आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
विस्तार
फुटबाल खेल में डूरंड कप का इतिहास हिमाचल प्रदेश से जुड़ा हुआ है। करीब 134 साल पहले वर्ष 1888 में डूरंड कप की शुरूआत शिमला के अनाडेल और सोलन जिले के डगशाई मैदान से हुई थी। ब्रिट्रिश सेना के अधिकारी मोर्टिमर डूरंड के नाम से डूरंड कप करवाया गया था जो 1884 से 1894 तक भारत के विदेश सचिव रहे। उस समय वह ब्रिटिश भारत के हिल स्टेशन शिमला में बीमारी की वजह से भर्ती थे।
स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए खेल के मूल्य को समझने के बाद उन्होंने भारत में खेल प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करने का फैसला किया। यह टूर्नामेंट बिटिश सैनिकों के बीच स्वास्थ्य और फिटनेस बनाए रखने के लिए शुरू किया गया था। सबसे पहले यह प्रभावी रूप से एक आर्मी टूर्नामेंट था और भारत में बड़े पैमाने पर ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों के लिए ही करवाया जाता था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह टूर्नामेंट सभी गैर-सैन्य टीमों के लिए भी खोला गया।
पहले फाइनल में रॉयल स्काउट्स ने हाईलैंड लाइट इन्फेंट्री को 2-1 से हराया था। इसके बाद कई साल तक डूरंड कप में विदेशी और भारतीय खिलाड़ी शामिल हुए। देश आजाद हुआ तो भी डूरंड कप का आयोजन होता रहा। आज भी यह फुटबाल प्रतियोगिता होती है। यह एशिया का पहला सबसे पुराना फुटबॉल टूर्नामेंट है। डूरंड कप भारत के सबसे पुराने फुटबॉल टूर्नामेंट में से एक है और इंग्लिश एफए-कप और स्कॉटिश एफए-कप के बाद पूरी दुनिया में तीसरा सबसे पुराना फुटबॉल टूर्नामेंट है।
अगस्त 2022 में हुए डूरंड कप टूर्नामेंट में बेगलूरू ने मुंबई की टीम को हराया। डूरंड कप की सबसे सफल टीमें मोहन बागान और ईस्ट बंगाल है। दोनों ने 16 बार डूरंड कप जीता है। डूरंड फुटबाल टूर्नामेंट सोसाइटी और अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ इस प्रतियोगिता का आयोजन करवाते हैं।