आपने होली तो खूब खेली होगी लेकिन इसमें ब्रज का गुलाल न हो तो होली का त्योहार अधूरा ही माना जाता है। वैसे तो गुलाल हर जगह मिल जाएगा, लेकिन ब्रज के गुलाल की बराबरी नहीं हो सकती। उससे पीछे कारण यही है कि जब ब्रज की रज यानी धूल में लोग लोटकर अपने को धन्य मानते हैं तो गुलाल तो बड़ा ही पवित्र माना जाता है। ब्रज का निर्मित सतरंगी गुलाल का जवाब नहीं। क्योंकि जब तक गुलाल, गालों को लाल न कर दे, होली का रंग अधूरा ही रहता है। यहां के गुलाल की मांग दूर-दूर तक होती है।
ऐसे बनता है गुलाल
आलू की टिक्की, फलूदा और नमकीन जैसे खाद्य पदार्थों में प्रयोग होने वाला अरारोट ही गुलाल में प्रयोग होता है। अरारोट को पीसकर पाउडर में परिवर्तित किया जाता है। इसके बाद उसे पानी में भिगोकर रखा जाता है। मशीनों के माध्यम से उसमें खाने में प्रयोग होने वाला रंग और इत्र मिला देते हैं। पूरा मिक्स होने के बाद उसको मशीन ने सही ढंग से मिलाया जाता है। चूंकि पानी मिला होता है, लिहाजा उसे फिर सूखने के लिए रखा दिया है। यह पूरी प्रक्रिया तीन दिन में पूरी होती है। इसके बाद उसे पाउच व बोरियों में पैक कर दिया जाता है।
सात रंग का बनता है गुलाल
लाल, हरा, पीला, तोतई, केसरी, चंदन और नारंगी रंग का सतरंगी गुलाल तैयार होता है। सबसे खास बात यह है कि केसरी रंग के गुलाल की सबसे ज्यादा मांग होती है।
धार्मिक नगरी का गुलाल नहीं करता नुकसान
यहां के गुलाल की खासियत यह भी है कि यह किसी भी तरह से नुकसान नहीं करता है। आंख में पड़ जाए तो पानी से धो लो। कपड़ों पर लग जाए तो हाथ से झाड़ने से छूट जाता है। शरीर पर लग जाए तो पानी से धुलते ही पूरी तरह छूट जाता है। महीन इतना होता है कि चुटकी से रगड़ने पर भी कोई कण नहीं मिलेगा।
यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल समेत देश का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां पर धार्मिक नगरी में ब्रज में बना गुलाल न जाता हो। खरीदने वाले अक्सर कहते हैं कि ब्रज का गुलाल है, यहां की तो मिट्टी में भी सुगंध आती है।
कारोबारी शैलेंद्र नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि वह पिछले 25 साल से गुलाल बना रहे हैं। ब्रज के गुलाल की मांग पूरे देश में हैं। भगवान कन्हैया की नगरी है, भाव भी रहता है। यही गुलाल तो भगवान को भी लगाया जाता है।
कारोबारी अंकुर बंसल ने कहा कि आजकल के युवा रंग की अपेक्षा गुलाल से ही होली खेलते हैं। चूंकि ब्रज का गुलाल होता है, लिहाजा धार्मिक भावनाएं भी जुड़ी होती हैं। साल में होली पर ही गुलाल का महत्व होता है।
व्यापारी कपिल अग्रवाल ने कहा कि ब्रज में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। यह भगवान राधाकृष्ण की स्थली है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और तरह-तरह से गुलाल खरीदकर होली खेलते हैं। ब्रज के गुलाल के बिना होली अधूरी रहती है।