राजस्थान के भीलवाड़ा के सरेरी गांव का ‘अशोक चोटिया’ ने महज 12 वर्ष की उम्र में संन्यासी बनने के लिए घर छोड़ दिया था। निरंजनी अखाड़े से जुड़कर अशोक आनंद गिरि बन गए। नरेंद्र गिरि से आनंद की मुलाकात हुई तो वह निरंजनी अखाड़े में कोतवाल के पद पर थे। 2005 में नरेंद्र गिरि आनंद को बाघंबरी मठ लाए। इसके बाद से आनंद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मठ आने के छह साल बाद ही नरेंद्र ने उन्हें उत्तराधिकारी बना दिया लेकिन अति महत्वाकांक्षी आनंद अपने गुरु से ही विवाद कर बैठे और सब कुछ गंवा दिया। आनंद ने न केवल संस्कृत की शिक्षा ली थी बल्कि उन्होंने बाद में अंग्रेजी भी सीख ली थी। यहां आने के बाद उन्होंने योग पर विशेष ध्यान दिया और धीरे धीरे योग गुरु के रूप में मशहूर हो गए। हनुमान मंदिर में देश दुनिया के बड़े बड़े लोगों का आना जाना लगा रहता है। धीरे धीरे आनंद ने देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी पहचान बनाना शुरू कर दिया।
2008 में उन्होंने गुरु नरेंद्र गिरि को बताए बिना गंगा सेना बनाई और माघमेला में संगम पर कैंप लगाने लगे। नरेंद्र गिरि ने इस पर नाराजगी जताई। दोनों के बीच विवाद की शुरुआत यहीं से हुई लेकिन आनंद ने गुरु को मना लिया। धीरे धीरे मठ और मंदिर दोनों पर आनंद का वर्चस्व हो गया।
वह छोटे महाराज कहे जाने लगे। पूरी व्यवस्था आनंद ही देखने लगे। 2011 में नरेंद्र गिरि ने आनंद को उत्तराधिकारी बनाते हुए वसीयत कर दी। इसके बाद तो आनंद का हर तरफ जलवा ली जलवा हो गया। विवाद की शुरूआत 2018 में तब हुई जब आनंद गिरि ने गुरु को बताए बिना पेट्रोल पंप के लिए आवेदन कर दिया, वह भी बाघंबरी मठ की जमीन पर।
यह सुनते ही नरेंद्र गिरि आगबबूला हो गए। जमकर विवाद हुआ। 2019 में निरंजनी अखाड़े से सचिव आशीष गिरि की मौत के बाद आनंद ने इशारों इशारों में नरेंद्र गिरि पर ही आरोप लगाया तो बात पूरी तरह से बिगड़ गई।
इस बीच आनंद ने हरिद्वार में विक्रम योग पीठ आश्रम बना लिया। इसकी जानकारी भी गुरु को बाद में हुई थी। इन्हीं सब विवाद के बाद नरेंद्र गिरि ने नई वसीयत तैयार की जिसमें आनंद को हटाकर बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बना दिया।