देश के महान स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को आज ही के दिन यानि कि 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी। आज ही के दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हम काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की एक खास कहानी बातने जा रहे हैं।
राम प्रसाद बिस्मिल ने 11 जून 1897 को उन्होंने यूपी के शाहजहांपुर में जन्म लिया था। अपने जीवन के आखिरी चार महीने और दस दिन उन्होंने यहां की जिला जेल में बिताए थे। फांसी के तीन दिन पहले ही उन्होंने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय पूरा किया था। 19 दिसंबर 1927 की सुबह 6:30 बजे गोरखपुर जिला जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की और मंत्र पढ़ते हुए फंदे पर झूल गए।
उनके जानने वाले बताते हैं कि अंतिम दिनों में गोरखपुर जेल उनकी साधना का केंद्र बन गई थी। 30 साल के जीवनकाल में उनकी कुल 11 पुस्तकें प्रकाशित हुईं थीं, जिनमें ज्यादातर अंग्रेजों ने नष्ट करा दीं।
गोरखपुर जेल में रहकर उन्होंने बहुत सारी रचनाएं भी लिखीं लेकिन उसे भी जेल प्रशासकों ने जलवा दिया। बिस्मिल अंग्रेजों की इस करतूत से वाकिफ थे, तभी तो उन्होंने फांसी के पहले उनकी आत्मकथा किसी मिलने आए करीबी के हाथ बाहर भिजवा दी थी।
कोठरी संख्या सात में रहते थे बिस्मिल
बिस्मिल को छह अप्रैल 1927 को काकोरी कांड का अभियुक्त मानते हुए सजा सुनाई गई। वे पहले लखनऊ जेल में रखे गए। इसके बाद उन्हें अंग्रेजों ने 10 अगस्त को 1927 को गोरखपुर जेल भेज दिया। यहां वे कोठरी संख्या सात में रहते थे। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष के नाम से जाना जाता है।