नवाजुद्दीन सिद्दीकी मेहनती कलाकार हैं। निजी जिंदगी में उन्होंने बहुत संघर्ष देखे हैं। मुंबई के फुटपाथों पर जीवन बिताया है और, मुंबई की सांसों को करीब से समझा है। कम ही होता है कि किसी कलाकार का संघर्ष उसके करियर में किसी किरदार को सांसे देने के काम आए, लेकिन शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे के जीवन पर बनी फिल्म ठाकरे में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए उनके ये अनुभव बहुत काम आए हैं।
फिल्म – ठाकरे
कलाकार – नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अमृता राव, महेश मांजरेकर आदि।
निर्देशक – अभिजीत पनसे
रेटिंग - ***
कलाकार के लिहाज से नवाजुद्दीन सिद्दीकी की ये फिल्म उनके लिए एक किवदंती बन चुकी है। ठाकरे को बनाने के पीछे जो भी राजनीतिक कारण रहे हों, पर सियासत में जरा भी दिलचस्पी रखने वाले हर दर्शक को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। खासतौर से उत्तर भारतीयों को ये फिल्म इसलिए भी देखनी चाहिए कि हिंदी पट्टी के राज्यों में हिंदुत्व के उभार की गंगोत्री कहां से निकलती है? जब वीएचपी, बीजेपी, हिंदुत्व हिंदी भाषी राज्यों में पनपे भी नहीं थे तब बाल ठाकरे ने हिंदुत्व की बातें करनी शुरू कीं।
ठाकरे को महाराष्ट्र भर का नेता बना देने के पीछे भी एक पूरी रणनीति काम करती रही, ये भी फिल्म की अंतर्धारा से पता चलता है। ठाकरे का सबसे मशहूर नारा, जो हिंदू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा, दूसरी पार्टियों ने हाइजैक किया। फिल्म उन भ्रांतियो को भी तोड़ती है कि ठाकरे कभी महाराष्ट्र से बाहर नहीं गए। हिदी सिनेमा के दर्शक इस फिल्म में नवाजुद्दीन, अमृता राव और महेश मांजरेकर के अलावा दूसरे किसी कलाकार को शायद ही पहचान पाएं लेकिन अभिजीत पनसे के निर्देशन में बनी इस चुस्त फिल्म में मराठी सिनेमा के तमाम कलाकारों ने दमदार काम किया है।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी के किरदार को मजबूत ये साथी कलाकार ही देते हैं। और, नवाजुद्दीन ने ठाकरे के किरदार की आत्मा जिसस तरह पकड़ी है, वह बिरले ही कर पाते हैं। अमृता राव के अभिनय में सौम्यता भी है और मजबूती भी। वह ठाकरे की प्रेरणा हैं। फिल्म का चूंकि पूरा का पूरा परिवेश महाराष्ट्र का है लिहाजा इसके गीत और संगीत भी उसी अनुसार है। फिल्म के हिंदी संस्करण में ये भले थोड़ा अटकते हों पर फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक इस कमी को भी ढक लेता है।
हिंदी सिनेमा में इन दिनों बायोपिक की रेलगाड़ी चल रही है। हर डिब्बा अपने में तमाम किस्से कहानियां समेटे है। बायोपिक्स के रेले में ठाकरे अगर अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रही है तो इसमें नवाजुद्दीन के अपने किरदार के प्रति समर्पण का सबसे बड़ा हाथ है। वॉयकॉम 18 ने फिल्म का प्रचार प्रसार हिंदी पट्टी में भी अच्छे से किया होता तो इसका कारोबार किसी अच्छी हिंदी फिल्म के कारोबार से कम नहीं होता।