स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में वैसे तो महात्मा गांधी का मथुरा आगमन दो बार हुआ है, लेकिन उन्होंने यहां एक रात पुलिस की कैद में गुजारी थी। इस ऐतिहासिक घटना का उल्लेख गांधीजी की आत्मकथा सहित उनकी जीवनी पर लिखी अनेक पुस्तकों में मिलता है। लेकिन इस यादगार घटना से जुड़े स्थल को सहेजने का काम स्थानीय प्रशासन नहीं कर सका है।
यह घटना उन दिनों की है, जब स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए और राष्ट्रीय भावना को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा फरवरी 1919 में आतंकवादी अपराध अधिनियम लागू किया गया था। आंदोलनकारियों ने इस कानून को काले कानून की संज्ञा दी। ब्रिटिश हुकूमत ने इस कानून के तहत मजिस्ट्रेटों को अधिकार दिया कि वह किसी भी शख्स को गिरफ्तार कर उसे अनिश्चित समय के लिए जेल में डाल सकते हैं। विरोध में गांधीजी ने 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था। उनके इस आह्वान पर बंबई (मुंबई), दिल्ली, अमृतसर और लाहौर सहित देशभर में जबरदस्त हड़ताल और पुलिस ने सत्यागृहियों पर फायरिंग की।
गांधीजी ने बंबई, दिल्ली और अमृतसर की रेल यात्रा करने का फैसला किया। इसकी भनक लगते ही अंग्रेज अफसरों ने उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी कर ली। हालांकि इसकी जानकारी रेलमार्ग द्वारा मथुरा से गुजरते वक्त छाता-कोसी स्टेशन पर आचार्य गिडवानी ने महात्मा गांधी को दे दी थी। सूचना के बाद भी उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी। पलवल स्टेशन पर उन्हें यह कहकर गिरफ्तार किया गया कि उनके पंजाब में प्रवेश करने से अशांति बढ़ सकती है। पुलिस ने पलवल स्टेशन पर उन्हें ट्रेन से उतारते हुए दिल्ली की ओर से आने वाली ट्रेन से बिठाकर मथुरा लाया गया। एक रात मथुरा में गांधीजी पुलिस बैरक में रखे गए। सुबह होने पर मालगाड़ी से उन्हें राजस्थान ले गए।
इस ऐतिहासिक घटना की याद ताजा रखने के लिए पलवल रेलवे स्टेशन पर प्रशासन द्वारा बोर्ड लगाया गया है, जिस पर घटना का संपूर्ण विवरण पढ़ने को मिलता है, लेकिन मथुरा प्रशासन इससे पूरी तरह अंजान है। मथुरा पुलिस बैरक में इस ऐतिहासिक घटना से जुड़ा कोई स्मारक या प्रतीक भी मौजूद नहीं है।
यह घटना भले ही गांधीजी से जुड़ी पुस्तकों में पढ़ने को मिलती है, लेकिन इसकी कोई स्मृति मौजूद नहीं है। स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं की याद ताजा बनाए रखने के लिए कुछ आवश्यक कदम उठाएं।
- डॉ. अशोक बंसल, रिटायर्ड प्रोफेसर बीएसए कॉलेज।
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स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में वैसे तो महात्मा गांधी का मथुरा आगमन दो बार हुआ है, लेकिन उन्होंने यहां एक रात पुलिस की कैद में गुजारी थी। इस ऐतिहासिक घटना का उल्लेख गांधीजी की आत्मकथा सहित उनकी जीवनी पर लिखी अनेक पुस्तकों में मिलता है। लेकिन इस यादगार घटना से जुड़े स्थल को सहेजने का काम स्थानीय प्रशासन नहीं कर सका है।
यह घटना उन दिनों की है, जब स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए और राष्ट्रीय भावना को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा फरवरी 1919 में आतंकवादी अपराध अधिनियम लागू किया गया था। आंदोलनकारियों ने इस कानून को काले कानून की संज्ञा दी। ब्रिटिश हुकूमत ने इस कानून के तहत मजिस्ट्रेटों को अधिकार दिया कि वह किसी भी शख्स को गिरफ्तार कर उसे अनिश्चित समय के लिए जेल में डाल सकते हैं। विरोध में गांधीजी ने 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था। उनके इस आह्वान पर बंबई (मुंबई), दिल्ली, अमृतसर और लाहौर सहित देशभर में जबरदस्त हड़ताल और पुलिस ने सत्यागृहियों पर फायरिंग की।