आचार्य चाणक्य एक महान विभूति थे, इसलिए आज भी उनका नाम श्रेष्ठतम विद्वानों में लिया जाता है। इन्होंने अपनी विद्वत्ता, बुद्धिमता और क्षमता के बल पर इतिहास की धारा को बदल कर दिया था। अपनी बुद्धि और कूटनीति कुशलता से इन्होंने नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त को मौर्य साम्राज्य का शासक बनाया। चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विख्यात हुए। इन्हें चाणक्य नाम अपने गुरु चणक से प्राप्त हुआ और अपनी बुद्धिमत्ता एवं विभिन्न विषयों की गहरी समझ के कारण ये विष्णु गुप्त एवं कौटिल्य कहलाए। आज इतना समय गुजरने के बाद आज चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत और नीतियां प्रासंगिक हैं। इन्होंने अपने गहन अध्ययन, चिंतन और जीवन के अनुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्देश्य से महत्वपूर्ण ग्रंथों में पिरोया। इनके द्वारा लिखित नीति शास्त्र की नीतियां मनुष्य के जीवन को बहुत करीब से स्पर्श करती हैं और समस्याओं से निकलने का रास्ता दिखाती हैं। नीति शास्त्र में बताई गई बातों को ध्यान में रखते हुए जीवन में आगे बढ़ा जाए तो मनुष्य सफलता प्राप्त कर अपने जीवन को सुखी और संतुष्ट बना सकता है। नीति शास्त्र में कुछ ऐसी परिस्थितियों के बारे में वर्णन किया गया है जब सेना, धन, बीज और शिक्षा का भी नाश हो जाता है। जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
खाली बैठने से होता है अभ्यास का नाश
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा हो या फिर कोई कार्य यदि उसे सीखने के बाद उसका अभ्यास न किया जाए तो व्यक्ति उसे भूलने लगता है यानी पहले किए गए अभ्यास और शिक्षा का भी नाश होता है। मनुष्य को लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए इससे उसकी कार्य में दक्षता बढ़ती है और वह और भी निपुण हो जाता है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कार्य और विषय में निपुण होना अतिआवश्यक है।
दूसरो को देखभाल को देने से पैसा होता है नष्ट
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अपना पैसा किसी और के देखभाल के लिए देने से उसका नाश होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि धन के मामले में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। यदि आपका धन किसी और के कब्जे में है तो समय पड़ने पर वह आपके किसी काम का नहीं रहता है, इसलिए धन सदैव स्वयं के पास संचय करना चाहिए और उसे सही जगह निवेश करके करना चाहिए।
बिना सेनापति होता है सेना का नाश
किसी भी सेना का प्रतिनिधित्व एक सेनापति करता है। वह सेना को सही और गलत के बारे में सूचित करता है एवं सेना का मार्ग दर्शन करता है। यदि किसी सेना का सेनापति न हो तो वह सेना बिखर जाती है और इस तरह बड़ी से बड़ी सेना का भी नाश हो जाता है। कार्य क्षेत्र में भी यही बात लागू होती है। किसी कार्य के सही क्रियान्वन के लिए नेतृत्वकर्ता का होना आवश्यक होता है।
गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान
एक किसान के लिए उसकी फसल ही सारी जमा पूंजी होती है। इससे ही वह अपना जीवन यापन करता है, और अच्छी फसल के लिए बीजों को सही प्रकार से बोना आवश्यक होता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गलत तरह से बुवाई करके किसान अपने बीजो का नाश करता है। इस बात को जीवन में समझना भी जरूरी है। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उसकी सही शुरुआत होना आवश्यक है।