों कैटेगरी के पुरस्कार फिल्म ‘आशिकी’ ने जीत लिए। ये पुरस्कार मिले, नदीम-श्रवण, समीर, कुमार शानू और अनुराधा पौडवाल को। फिल्म ‘आशिकी’ के लिए कुल 12 गाने गुलशन कुमार ने निकालकर एक तरफ रखे थे। हालांकि, इनमें से फिल्म में प्रयोग नौ ही हुए। इनमें से एक गाना उदित नारायण ने और एक गाना नितिन मुकेश ने भी गाया। नितिन मुकेश का नाम फिल्म के एंड क्रेडिट्स में गायक के तौर पर आता है हालांकि उनका गाया गाना फिल्म में नहीं है। नदीम श्रवण उन दिनों पाकिस्तान के गानों से काफी प्रभावित हुआ करते थे, इस फिल्म के एक दो गानों में भी इसकी झलक मिलती है।
खैर, ‘आशिकी’ बनी, रिलीज हुई। रिलीज हुई तो सारे रिकॉर्ड एक तरफ और आशिकी के बनाए रिकॉर्ड एक तरफ। एक वक्त ऐसा भी आया कि इन कैसेट की बिक्री की तादाद एक करोड़ से ऊपर निकल गई। ‘आशिकी’ का संगीत टी सीरीज का नहीं देश का संगीत हो चुका था। ये उन दिनों की बात है जब तक नदीम श्रवण का गुलशन कुमार से पंगा नहीं हुआ था। दोनों टी सीरीज के लिए लगातार काम भी कर रहे थे। फिल्म ने अगले साल फिल्मफेयर अवार्ड्स में भी तहलका मचाया। बेस्ट म्यूजिक, बेस्ट लिरिसिस्ट, बेस्ट प्लेबैक सिंगर- मेल, बेस्ट प्लेबैक सिंगर – फीमेल, यानी फिल्म संगीत से जुड़ी चारों कैटेगरी के पुरस्कार फिल्म ‘आशिकी’ ने जीत लिए। ये पुरस्कार मिले, नदीम-श्रवण, समीर, कुमार शानू और अनुराधा पौडवाल को। फिल्म ‘आशिकी’ के लिए कुल 12 गाने गुलशन कुमार ने निकालकर एक तरफ रखे थे। हालांकि, इनमें से फिल्म में प्रयोग नौ ही हुए। इनमें से एक गाना उदित नारायण ने और एक गाना नितिन मुकेश ने भी गाया। नितिन मुकेश का नाम फिल्म के एंड क्रेडिट्स में गायक के तौर पर आता है हालांकि उनका गाया गाना फिल्म में नहीं है। नदीम श्रवण उन दिनों पाकिस्तान के गानों से काफी प्रभावित हुआ करते थे, इस फिल्म के एक दो गानों में भी इसकी झलक मिलती है।

दीपक तिजोरी ने दिया था आइडिया
महेश भट्ट की फिल्ममेकिंग की खासियत यही रही है कि वह अपनी फिल्मों को अपनी निजी जिंदगी का हिस्सा बनाकर उसे प्रचारित करते रहे हैं। फिल्म ‘आशिकी’ को भी महेश भट्ट अपनी और अपनी पहली पत्नी लॉरेन ब्राइट (किरण भट्ट) की कहानी बताते हैं। फिल्म मे दिखाए गए तमाम सीन भी महेश भट्ट के मुताबिक उनकी असल जिंदगी से प्रेरित रहे हैं। हालांकि, फिल्म में अहम भूमिका निभाने वाले दीपक तिजोरी का ये कहना रहा है कि इस फिल्म का मूल आइडिया उनका सुझाया हुआ है और इसके लिए एक विदेशी फिल्म का वीएचएस कैसेट भी उन्होंने महेश भट्ट को दिया था। दीपक तिजोरी ने तब फिल्म के लीड हीरो का किरदार करने के लिए महेश भट्ट की काफी सेवा की थी। हालांकि, मौका दीपक को फिल्म में सेकेंड लीड का ही मिला फिर भी इस फिल्म ने उनकी किस्मत चमका दी।
