विकास दुबे के आतंक को कोई नजदीक से महसूस कर पाया है तो वो है शिवली के ताराचंद्र इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य सिद्धेश्वर पांडेय का परिवार। विकास ने 11 नवंबर वर्ष 2000 को इंटर कॉलेज के बगल में एक खाली प्लाट में दिनदहाड़े सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी।
हत्या की वजह वही जमीन थी। सिद्धेश्वर पांडेय इंटर कॉलेज की खाली पड़ी जमीन पर डिग्री कॉलेज बनाना चाहते थे, जबकि विकास की नजर उस पर कब्जा करने की थी। सिद्धेश्वर पांडेय साफ स्वच्छ छवि के सेवानिवृत्त शिक्षक थे। दूर-दूर तक उनका सम्मान था। विकास भी उसी स्कूल में पढ़ा था। उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि उनका पढ़ाया लड़का एक दिन उन्हीं की जान ले लेगा।
मगर विकास ने वह किया जो उन्होंने सोचा तक नहीं था। कई गोलियां सीने में उतारने के बाद विकास ने उनके बेटों को भी धमकाया कि पैरवी की तो जान से हाथ धो लेंगे। मगर उनके बेटों ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने पिता की मौत का कानूनन बदला लेने के लिए जान माल सब दांव पर लगा दिया।
सिद्धेश्वर पांडेय के बड़े बेटे राजेंद्र पांडेय बताते हैं कि वे बीते 20 साल से विकास दुबे की धमकियों को झेलते आ रहे हैं। मगर हर धमकी के बाद पिता का चेहरा याद आया। खुद को लानत देता कि उनके पिता का हत्यारा अभी भी जिंदा है। खुद तो कानून अपने हाथ में नहीं ले सकते। इसलिए कानूनी लड़ाई लड़ने में पीछे नहीं रहे। जान से मारने की धमकी से हम दोनों भाई नहीं डिगे तो वर्ष 2014 में जिला अदालत के फैसले से पहले विकास ने तीस लाख रुपये में खरीदने की कोशिश की थी। तब उसकी रकम पर हमने थूक दिया था।
आखिरकार उसे उम्र कैद की सजा हुई। हालांकि इस सजा के खिलाफ विकास दुबे ने हाईकोर्ट में अपील की है। मामला अभी लंबित है। राजेंद्र पांडेय ने बताया कि पिता की हत्या की पैरवी के 14 वर्षों में हमने वो झेला जिसकी कल्पना करना बहुत कठिन है। विकास हर किसी को खरीदने की क्षमता रखता है। उसने खरीदा भी।