Movie Review: साइलेंस, कैन यू हियर इट
कलाकार: मनोज बाजपेयी, प्राची देसाई, अर्जुन माथुर, शिशिर सिन्हा, साहिल वैद, डेंजिल स्मिथ, बरखा सिंह आदि।
लेखक, निर्देशक: अबन भरूचा देवहंस
ओटीटी: जी5
रेटिंग: **
27 साल हो गए हैं मनोज बाजपेयी को पहली बार बड़े परदे पर दिखे हुए। तब से वह सिनेमा को हर पल जी रहे हैं। सिनेमा उनका जलवा बनाता रहा है। बिहार का लाला देश का दुलारा अभिनेता है। सरकार ने हाल ही में उन्हें फिल्म ‘भोसले’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया है। मुंबई की गलियों में बंटने वाले दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल पुरस्कार पाकर लहालोट हो जाने वाले कलाकार इस सम्मान का मोल कभी शायद ही समझ पाएं लेकिन मनोज ऐसा तीन बार कर चुके हैं। सिनेमा में काम करने वालों के लिए उनकी हर नई फिल्म एक सबक है, सिनेमा को बेहतर करने और खुद को दो कदम और आगे ले जाने के लिए। अबन भरूचा देवहंस सिनेमा का जाना पहचाना नाम नहीं है। लेकिन, उनकी फिल्म ‘साइलेंस, कैन यू हियर इट’ देखकर लगता है कि उनमें प्रतिभा बहुत है और अच्छी पटकथाओं पर वह काम करें तो एक बेहतरीन फिल्म निर्देशक के दौर पर वह खुद को हिंदी सिनेमा में स्थापित कर सकती हैं।
फिल्म ‘साइलेंस, कैन यू हियर इट’ आओ, कातिल का पता लगाएं तरह की फिल्म है। अंग्रेजी में जिसे कहते हैं ‘हू डन इट’। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘खामोश’ को मैं इस तरह की हिंदी फिल्मों की कसौटी मानता हूं। क्या कोई सस्पेंस थ्रिलर आखिर तक दर्शकों को सीट के कोने पर बैठे रहने के लिए बाध्य कर सकती है, क्या इसके कलाकार सामान्य दिखते हुए भी किस्सों में नाटकीयता ला सकते हैं और क्या फिल्म की तकनीकी टीम भी उसी तरंगदैर्ध्य पर काम कर रही है जिस पर निर्देशक की मेधा है? फिल्म ‘साइलेंस, कैन यू हियर इट’ इन कसौटियों पर कसे जाने के लिए शायद बनी नहीं है। अबन को लोग अभिनेत्री के तौर पर ज्यादा पहचानते हैं। बतौर निर्देशक वह ‘टी स्पून’ बना चुकी हैं। अपनी नई फिल्म में वह कातिल कौन श्रेणी की एक औसत सी पटकथा लिख पाई हैं जिसमें उनका पूरा ध्यान कातिल की पहचान आखिर तक उजागर न होने देने पर है।
आमतौर पर होता यही है कि जब आप कातिल कौन टाइप की फिल्म देखते हैं तो निर्देशक हर दूसरे किरदार को संभावित कातिल के तौर पर सामने रखने की कोशिश करता नजर आता है। इस फॉर्मूले से बच निकलने में ही एक असल सस्पेंस थ्रिलर की जीत है। कहानी एक नेता के घर रात बिताने रुकी लड़की के कत्ल की है। अविनाश ईमानदार और अक्खड़ पुलिस अफसर है। उसको केस मिलता है तो साथ में राइडर लगा हुआ कि काम तुम चाहे जैसे करो बस नतीजा हफ्ते भर में मनमाफिक लाकर दे दो। लेकिन, पहली बात तो ये कि अविनाश जैसे अफसर अब खाकी की विलुप्तप्राय प्रजाति बन चुके हैं। जिस दौर में खाकी का रुआब गांव देहात के लपूझन्ना टाइप गुर्गे भी न मानें और झगड़ा निपटाने पहुंचे दरोगा को ही निपटा दें, उस दौर में खाकी का रुआब बनाए रखना एवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ने से भी अधिक दुष्कर है। लेकिन, मनोज बाजपेयी का अभिनय ऐसे ही किरदारों में बिल्कुल कुकर की सीटी जैसा बजता है।
दूसरे, दबाव का ताप और भीतर का लावा एक साथ समेटे घूम रहे एसीपी के किरदार में मनोज को देखना बनता है। ये और बात है कि वह अब ताव खाते हैं तो कनपटी उनकी फूल जाती है, पर उनका अभिनय अब भी मुकेश छाबड़ा के दफ्तर के बाहर खड़े रहने वालों के लिए नजीर है। ऐसा लगता है जैसे ‘शूल’ का समर प्रताप प्रमोशन पा पाकर यहां पहुंच तो गया है लेकिन बदला वह बिल्कुल नहीं है। वैसा ही उतावला, वैसा ही तमतमाया हुआ और वैसा ही चेहरे पर तेज। हां, उम्र का ग्रहण लग रहा है पर ध्यान रहे कि नाम अविनाश है किरदार का। सिर्फ मनोज बाजपेयी के लिए ये फिल्म जरूर देखी जा सकती है।
फिल्म ‘साइलेंस, कैन यू हियर इट’ में बाकी कुछ अपना खास असर छोड़ नहीं पाता। प्राची देसाई जरूर अपना लावण्य बरकरार रखे हुए हैं और उनको देखना एक अलग तरह का एहसास भी देता है। लेकिन, इस तरह के किरदार उनके लिए हैं नहीं। कहानी के बीच थोड़ी देर को लगता है कि कहीं वह अविनाश को भटका तो नहीं लेंगी। लेकिन, मामला सधा रहता है। शिशिर सिन्हा ऐसे किरदारों के लिए ही बने हैं। लगता नहीं कि उनको अब किसी तरह की रिहर्सल वगैरह की जरूरत भी पड़ती होगी। अर्जुन माथुर के लिए ये किरदार उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट हो सकता था लेकिन वह ओवरएक्टिंग का शिकार हो गए हैं। बरखा सिंह धीरे धीरे उधर की तरफ बढ़ चली हैं, जहां शोहरत उनका राह देख रही है। टीवी, वेब और सोशल मीडिया पर वह अपना विस्तार पूरा कर चुकी हैं, इस विस्तार को बस एक सधे हुए लीड किरदार की जरूरत है।