कलाकार: डिंपल कपाड़िया, मोहम्मद जीशान अयूब, कृतिका कामरा, सुनील ग्रोवर, सारा जेन डायस, कुमद मिश्रा और सैफ अली खान।
लेखक: गौरव सोलंकी
सृजनकर्ता और निर्देशक: अली अब्बास जफर
रेटिंग: ***1/2
राजनीतिक षडयंत्रों की कहानियां रोचक होती हैं। जानी पहचानी सी लगती है। सुनी सुनाई सी भी लगती हैं। निर्माणाधीन सेंट्रल विस्टा के ठीक बगल वाली इमारत में बीते हफ्ते ही देश के शीर्षतम अधिकारियों में से एक से इन पर चर्चा हो रही थी। और, संक्रांति हो गई। वेब सीरीज ‘तांडव’ मनोरंजन की संक्रांति है। इसमें कुछ भी इस पार और उस पार नहीं है। न सब कुछ काला। न सब कुछ सफेद। फैज़ की वो नज़्म याद है, ‘सुब्ह ए आज़ादी’। उसका मतला है, ‘ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर, वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं’! दूर से सारे ढोल सुहाने हैं। एक शेर दिनेश ठाकुर का वो भी याद आता है कि, ‘हर हंसी मंज़र से यारों फासले कायम रखो, चांद जो धरती पे उतरा, देख के डर जाओगे..!’
तो प्रथम प्रथमा से जिसे अंग्रेज़ी में कहते हैं ‘फर्स्ट थिंग फर्स्ट’। सैफ अली खान को 12 फ्लॉप फिल्में देने के बाद जो कैवल्य प्राप्त हुआ कि उन्हें ‘तानाजी’ में विलेन का रोल कर लेना चाहिए, वह उनके अभिनय जीवन का सबसे सही फैसला है। समर प्रताप के चेहरे पर काइयांपन, धूर्तता और फरेब का जो अक्स उनके इस किरदार के करते उभरता है, दूसरा अभिनेता शायद कोई कर न पाता। वह सीरीज के विलेन हैं। इससे ज्यादा भेद सीरीज के खोलकर मैं इसे देखने का आपका आनंद कम नहीं करना चाहता क्योंकि ये सीरीज सिर्फ सैफ अली खान की नहीं है। इसके हर एपीसोड में दिखती है हिंदी सिनेमा के हाशिये पर पड़े रहे तमाम ऐसे कलाकारों की उम्दा अदाकारी कि दिल से वाह निकल ही जाती है।
वेब सीरीज ‘तांडव’ की कहानी संक्षेप में कहें तो आधुनिक दुर्योधन की है जो कलयुग में उससे भी दो कदम आगे निकल जाता है। सत्ता के सर्वोच्च आसन का मोह सबसे पाप कराता है। इस कहानी में कोई पुण्यात्मा है तो वह अब तक के हिसाब से है शिवा, उसी का ‘तांडव’ सीरीज के दूसरे भाग में देखने का इंतजार रहेगा। पहला सीजन हालांकि दिल्ली से बाहर नहीं निकलता लेकिन इसमें दिल्ली की सत्ता के लिए जरूरी हिंदी पट्टी के प्रदेशों का प्रताप पूरा है। किसान आंदोलन है। जेएनयू जैसी वीएनयू है। टीआरपी बाज चैनलों के मालिक हैं। एम्स जैसा एक अस्पताल है। और, ये देखके आपकी आंखें फैल सकती हैं कि राजनीति में क्या क्या नहीं हो सकता। यहां न कोई सच के साथ है न झूठ के, सब राजनीति के साथ है। जो सच के साथ है उसे कोई दल अपने साथ रखना नहीं चाहता।
सीरीज की शुरुआत के साथ ही दो चीजें अपना असर छोड़ना शुरू करती हैं। एक डिंपल कपाड़िया, दूसरा इसका बैकग्राउंड म्यूजिक। ए आर रहमान, महबूब और कार्तिक का रचा फिल्म ‘युवा’ का गाना ‘धक्का लगा बुक्का’ भी आग चलकर बजता है और सही जगहों पर बजता ही रहता है। ओटीटी ने एक काम तो किया है कि जिन कलाकारों को वाकई अभिनय आता है उनके लिए पूरा मैदान खुला छोड़ दिया है। डिंपल के साथ सीरीज में गौहर खान, कृतिका कामरा, सारा जेन डायस, नेहा हिंजे, अमायरा दस्तूर, संध्या मृदुल, सुखमनी सडाना, शोनाली नागरानी हैं।
राजनीति में महिलाओं से कैसे खेल होते हैं, और किस तरह के खेलों में वह अपनी महात्वकांक्षाओं या कमजोरियों के चलते शामिल होती हैं, इस पर ‘तांडव’ ने बहुत बारीकी से एक समानांतर कथा को विस्तार दिया है। राजनीति की रेखाएं कभी बिस्तर पर, कभी लाइब्रेरी में तो कभी न्यूज चैनलों में अपने अपने हिसाब से बनाती बिगाड़ती इन महिलाओं में डिंपल का अभिनय इनाम के काबिल है और उनके बाद नंबर दो पर हैं कृतिका कामरा। दूसरे सीजन में कृतिका की कमी खलेगी। पहले सीजन की आभा का वह दीप्तिमान वलय हैं।