अगस्त क्रांति के दौरान ताजनगरी धधक उठी थी। उस समय यहां कई ऐसी घटनाएं हुई थीं, जिससे अंग्रेज अफसर दहशत में आ गए थे। उनमें सबसे ज्यादा हलचल आयकर दफ्तर फूंके जाने से मची थी। यह काम बहुत मुश्किल था, लेकिन क्रांति की मशाल थाम आजादी के दीवाने कहां रुकने वाले थे। पुलिस का सख्त पहरा होने के बावजूद दफ्तर को आग लगाई गई थी।
अगस्त क्रांति आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त, 1942 को हुई थी। आगरा में उस समय आयकर दफ्तर उड़ेसर हाउस के पास एक कोठी में था। दफ्तर फूंकने में क्रांतिकारी प्रेमदत्त्त पालीवाल, पंडित श्रीराम शर्मा के दल से मनोहर लाल शर्मा, बसंत लाल झा, गोपीनाथ शर्मा, रामशरण सिंह, विजय शरण चौधरी, रामानंदाचार्य, पीतांबर पंत, रवि वर्मा शामिल थे।
ये भी पढ़ें- अगस्त क्रांति की ज्वाला में जल उठा था बरहन स्टेशन, पढ़िए आजादी के दीवानों के जज्बे की दास्तां
तारा सिंह धाकरे दल से रामबाबू पाठक, इंद्रपाल सिंह, शेख इनाम और पुरुषोत्तम गौतम थे। क्रांतिकारियों ने आयकर दफ्तर फूंकने के लिए तीन बार रात में प्रयास किया गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद पुलिस का कड़ा पहरा लगा दिया गया। लेकिन क्रांतिकारियों ने पहरेदारों को काबू कर लिया गया।
विजयशरण चौधरी ने माचिस खोलकर तारा सिंह धाकरे को दी, उन्होंने अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी। अन्य साथियों ने रजिस्टर और अन्य कागज आग में डाल दिए। इसके बाद सभी क्रांतिकारी महाराजा अवागढ़ के बाग से लगी बाउंड्री के पास इकट्ठे होकर जलते आयकर दफ्तर की लपटों को देखते रहे। पूरा दफ्तर जल गया था।
जिले की बाह तहसील में 27 अगस्त, 1942 को लीलाधर उर्फ ककुआ ने जनता के सामने उत्तेजक भाषण देते हुए अंग्रेजी हुकूमत का जंगल कानून तोड़ने का आह्वान किया। इसके बाद 500 लोगों ने वन विभाग के दफ्तर में तोड़फोड़ कर दी थी। कर्मचारियों के क्वार्टर ढहा दिए थे। बिचकोली में सरकारी दफ्तर को आग लगा दी थी।
इन घटनाओं के तुरंत बाद गिरफ्तारियां शुरू हो गई। लीलाधर, अटल बिहारी वाजपेयी, उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी और शोभाराम गिरफ्तार हुए थे। उधर, क्रांति की ज्वाला फैलती जा रही थी। कागारौल में सिंचाई विभाग का दफ्तर फूंक दिया गया था।
आगरा-धौलपुर रेल मार्ग पर स्टेशन से एक किलोमीटर दूर गांव नगरा पाडम के पन्नालाल, ख्यालीराम, भुम्म सिंह ने पटरी उखाड़ दी थी। प्रशासन सकते में आ गया था। गांव पर 10 हजार का जुर्माना किया गया। इसकी वसूली के लिए स्त्री और बच्चों तक पर बर्बरता की गई थी। इसके बावजूद क्रांतिकारियों के कदम पीछे नहीं हटे थे।
विस्तार
अगस्त क्रांति के दौरान ताजनगरी धधक उठी थी। उस समय यहां कई ऐसी घटनाएं हुई थीं, जिससे अंग्रेज अफसर दहशत में आ गए थे। उनमें सबसे ज्यादा हलचल आयकर दफ्तर फूंके जाने से मची थी। यह काम बहुत मुश्किल था, लेकिन क्रांति की मशाल थाम आजादी के दीवाने कहां रुकने वाले थे। पुलिस का सख्त पहरा होने के बावजूद दफ्तर को आग लगाई गई थी।
अगस्त क्रांति आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त, 1942 को हुई थी। आगरा में उस समय आयकर दफ्तर उड़ेसर हाउस के पास एक कोठी में था। दफ्तर फूंकने में क्रांतिकारी प्रेमदत्त्त पालीवाल, पंडित श्रीराम शर्मा के दल से मनोहर लाल शर्मा, बसंत लाल झा, गोपीनाथ शर्मा, रामशरण सिंह, विजय शरण चौधरी, रामानंदाचार्य, पीतांबर पंत, रवि वर्मा शामिल थे।
ये भी पढ़ें- अगस्त क्रांति की ज्वाला में जल उठा था बरहन स्टेशन, पढ़िए आजादी के दीवानों के जज्बे की दास्तां
तारा सिंह धाकरे दल से रामबाबू पाठक, इंद्रपाल सिंह, शेख इनाम और पुरुषोत्तम गौतम थे। क्रांतिकारियों ने आयकर दफ्तर फूंकने के लिए तीन बार रात में प्रयास किया गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद पुलिस का कड़ा पहरा लगा दिया गया। लेकिन क्रांतिकारियों ने पहरेदारों को काबू कर लिया गया।
विजयशरण चौधरी ने माचिस खोलकर तारा सिंह धाकरे को दी, उन्होंने अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी। अन्य साथियों ने रजिस्टर और अन्य कागज आग में डाल दिए। इसके बाद सभी क्रांतिकारी महाराजा अवागढ़ के बाग से लगी बाउंड्री के पास इकट्ठे होकर जलते आयकर दफ्तर की लपटों को देखते रहे। पूरा दफ्तर जल गया था।