महेश भट्ट की फिल्ममेकिंग की खासियत यही रही है कि वह अपनी फिल्मों को अपनी निजी जिंदगी का हिस्सा बनाकर उसे प्रचारित करते रहे हैं। फिल्म ‘आशिकी’ को भी महेश भट्ट अपनी और अपनी पहली पत्नी लॉरेन ब्राइट (किरण भट्ट) की कहानी बताते हैं। फिल्म मे दिखाए गए तमाम सीन भी महेश भट्ट के मुताबिक उनकी असल जिंदगी से प्रेरित रहे हैं। हालांकि, फिल्म में अहम भूमिका निभाने वाले दीपक तिजोरी का ये कहना रहा है कि इस फिल्म का मूल आइडिया उनका सुझाया हुआ है और इसके लिए एक विदेशी फिल्म का वीएचएस कैसेट भी उन्होंने महेश भट्ट को दिया था। दीपक तिजोरी ने तब फिल्म के लीड हीरो का किरदार करने के लिए महेश भट्ट की काफी सेवा की थी। हालांकि, मौका दीपक को फिल्म में सेकेंड लीड का ही मिला फिर भी इस फिल्म ने उनकी किस्मत चमका दी।

यूं किस्मत ने दी राहुल के घर दस्तक
लेकिन, असल मायने में अगर किसी की किस्मत फिल्म ‘आशिकी’ से चमकी थी तो वह रहे राहुल रॉय। उनकी मां से मिलने गए महेश भट्ट बेटे को फिल्म के लिए सेलेक्ट करके लौटे थे। राहुल रॉय की मां इंदिरा उन दिनों यूनीसेफ के लिए काम करती थीं और उनके सामाजिक कार्यों से खुश होकर मशहूर पत्रिका ‘सैवी’ ने उन पर खास स्टोरी की थी। महेश भट्ट इसी बात की बधाई देने उनके घर गए थे और वहां उनकी नजर पड़ गई राहुल रॉय पर। राहुल रॉय के लिए तो ये फीलिंग ऐसी थी कि जैसे कोई उनके लिए आसमान से तारे तोड़ लाया हो। उन्होंने न स्क्रिप्ट पढ़ी न कहानी पूछी, बस फिल्म साइन कर ली। साल भर के अंदर एक साथ पचास फिल्में साइन करने का रिकॉर्ड भी राहुल रॉय ने ‘आशिकी’ रिलीज होने के साथ बनाया था। ये और बात है कि तभी फिल्म निर्माताओं की संस्था ने एक बैठक कर यह नियम बना दिया कि कोई हीरो एक साथ 12 फिल्मों से ज्यादा फिल्में साइन नहीं कर सकता। लिहाजा राहुल को बाकी सारी फिल्मों के साइनिंग अमाउंट वापस करने पड़े। राहुल तब विशेष फिल्म्स के साथ करार में बंधे थे लिहाजा उन्हें महेश भट्ट की अगली फिल्में ‘जानम’ और ‘जुनून’ भी करनी पड़ी। महेश भट्ट ने ‘आशिकी’ में जो कमाया था वह सब इन दोनों फिल्मों में गंवा दिया। राहुल रॉय का उन दिनों क्रेज हुआ करता था, युवाओं ने उनके जैसे बाल भी रखने शुरू कर दिए थे, लेकिन साल भर के भीतर ये सब हवा हो गया। एक खास बात यहां और बताने लायक है, वो ये कि फिल्म ‘आशिकी’ में राहुल रॉय की अपनी आवाज नहीं है। पहले इस काम के लिए भट्ट ब्रदर्स ने सचिन को साइन किया था लेकिन बाद में ये काम महेश भट्ट के काफी करीब रहे अभिनेता आदित्य पांचोली ने किया।