आतंकियों के तार कानपुर के एक शिक्षण संस्थान से भी जुड़ते नजर आ रहे हैं। पकड़े गए आतंकियों के पास से इस संबंध में अहम जानकारी मिली है। उसी आधार पर जांच एजेंसी की एक टीम शहर की एक विवि पहुंची। कइयों से पूछताछ कर जानकारी जुटाई। हालांकि किसी को हिरासत में नहीं लिया। उधर इस संबंध में किसी भी तरह की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी। सूत्रों का कहना है कि शहर के कुछ छात्र व शिक्षण संस्थान से जुड़े एक दो लोग इन आतंकियों या हिरासत में लिए गए संदिग्धों के संपर्क में थे। इसलिए एटीएस ने तफ्तीश शुरू की है। सूत्रों के मुताबिक आतंकियों के संपर्क में शहर के कुछ छात्र व संस्थानों से जुड़े लोग हैं। आतंकियों से पूछताछ व मोबाइल नंबरों की सीडीआर से इसकी जानकारी मिली है। इसलिए जांच एजेंसी इसका सत्यापन कर रही है। जिसके खिलाफ साक्ष्य मिलते जाएंगे उन पर कार्रवाई की जाएगी। सूत्रों ने बताया कि सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे एक टीम शहर के एक विवि पहुंची। पहले वहां के अफसरों फिर कर्मचारियों व छात्रों से पूछताछ कर जानकारी जुटाई। उसके बाद टीम लौट गई। विवि प्रशासन और पुलिस इस संबंध में किसी भी तरह की जानकारी से इनकार कर रहे हैं।
संवेदनशील इलाकों पर पैनी नजर
सूत्रों के मुताबिक शहर के संवेदनशील इलाकों पर जांच एजेंसी की पैनी नजर है। बेकनगंज, चमनगंज, जाजमऊ, रहमानी मार्केट, रावतपुर जैसे इलाके शामिल हैं। सर्विलांस पर एक दर्जन से अधिक लोगों के मोबाइल नंबर लगाए गए हैं। उनकी गतिविधियों की जानकारी जुटाई जा रही है। संदिग्धों का इतिहास भी जांच एजेंसी खंगाल रही हैं। जब भी कार्रवाई होगी वो बड़े पैमाने पर होगी।
माइंडवॉश के लिए चलती थी जेहाद की क्लास
सूत्रों के मुताबिक बिल्डर की सरपरस्ती में नई सड़क के एक ठिकाने पर जेहाद की क्लास चलती थी। गिरोह से जुड़े स्थानीय लोग कुछ लोगों को इकट्ठा करते थे। जिनको लखनऊ से आए आतंकियों से मिलवाते थे। जो इनका माइंडवॉश करते थे। जानकारी मिली है कि इसके लिए बाकायदा फंडिंग भी होती थी। यही नहीं बिल्डर के एक दर्जन खाते मिले हैं। जिनमें विदेश से भी लेनदेन किया गया है। ये बेहद गंभीर मामला है।
तो दहल जाता शहर
पकड़े गए आतंकियों का शहर को दहलाने का पूरा इरादा था। साजिश रची जा चुकी थी। मई में साजिश को अंजाम देना था। मगर उसी दौरान कोरोना कर्फ्यू लगने से हर तरफ पुलिस की चौकसी बढ़ गई। धार्मिक स्थल, भीड़भाड़ वाले स्थानों पर भी सन्नाटा था। इसलिए साजिश को आतंकी अंजाम नहीं दे सके थे।
ऐसे खुला पूरा मॉड्यूल
सूत्रों के मुताबिक करीब एक साल पहले से इंटेलीजेंस 100 से अधिक नंबरों को ट्रेस कर रही थी। जिनसे इंटरनेशनल नंबरों पर बातचीत हो रही थी। धीरे-धीरे करके पूरी जानकारी जुटाई। अधिक समय इसलिए लगा क्योंकि कॉलिंग इंटरनेट के जरिये ही की जाती थी। जिसको ट्रेस करना आसान नहीं था।