त्रिदेव का वास है पीपल में
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-'अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम' अर्थात 'मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ' इस कथन में उन्होंने अपने आपको पीपल के वृक्ष के समान ही घोषित किया है। पीपल ऐसा वृक्ष है जिसमें त्रिदेव निवास करते हैं। जिसकी जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान शंकर तथा अग्रभाग में साक्षात ब्रह्माजी निवास करते हैं। अश्वत्थ वृक्ष के रूप में साक्षात श्रीहरि ही इस भूतल पर निवास करते हैं।
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जैसे संसार में ब्राह्मण, गौ और देवता पूजनीय होते हैं उसी प्रकार पीपल का वृक्ष भी अत्यंत पूजनीय माना गया है। पीपल को रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से क्रमशः धन, उत्तम संतान, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करता है। इसके आलावा पीपल में पितरों का वास माना गया है। सब तीर्थों का इसमें निवास होता है इसलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का विधान है।
पीपल की छाया यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराण कथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। इसके पत्तों की वंदनवार को शुभ कार्यों में द्वार पर लगाया जाता है।
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शनि की शुभता के लिए पीपल की पूजा
ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो पीपल का संबंध शनि से माना जाता है। पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। शनि की साढ़ेसाती या ढैया के चलते पीपल के पेड़ की पूजा करना और उसकी परिक्रमा करने से शनि की पीड़ा झेलनी नहीं पड़ती।वहीं पीपल का वृक्ष लगाने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।
पीपल को मिला शनि का वरदान
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अगस्त्य ऋषि दक्षिण दिशा में अपने शिष्यों के साथ गोमती नदी के तट पर गए और एक वर्ष तक यज्ञ करते रहे। उस समय स्वर्ग पर राक्षसों का राज था। कैटभ नाम के राक्षस ने पीपल का रूप लेकर यज्ञ में ब्राह्मणों को परेशान करना शुरू कर दिया और ब्राह्मणों को मारकर खा जाता था। जैसे ही कोई ब्राह्मण पीपल के पेड़ की टहनियां या पत्ते तोड़ने जाता है तो राक्षस उनको खा जाता। लगातार अपनी संख्या कम होते देख ऋषि मुनि मदद के लिए शनि देव के पास गए।