आगरा। ताजनगरी में अगस्त क्रांति की ज्वाला तेजी से धधक रही थी। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का जवाब देने के लिए क्रांतिकारियों ने बरहन स्टेशन को निशाना बनाने की योजना बनाई। 14 अगस्त, 1942 की दोपहर सैकड़ों लोगों की भीड़ स्टेशन पहुंच गई और पूरे परिसर को आग के हवाले कर दिया। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया। दिल्ली तक इसकी गूंज सुनाई दी।
पूरे देश में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे गूंज रहे थे। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जनाक्रोश लगातार भड़क रहा था। ताजनगरी में परशुराम की शहादत के बाद आमजन भी सड़क पर उतर आए थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी सरोज गौरिहार बताती हैं कि दस से 12 लोगों की अलग-अलग टुकड़ियों ने स्टेशन को निशाना बनाया और आग लगा दी। पुलिसकर्मियों को भीड़ ने वहां से भगा दिया। स्टेशन फूंकने के बाद भीड़ ने सरकारी बीज गोदाम और डाकघर की ओर रुख किया था। उस समय करीब एक हजार मन गल्ला भीड़ ने बीज गोदाम से निकाल लिया और जरूरतमंदों को बांट दिया।
उन्होंने बताया कि उस समय तक काफी संख्या में पुलिसकर्मी बरहन पहुंच चुके थे। क्रांतिकारियों का जोश देख कर उनके कदम रुक गए। दूर से ही फायरिंग शुरू हो गई। गोलीबारी के बीच बैनई गांव के केवल सिंह शहीद हो गए और आधा दर्जन क्रांतिकारी घायल हो गए। कुछ लोगों ने स्टेशन से गुजर रहीं मालगाड़ियों को रुकवा लिया और उसमें लदा अंग्रेजों का राशन लूट लिया। कई घंटों तक बरहन में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया।
पुलिस ने मकानों पर दागीं गोलियां
स्टेशन में आगजनी व अन्य सरकारी इमारतों में हुए आंदोलन के बाद अंग्रेज हुकूमत ने कस्बे में अभियान शुरू किया। अधिकांश घरों में पुरुष नहीं थे। बुजुर्गों और महिलाओं पर जुल्म किए गए। कई घरों पर गोलियां दागी गईं। पुलिसिया उत्पीड़न का यह सिलसिला अगले कुछ दिनों तक चलता रहा। इस दौरान पुलिस ने शक के आधार पर कई लोगों को गिरफ्तार भी किया।
शहर में बनी थी योजना
बरहन स्टेशन फूंकने की रणनीति शहर में ही तैयार हुई थी। एक गुप्त स्थान पर बैठक के बाद देर रात ही क्रांतिकारियों की टुकड़ियां बरहन रवाना हो गई थीं। वहां आसपास के अन्य गांवों के लोगों को एकत्रित किया और सुबह से ही आंदोलन शुरू हो गया था।
-शशि शिरोमणी, क्रांतिकारियों के परिजन
आगरा। ताजनगरी में अगस्त क्रांति की ज्वाला तेजी से धधक रही थी। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का जवाब देने के लिए क्रांतिकारियों ने बरहन स्टेशन को निशाना बनाने की योजना बनाई। 14 अगस्त, 1942 की दोपहर सैकड़ों लोगों की भीड़ स्टेशन पहुंच गई और पूरे परिसर को आग के हवाले कर दिया। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया। दिल्ली तक इसकी गूंज सुनाई दी।
पूरे देश में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे गूंज रहे थे। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जनाक्रोश लगातार भड़क रहा था। ताजनगरी में परशुराम की शहादत के बाद आमजन भी सड़क पर उतर आए थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी सरोज गौरिहार बताती हैं कि दस से 12 लोगों की अलग-अलग टुकड़ियों ने स्टेशन को निशाना बनाया और आग लगा दी। पुलिसकर्मियों को भीड़ ने वहां से भगा दिया। स्टेशन फूंकने के बाद भीड़ ने सरकारी बीज गोदाम और डाकघर की ओर रुख किया था। उस समय करीब एक हजार मन गल्ला भीड़ ने बीज गोदाम से निकाल लिया और जरूरतमंदों को बांट दिया।
उन्होंने बताया कि उस समय तक काफी संख्या में पुलिसकर्मी बरहन पहुंच चुके थे। क्रांतिकारियों का जोश देख कर उनके कदम रुक गए। दूर से ही फायरिंग शुरू हो गई। गोलीबारी के बीच बैनई गांव के केवल सिंह शहीद हो गए और आधा दर्जन क्रांतिकारी घायल हो गए। कुछ लोगों ने स्टेशन से गुजर रहीं मालगाड़ियों को रुकवा लिया और उसमें लदा अंग्रेजों का राशन लूट लिया। कई घंटों तक बरहन में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया।
पुलिस ने मकानों पर दागीं गोलियां
स्टेशन में आगजनी व अन्य सरकारी इमारतों में हुए आंदोलन के बाद अंग्रेज हुकूमत ने कस्बे में अभियान शुरू किया। अधिकांश घरों में पुरुष नहीं थे। बुजुर्गों और महिलाओं पर जुल्म किए गए। कई घरों पर गोलियां दागी गईं। पुलिसिया उत्पीड़न का यह सिलसिला अगले कुछ दिनों तक चलता रहा। इस दौरान पुलिस ने शक के आधार पर कई लोगों को गिरफ्तार भी किया।
शहर में बनी थी योजना
बरहन स्टेशन फूंकने की रणनीति शहर में ही तैयार हुई थी। एक गुप्त स्थान पर बैठक के बाद देर रात ही क्रांतिकारियों की टुकड़ियां बरहन रवाना हो गई थीं। वहां आसपास के अन्य गांवों के लोगों को एकत्रित किया और सुबह से ही आंदोलन शुरू हो गया था।
-शशि शिरोमणी, क्रांतिकारियों के परिजन