हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के भरमौर के कुगती में उत्तर भारत का इकलौता शिवपुत्र कार्तिक स्वामी का मंदिर है। इस मंदिर में सदियों से चली आ रही परंपरा का अभी भी निर्वहन किया जा रहा है। हर वर्ष 30 नवंबर को मंदिर के कपाट बंद होते है और 136 वें दिन वैसाखी को भगवान कार्तिक के दर्शनों के लिए मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। उसी दिनी गड़वी के पानी को देखकर भविष्यवाणी की जाएगी।
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विज्ञान ने भले ही आज अभूतपूर्व तरक्की कर ली है। कई आपदाओं और आशंकाओं की हमें पहले ही सूचना मिल जाती है। मौसम भी उनमें से एक है। कई ऐसे सैटेलाइट हैं जो हमें पहले ही बता देते हैं कि इस बार सूखा, बाढ़, सुनामी या कोई और प्रकोप आने वाला है। लेकिन हिमाचल के जिला चंबा के जनजातीय इलाके भरमौर में आज भी लोग विज्ञान पर भरोसा करने के बजाय देवताओं की शरण में जाते हैं। देवता सालभर के मौसम की भविष्यवाणी करता है। लोग भी इसे मानते हैं और उसी अनुरूप फसलों की देखरेख और जीवन यापन करते हैं। ऐसा सदियों से चला आ रहा है। कबायली क्षेत्र भरमौर के कुगती में उत्तर भारत का एकमात्र शिव पुत्र कार्तिक का मंदिर है। हर साल 30 नवंबर को कार्तिक स्वामी मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। कपाट बंद करने से पहले मंदिर के गर्भ गृह में मूर्ति के सामने पानी से भरी एक गड़वी (कलश) को रखा जाता है। इस बार भी ऐसा ही होगा। 14 अप्रैल को बैसाखी पर 136वें दिन मंदिर के कपाट खोले जाएंगे। यदि कलश पानी से पूरा भरा रहा तो उस वर्ष क्षेत्र में अच्छी बारिश होने और सुख-समृद्धि होने की उम्मीद रहती है।
अगर कलश आधा भरा मिला तो कम बारिश की संभावना रहती है और कलश में पानी पूरा सूख गया हो तो अकाल जैसी स्थिति इलाके में आने की संभावना रहती है। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। कई बार ऐसा हुआ कि कलश में एक बूंद पानी की कम नहीं हुई है। कुछेक बार पानी खत्म भी मिला तो ज्यादातर सामान्य रहता है। कार्तिक स्वामी के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। लोग अपना जीवन यापन उसी अनुरूप करते हैं।
बर्फबारी पर स्वर्ग लोक चले जाते हैं देवता- मंदिर के पुजारी मचलू राम शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि देवभूमि पर प्रकृति बर्फ की चादर ओढ़कर सुप्त अवस्था में चली जाती है। देवता भी स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। इस अवधि के बीच मंदिर की तरफ रुख करने वालों के साथ अनहोनी की भी आशंका बनी रहती है। इसलिए मंदिर में न दर्शन होते हैं और न ही पूजा-पाठ। मंदिर में रखे कलश के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। 30 नवंबर को मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं जो 14 अप्रैल को खुलेंगे। उसी अनुरूप मौसम की भविष्यवाणी होती है।
सात किलोमीटर पैदल सफर कर पहुंचते हैं मंदिर तक- जिला मुख्यालय चंबा से बस के माध्यम से 76 किलोमीटर सफर कर कुगती पहुंचा जा सकता है। कुगती से आगे सात किलोमीटर पैदल चल कर मंदिर आता है। कई श्रद्धालु पैदल लाहौल-स्पीति से कुगती जोत पार कर मंदिर तक पहुंचते हैं। कुगती को जैविक गांव का दर्जा दिया गया है। यहां के लोग जैविक खेती करते हैं और इनका रहन-सहन बहुत ही सादा है। बर्फबारी के दौरान गांव पूरी तरह भरमौर से कट जाता है। मंदिर के चारों ओर से बर्फ से ढकी पहाड़ियां गांव की सुंदरता को चार चांद लगाती है। देवदार और चीड़ की लकड़ी से बने घर मन को एक अजब अतीत से रूबरू करवाते हैं।