कोरोना महामारी ने दिसंबर 2019 से पूरी दुनिया को अपनी चेपट में लिया हुआ है। डेढ़ साल में इस वायरस ने अब तक दुनियाभर में 153 मिलियन यानी करीब 1 अरब 53 करोड़ लोगों को संक्रमित कर दिया है। इतना ही नहीं 32 लाख से अधिक लोगों की इससे जान भी जा चुकी है। वायरस से सुरक्षा के लिए तमाम देशों ने इसकी वैक्सीन बना ली है। टीकाकरण को ही विशेषज्ञ कोरोना वायरस से सुऱक्षा देने वाला सबसे प्रभावी उपाय मान रहे हैं।
हालांकि सोशल मीडिया पर वायरल एक संदेश ने वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल पैदा कर दिए हैं। आइए जानते हैं सोशल मीडिया पर क्या कहा जा रहा है और इसमें कितनी सच्चाई है?
क्या है वायरल संदेश?
सोशल मीडिया में कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए दुनियाभर में बने टीके काफी जल्दबाजी में तैयार किए गए हैं। आमतौर पर अन्य बीमारियों के लिए टीके बनाने और परीक्षण में कम से कम तीन से चार साल का समय लगता है। कोरोना की वैक्सीन को महज 8 से 10 महीने में तैयार किया गया है, इसलिए यह प्रभावी नहीं है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस संदेश की वास्तविकता के बारे में जानने के लिए हमने उजाला सिग्नस सोनीपत के क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ. जितेंद्र नासा से बातचीत की। डॉ नासा कहते हैं कि कोरोना के लिए बने टीके पूरी तरह से सुरक्षित हैं। कोरोना के तेजी से बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए इसे जल्दी में जरूर तैयार किया गया है लेकिन सभी सुरक्षा मानकों पर यह पूरी तरह से खरे उतरे हैं। कई स्तर पर इन टीकों का परीक्षण भी किया गया है जिसमें यह प्रभावी सिद्ध हुए हैं, ऐसे में इस तरह की मनगढ़ंत बातों पर लोगों को भरोसा नहीं करना चाहिए और टीकाकरण जरूर कराना चाहिए।
कितनी प्रभावी है कोरोना की वैक्सीन
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि भारत में बने टीके यूके, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील के साथ भारत में मिले अब तक सभी म्यूटेंट वैरिएंट पर कारगर हैं। पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी ने तमाम वैरिएंट्स पर वैक्सीन की जांच की है। हमें अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।
कौन सी हैं स्वदेशी वैक्सीन?
कोरोना संक्रमण से मुकाबले के लिए देश में दो स्वदेशी वैक्सीन- कोवीशील्ड और कोवैक्सीन को प्रयोग में लाया जा रहा है। वैक्सीन की दो खुराक लेना अनिवार्य है। पहली खुराक के 28 दिनों बाद दूसरी खुराक दी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार वैक्सीन की पहली खुराक शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण करती है जबकि दूसरी खुराक से इन एंटीबॉडीज को बूस्ट किया जाता है। कोवैक्सीन को भारत बायोटेक जबकि कोवीशील्ड वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर तैयार किया है। दोनों वायरस के संक्रमण को रोकने में असरदार हैं।
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नोट: यह लेख फैक्ट चेक के रूप में सोशल मीडिया पर वायरस संदेश और इसपर क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ. जितेंद्र नासा से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है।
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