कानपुर में लैब टेक्नीशियन संजीत यादव अपहरण हत्याकांड में बड़ा खुलासा हुआ है। अपहर्ताओं को दिए गए बैग में फिरौती के 30 लाख रुपये नहीं थे। उसमें कुछ नकली करेंसी व एक मोबाइल था। यह खुलासा आईपीएस बीपी जोगदंड की जांच में हुआ है। जांच अफसर ने शासन को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। बर्रा निवासी संजीत 22 जून की शाम को लापता हो गया था।
29 जून को परिजनों के पास 30 लाख फिरौती के लिए फोन पहुंचा था। तत्कालीन एसपी साउथ अपर्णा गुप्ता, तत्कालीन सीओ गोविंद नगर मनोज कुमार गुप्ता व तत्कालीन बर्रा इंस्पेक्टर रणजीत राय ने अपहर्ताओं को पकड़ने के लिए जाल बिछाया। 13 जुलाई को गुजैनी बाईपास के पास बदमाश फिरौती लेने पहुंचे। संजीत के पिता भी पुलिस के साथ पहुंचे। नीचे खड़े बदमाशों ने हाईवे से बैग फिंकवाया और फरार हो गए।
23 जुलाई को खुलासा हुआ कि संजीत के दोस्तों ने उसकी हत्या कर शव पांडु नदी में बहा दिया है। तब परिजनों ने आरोप लगाया था कि बैग में फिरौती के 30 लाख रुपये थे, जबकि पुलिस का दावा था कि उसमें नकली नोट व मोबाइल था। शासन ने इस मामले की जांच आईपीएस बीपी जोगदंड को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक आईपीएस ने बयानों और साक्ष्यों के आधार पर माना है कि बैग में रुपये नहीं थे। यह जरूर माना है कि मामले में पुलिस की लापरवाही रही है।
जांच अधिकारी ने इन बिंदुओं को बनाया आधार
- संजीत के परिजनों ने दावा किया था कि घर बेचकर 30 लाख रुपये जुटाए हैं, जांच में घर बेचने की पुष्टि नहीं हुई।
- घटना के दौरान परिजनों के खातों से भी रुपये नहीं निकाले गए हैं।
- संजीत के पिता के वायरल हुए एक वीडियो को भी आधार बनाया है, जिसमें वे कह रहे थे कि बैग में रुपये होते भी तो क्या, बेटा तो उनका चला गया।
- कई अन्य लोगों और पुलिस वालों से पूछताछ में भी बैग में रुपये होने की पुष्टि नहीं हुई।
रुपये होते तो पुलिस वालों पर होती रिपोर्ट
पीड़ित परिवार ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए थे। कहा था कि पुलिस की लापरवाही की वजह से रुपये भी चले गए और बदमाश भी नहीं पकड़े गए। शासन के एक बड़े अफसर का कहना है कि अगर बैग में रुपये होने के आरोप सही होते तो पुलिसकर्मियों पर भी केस दर्ज होता। यही वजह है कि इस मामले मेें सस्पेंड हुईं आईपीएस अपर्णा गुप्ता को बहाल कर दिया गया है।