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विस्तार
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कई मंदिर कई रहस्यों से भरे पड़े हैं। इसके वैज्ञानिक पहलू भी हैं लेकिन देव आस्था इन वैज्ञानिक पहलुओं पर हावी रहती है। ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध मंडी जिले के करसोग क्षेत्र में गढ़पति नाग च्वासी के मंदिर में आज भी मन्नतें पूरी होने पर चिमटे चढ़ाए जाते हैं। लोगों की देव आस्था इतनी गहरी है कि कतांडा के पास ऊंची चोटी पर स्थित नाग च्वासी के मंदिर के पास चिमटा मारने से वह पानी से गीला हो जाता है। ऐसे में यहां पर सैकड़ों छोटे बड़े चिमटे श्रद्धालुओं ने मन्नतें पूरी होने पर चढ़ाए हैं। गढ़पति नाग च्वासी के इतिहास और मान्यता पर नजर दौड़ाएं तो इस स्थान पर स्वयं गुरु गोरखनाथ, चरपट नाथ, भरतरीनाथ, गोपीनाथ आदि सिद्धों का आना हुआ था और यहां पर वह कुछ समय के लिए ठहरे थे।
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कई मंदिर कई रहस्यों से भरे पड़े हैं। इसके वैज्ञानिक पहलू भी हैं लेकिन देव आस्था इन वैज्ञानिक पहलुओं पर हावी रहती है। ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध मंडी जिले के करसोग क्षेत्र में गढ़पति नाग च्वासी के मंदिर में आज भी मन्नतें पूरी होने पर चिमटे चढ़ाए जाते हैं। लोगों की देव आस्था इतनी गहरी है कि कतांडा के पास ऊंची चोटी पर स्थित नाग च्वासी के मंदिर के पास चिमटा मारने से वह पानी से गीला हो जाता है। ऐसे में यहां पर सैकड़ों छोटे बड़े चिमटे श्रद्धालुओं ने मन्नतें पूरी होने पर चढ़ाए हैं। गढ़पति नाग च्वासी के इतिहास और मान्यता पर नजर दौड़ाएं तो इस स्थान पर स्वयं गुरु गोरखनाथ, चरपट नाथ, भरतरीनाथ, गोपीनाथ आदि सिद्धों का आना हुआ था और यहां पर वह कुछ समय के लिए ठहरे थे।
चिमटा सिद्ध नाथ परंपरा का चिन्ह माना जाता है। इसलिए इनके मंदिर में आज तक हजारों छोटे-बड़े चिमटे देखे जा सकते हैं। इन सिद्धाें का प्रभाव आज भी यहां पर देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां शिलारूप में विराजमान सिद्घों के दर्शन मात्र से ही लोगों के दुख, तकलीफ व कष्ट दूर हो जाते हैं। उनकी सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं। दूर-दूर से लोग यहां बड़ी संख्या में मन्नतें मांगने आते हैं। मन्नतें पूरी होने पर सिद्ध बाबा को चिमटे भेंट किए जाते हैं। दो से लेकर नौ फीट लंबे चिमटे देख भक्तजन मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। चिमटों की संख्या अधिक होने के बाद इन चिमटों को महोग स्थित नाग कोठी में कमरे के बराबर विशाल कड़ाही में रखा जाता है।
यह है मान्यता
किंवदंती के अनुसार गुरु गोरखनाथ अपने चेलों सहित जब इस स्थान पर आए तो यहां पर पानी नहीं होने के चलते उनके चेलों को प्यास के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस पर इनमें से किसी सिद्ध के द्वारा अपने चिमटे से सूखी जमीन पर चिमटा मारा तो पानी की धारा बहने लगी। ऐसा दावा है कि आज भी अगर यहां पर इस जमीन पर चिमटे को मारा जाए तो पानी निकल आता है, जबकि यहां पर पानी का कहीं कोई स्त्रोत भी नहीं है। मान्यता है कि इस मंदिर में संतान प्राप्ति और भूत-पिशाच से मुक्ति के लिए की गई मन्नतें पूरी होती हैं।
एक अन्य मान्यता
मंदिर कमेटी के कार्यकर्ता टीसी ठाकुर का कहना है कि गढ़पति नाग च्वासी सिद्ध का देवरथ भी महोग स्थित कोठी में विराजमान है। देवरथ में फिरनु की दो जुलाहियां भी मुखौटे रूप में विराजती हैं। मान्यता है कि किसी समय नाग देवता के सतलुज नदी पर शाही स्नान के दौरान यह दोनों नाग देवता के साथ आई थीं। नाग देवता ने उन्हें अपने रथ पर मध्य भाग में स्थान दिया है। नाग च्वासी के सहयोगी गण (चाकर) मुख्य चाकर (जेठा) छौई ,ढबराची, खोड़ू तथा लूहरी नाग भी हैं।