आजकल प्राइम वीडियो की वेब सीरीज पंचायत की चर्चा जोरों पर हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया के एक गांव फुलैरा की कहानी इस वेब सीरीज में दिखाई गई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस गांव को फुलैरा दिखाया गया है वो असल में मध्य प्रदेश के सीहोर का महोड़िया गांव है। पंचायत की पूरी शूटिंग महोड़िया गांव में हुई है। आज हम आपको मिलवाते हैं इस गांव की असल प्रधान, प्रधान पति, पंचायत सचिव और सहायक से। गांव की सरपंच राजकुमारी सिसौदिया हैं। सचिव हरीश जोशी और सहायक प्रताप सिंह हैं। सरपंच पति लालसिंह सिसौदिया ने अमर उजाला से विशेष बातचीत की है और फिल्म के पीछे की मेहनत के बारे में बताया है। पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश-
सवाल: फिल्म के बारे में क्या कहेंगे
जो फिल्म बनाई है, वो गांवों की हकीकत के नजदीक है। जो पंचायतों में होता है, वही फिल्म में बताया है। फिल्म काफी अच्छी बनी है। पहला पार्ट अच्छा था, दूसरा उससे भी अच्छा बन पड़ा है। टीम की मेहनत नजर आती है।
सवाल: आपके गांव तक कैसे पहुंची टीम
टीम ने पहले करीब 150 गांवों का भ्रमण किया था। उसके बाद हमारे गांव पहुंचे थे। फिल्म के लिहाज से जो कुछ चाहिए था, वो सब महोड़िया में मिल गई। आठ-दस बार का गांव का अलग-अलग लोगों ने निरीक्षण किया, तब जाकर गांव शूटिंग के लिए फाइनल किया गया। पंचायत भवन गांव से हटकर चाहिए था, वो यहा था। प्रधान का घर जैसा चाह रहे थे, वैसा मेरा घर मिल गया उनको। घर का माहौल, सामान, मवेशी वगैरह सब फिल्म के लिहाज से टीम को सही लगा। सब कुछ ठीक लगने के बाद टीम ने कलेक्टर से अनुमति ली, पंचायत से अनुमति ली। फिर शूट शुरू किया।
सवाल: पूरी शूटिंग के दौरान सबसे अच्छा क्या रहा
मुझे तो बहुत खुशी हुई, क्योंकि कई गांव वालों को रोजगार मिला, फिल्म में काम करने का मौका मिला। मेरा घर एक तरीके से उन्हीं के सुपुर्द था। पूरे गांव में कहीं-कोई समस्या शूटिंग से हुई न ही शूटिंग कर रहे लोगों को गांववालों से हुई। थोड़ी सी टीस इस बात की जरूर रही कि फिल्म में उन्होंने गांव का नाम फुलेरा रखा था, महोड़िया ही रख लेते तो खुशी कई गुना बढ़ जाती।
सवाल: आपके गांव से कैसे जुड़ती है कहानी
मेरा एक बेटा और बेटी है। मेरी पत्नी गांव की प्रधान हैं। फिल्म में रिंकी ने जो गाड़ी चलाई थी, वो भी मेरी बेटी की थी। फिल्म की कहानी को गांव से काफी निकट महसूस करता हूं। गांवों में जो होता है, वही फिल्माया गया है। जैसे नरेगा का काम हो गया, बरात ठहरने का हो गया, गांवों में अंधविश्वास की बात हो, मिट्टी बेचने का हो, कहने का मतलब है कि जो हमारे आसपास होता है, उसे ही फिल्म में रखा गया है। इस वजह से हमारी अपनी कहानी लगती है।