प्रतापगढ़। जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अध्यक्ष और कुंडा के बाहुबली विधायक, पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह राजाभैया की सपा के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से मुलाकात के बाद जिले में राजनैतिक हलचल तेज हो गई है। इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। राज्यसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी के खिलाफ जाकर वोट देने के मामले में राजाभैया और सपा मुखिया अखिलेश यादव के बीच दूरी बन गई थी, लेकिन गुरुवार को मुलायम सिंह यादव और राजाभैया की मुलाकात के बाद कई अटकलें शुरू हो गई हैं। जिसमें एक चर्चा यह भी है कि राजाभैया की पार्टी से सपा का गठबंधन हो सकता है।
हालांकि राजाभैया ने इस मुलाकात को गैर राजनैतिक और जन्मदिन पर सपा के पूर्व मुखिया को बधाई देने की बात कही है, लेकिन राजनीति में दिखता कुछ और है और होता कुछ और है के सिद्धांत को मानें तो एक बार फिर राजाभैया सपा के साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव में ताल ठोक सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में राजाभैया की पार्टी जनसत्ता दल कुछ खास प्रभाव वोटरों पर नहीं डाल सकी थी। तमाम प्रयास और मशक्कत के बावजूद उनके गढ़ से भाजपा प्रतायाशी विनोद सोनकर जीतने में सफल हो गए थे। हालांकि पंचायत चुनाव में राजाभैया का दबदबा कायम रहा और बड़ी संख्या में उनके प्रत्याशी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने में सफल रहे। इसी के चलते प्रतापगढ़ में राजाभैया अपने प्रत्याशी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में सफल रहे।
सपा प्रत्याशी के विरोध में मतदान पर हुआ था मनमुटाव
2017 के विधानसभा चुुनाव के बाद हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने को लेकर राजाभैया और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के बीच मनमुटाव हो गया था। अखिलेश यादव ने चुनाव के बाद ट्विट कर इशारों में राजाभैया पर निशाना साधा था। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजाभैया ने जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। इस चुनाव में दोनों के बीच की तल्खी खुलकर सामने आ गई।
कुंडा में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे अखिलेश ने राजाभैया पर जमकर निशाना साधा था। लोकसभा चुनाव के दौरान राजाभैया की भाजपा से नजदीकियों की चर्चा भी तेज थी। भाजपा से उनका गठबंधन भी तय माना जा रहा था, लेकिन ऐनवक्त पर सीटों को लेकर मामला बिगड़ गया। राजाभैया ने अपनी पार्टी जनसत्ता दल से लोकसभा की दो सीटों प्रतापगढ़ और कौशाम्बी से अपने उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
मुलायम से मुलाकात के बाद अटकलें तेज
इस बीच कई बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की खबरें और तस्वीरें भी सामने आती रहीं। राजाभैया खुद यह स्वीकार करते रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके लंबे समय से पारिवारिक रिश्ते रहे हैं। मुख्यमंत्री के साथ उनकी नजदीकियों को देखते हुए वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से उनके गठबंधन को लेकर अटकलें तेज थीं, लेकिन बृहस्पतिवार को राजाभैया के मुलायम के आवास पर जाने के बाद नए समीकरण बनते नजर आ रहे हैं।
सियासी जानकारों का कहना है कि 2022 में सत्ता में वापसी के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन करने में जुटी समाजवादी पार्टी राजपूतों वोटरों को साधने के लिए राजाभैया को साथ ले सकती है। उधर, राजाभैया के करीबी एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह गोपालजी का कहना है कि जनसत्ता दल लोकतांत्रिक यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। राजाभैया लगातार पार्टी को मजबूत करने के लिए दौरे कर रहे हैं। वह सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव का सम्मान करते हैं और हर साल जन्मदिन पर उन्हें शुभकामनाएं देते रहे हैं। इस मुलाकात के कोई सियासी मायने नहीं हैं।
मुलायम सिंह ने हटाया था पोटा
बसपा मुखिया मायावती ने वर्ष 2002 में मुख्यमंत्री रहते हुए राजाभैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह पर पोटा लगा दिया था। सत्ता में आने के बाद मुलायम सिंह यादव ने राजाभैया पर से पोटा हटा लिया था। इतना ही नहीं, जेल से छूटने के बाद राजाभैया सपा सरकार में मंत्री भी बने। इसके बाद से राजाभैया मुलायम के काफी करीब हो गए थे। वर्ष 2012 के चुनाव में सपा को बहुमत से अधिक सीटें मिली थीं।
इसके बावजूद राजाभैया निर्दल विधायक होने के बाद भी मंत्री बने। हालांकि एक साल बाद ही सीओ जिया उल हक हत्याकांड को लेकर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। सीबीआई की क्लीनचिट मिलने के बाद सपा की अखिलेश सरकार में उन्हें दोबारा मंत्री बनाया गया। मुलायम से उनकी नजदीकियों को देखते हुए बृहस्पतिवार को लखनऊ में हुई मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है।