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शीत मरुस्थल स्पीति घाटी में आज भी लोगों ने गलीचे के निर्माण व खेत जोतने के लिए याक पाल रखे हैं। इसके ऊन (खुलु) से आज भी नर्म गलीचा तैयार किया जाता है। वहीं खेतों की बिजाई के लिए भी आज के इस आधुनिकता के दौर में स्पीति घाटी के लोसर, क्यामो, हंसा, क्याटो और चिच्चम के साथ पिनवैली में नर और मादा याक देखे जा सकते हैं।
शीत मरुस्थल स्पीति घाटी में आज भी लोगों ने गलीचे के निर्माण व खेत जोतने के लिए याक पाल रखे हैं। इसके ऊन (खुलु) से आज भी नर्म गलीचा तैयार किया जाता है। वहीं खेतों की बिजाई के लिए भी आज के इस आधुनिकता के दौर में स्पीति घाटी के लोसर, क्यामो, हंसा, क्याटो और चिच्चम के साथ पिनवैली में नर और मादा याक देखे जा सकते हैं।
शीत मरुस्थल में पाए जाने वाले इस पशु की उम्र महज 18 वर्ष तक ही है जो बर्फ में माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में रहता है। बताया जा रहा है यह एक प्रकार की गाय जाति का जंगली पशु है जिसकी कुछ जातियां पालतू हैं। लेकिन कुछ अभी भी जंगली अवस्था में ही जंगलों में ही रहती हैं। भारत में स्पीति के साथ उतरी लद्दाख के आसपास में याक 15 से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर पाया जाता है।
याक भारत के उतरी क्षेत्रों में पाया जाने वाला जंतु है। इनके शरीर की बनावट ऐसी है जो शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में जीवित रह सकते हैं। घास और छोटे पौधे इसका आहार है। तिब्बती लोगों के लिए याक एक बेहद उपयोगी पशु है और इसके दूध का सेवन करते हैं। याक सवारी और सामान ढोने के काम में भी इस्तेमाल होता है। स्पीति से लोसर गांव के वीर वेद्यया और क्यामो के तंजिन ने बताया कि स्पीति घाटी के लोसर, क्यामो, हंसा, क्याटो, चिच्चम और पिनवैली में लोग आज भी याक को पाल रहे हैं।