दुनियाभर में तेजी से बढ़ती हृदय रोगों की समस्या विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का कारण बनी हुई है। हृदय रोगों को एक दशक पहले तक अमूमन 50-60 की आयु में होने वाली समस्याओं के तौर पर देखा जाता था हालांकि अब कम उम्र (30-40 आयुवर्ग) के लोग भी इसके शिकार हो रहे हैं। कम उम्र के लोगों में हार्ट अटैक के कारण मौत के भी कई मामले पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिले हैं। इस बीच स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बच्चों में भी हृदय रोगों के खतरे पर ध्यान देते रहने और समय रहते बचाव के उपाय करने के बारे में सचेत किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत में हर साल 17.7 मिलियन (1.77 करोड़) मौतें हृदय संबंधी समस्याओं के कारण हो जाती हैं। इनमें में कॉग्नेटल हार्ट डिजीज (सीएचडी) की समस्या भी शामिल है।
जन्म के समय से ही हृदय में संरचनात्मक समस्या होने की स्थिति को जन्मजात हृदय रोग (सीएचडी) के रूप में जाना जाता है। यह नवजात में सबसे आम जन्मजात विकारों में से एक है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, सीएचडी की समस्या नवजात शिशुओं में भी देखी जा रही है, इसके लक्षणों के बारे में माता-पिता को जानकारी होना आवश्यक है। कुछ बच्चों के जन्म के कुछ समय बाद ही यह दिक्कत हो सकती है जबकि कुछ में आगे चलकर इसके विकसित होने का जोखिम रहता है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
बच्चों में कॉग्नेटल हार्ट डिजीज
गर्भावस्था के अल्ट्रासाउंड के दौरान बच्चों में जन्मजात हृदय दोष का पता लगाया जा सकता है। बच्चों में हृदय की इस समस्या में कई प्रकार की दिक्कतें हो सकती हैं। इसमें कुछ बच्चों में हृदय वाल्व से संबंधित दोष की दिक्कत हो सकती है, इसमें रक्त प्रवाह को निर्देशित करने वाले हृदय के अंदर के वाल्व बंद हो जाते हैं या इनमें रिसाव हो सकता हैं। यह हृदय की रक्त को सही ढंग से पंप करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
बच्चों में इस समस्या के विकसित होने के कई कारण हो सकते हैं, आइए इसके लक्षणों और कारण के बारे में जानते हैं।
बच्चों में कॉग्नेटल हार्ट डिजीज के लक्षण
कुछ बच्चों में जन्मजात हृदय दोष के लक्षण जन्म के कुछ समय बाद तक प्रकट नहीं होते हैं। इस स्थिति में अन्य संकेतों पर ध्यान देते रहने और उसके सही निदान की आवश्यकता होती है।
होंठ, त्वचा, उंगलियां और पैर की उंगलियां का नीला पड़ना, सांस फूलना या सांस लेने में तकलीफ, जन्म के समय कम वजन रहना, छाती में दर्द होना या वृद्धि में कमी के आधार पर इसके खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अलावा कुछ बच्चों में हृदय की संबंधित समस्याएं देखी जा सकती हैं जिसमें तुरंत डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता होती है।
- असामान्य हृदय गति।
- अक्सर चक्कर आना, कमजोरी।
- सांस लेने में कठिनाई।
- बेहोशी की समस्या।
- शरीर में सूजन बना रहना।
बच्चों में सीएचडी का कारण क्या है?
डॉक्टर्स कहते हैं, जन्मजात हृदय रोग, हृदय की संरचना में प्रारंभिक विकास संबंधी समस्याओं के परिणामस्वरूप होता है। इस प्रकार के दोष के कारण आमतौर पर हृदय के माध्यम से रक्त के सामान्य प्रवाह में समस्या आ सकती है। कई कारण हैं जो बच्चों में सीएचडी की समस्या पैदा कर सकते हैं। इसके लिए आनुवांशिकता को प्रमुख माना जाता है जिसमें अगर माता-पिता को हृदय रोग है तो इससे बच्चों में खतरा हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव, गर्भावस्था के दौरान शराब या ड्रग्स का सेवन भी शिशु में हृदय संबंधी दोष होने का खतरा बढ़ा देता है।
जिन माताओं को गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान वायरल संक्रमण हुआ था, उनसे जन्म लेने वाले बच्चों में हृदय दोष का खतरा अधिक रहता है।
बच्चों में सीएचडी का इलाज और रोकथाम
जन्मजात हृदय दोष का पता चलने के बाद स्थिति के प्रकार और गंभीरता के आधार पर इलाज की प्रक्रियाओं को प्रयोग में लाया जाता है। इसके लिए दवाइयों और कुछ सहायक उपकरणों की मदद ली जाती है। गंभीर स्थितियों में सर्जरी की भी आवश्यकता हो सकती है। बच्चे में इस प्रकार के खतरे को कम करने के लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें।
- यदि आपको मधुमेह है, तो सुनिश्चित करें कि गर्भवती होने से पहले आपका रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रण में रहे।
- यदि आपको रूबेला या खसरा का टीका नहीं लगा है, तो किसी भी बीमारी के संपर्क में आने से बचें और रोकथाम के विकल्पों के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
- यदि आपमें जन्मजात हृदय दोष का पारिवारिक इतिहास है, तो इस बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें जिससे बच्चे को सुरक्षित रखने का उपाय किया जा सके।
- गर्भावस्था के दौरान शराब-धूम्रपान या किसी भी प्रकार की नशीली चीजों के सेवन से बचें।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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