पद्म भूषण अमृत लाल नागर वैसे तो पूरे लखनवी थे लेकिन आगरा उनकी रगों में बसता था। 17 अगस्त, 1916 को गोकुलपुरा में जन्मे और कुछ समय बाद नवाबों के शहर में जा बसे। ब्रज से उनका नाता कभी नहीं टूटा। यहां के लेखकों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों के साथ अकसर गुफ्तगू करने चले आते थे। अपनी पुत्री अचला नागर का विवाह भी उन्होंने मथुरा के एक प्रतिष्ठित परिवार में किया। शुरुआत में उन्होंने मेघराज इंद्र के नाम से कविताएं और तस्लीम लखनवी के नाम से व्यंगपूर्ण स्केच और निबंध लिखे।
हिंदी के दिग्गज साहित्यकारों में शुमार अमृत लाल नागर की पढ़ाई हाईस्कूल तक हुई थी। फिर स्वाध्याय से साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व व समाजशास्त्र का अध्ययन किया। कुछ समय तक नौकरी की, बाद में लेखन को ही पेशा बनाया। उन्होंने पत्रिका चकल्लस का संपादन किया और आकाशवाणी में बतौर ड्रामा प्रोड्यूसर कार्य किया। साल 1932 से वह पूरी तरह लेखन से जुड़ गए। उनकी भावनात्मक और चित्रात्मक लेखन शैली आज भी साहित्यकारों के बीच अलग पहचान रखती है।
‘मानस का हंस’ उपन्यास आज भी पाठकों की पहली पसंद है। नाच्यौ बहुत गोपाल, खंजन नयन, महाकाल, भूख, बूंद और समुद्र, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपूर, अमृत और विष, सात घूंघट वाला मुखड़ा... उनकी अमूल्य कृतियां हैं। कहानी संग्रह में वाटिका, तुलाराम शास्त्री, सिकंदरा हार गया, एक दिल हजार अफसाने, नाटक युगावतार, उतार-चढ़ाव, चढ़त न दूजौ रंग और व्यंग में नवाबी मसनद, चकल्लस, हम फिदाये लखनऊ काफी चर्चित रहीं। उन्होंने बाल साहित्य में नटखट चाची, बाल महाभारत, अक्ल बड़ी या भैंस, सात भाई चंपा...का सृजन किया।
‘मानस का हंस’ उपन्यास आज भी पाठकों की पहली पसंद है। नाच्यौ बहुत गोपाल, खंजन नयन, महाकाल, भूख, बूंद और समुद्र, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपूर, अमृत और विष, सात घूंघट वाला मुखड़ा... उनकी अमूल्य कृतियां हैं। कहानी संग्रह में वाटिका, तुलाराम शास्त्री, सिकंदरा हार गया, एक दिल हजार अफसाने, नाटक युगावतार, उतार-चढ़ाव, चढ़त न दूजौ रंग और व्यंग में नवाबी मसनद, चकल्लस, हम फिदाये लखनऊ काफी चर्चित रहीं। उन्होंने बाल साहित्य में नटखट चाची, बाल महाभारत, अक्ल बड़ी या भैंस, सात भाई चंपा...का सृजन किया।
तमाम पुरस्कारों से नवाजा
साहित्यकार अमृत लाल नागर को पद्म भूषण के अलावा काशी नागरी प्रचारिणी सभा, प्रेमचंद पुरस्कार, अखिल भारतीय वीर सिंह देव, साहित्य वाचस्पति और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्था के सर्वोच्च भारत भारती सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया। सात वर्षों के दौरान 14 फिल्में भी लिखीं, जिनमें से आठ सुपरहिट रहीं। 23 फरवरी, 1990 को उनका निधन हुआ।
आमजन से जुड़े हुए थे
पिताजी की लेखनी बहुआयामी थी। लखनऊ में रहते थे लेकिन आगरा और मथुरा से उनका विशेष लगाव था। आमजन से जुड़े हुए थे। लोक कलाकारों की बहुत इज्जत करते थे। घर पर अकसर ही साहित्यकारों का आना-जाना रहता था।
- अचला नागर, वरिष्ठ लेखिका (पुत्री)
बहुत प्यारा था उन्हें ब्रज
बचपन उनके सानिध्य में बीता। वह महान लेखक और विचारक थे। ब्रज उनको बहुत प्यारा था। अकसर ही यहां आते थे। उनकी कहानियों में ब्रज की गलियों का भी जिक्र है।
- सिद्धार्थ नागर, फिल्म निर्देशक (नवासे)
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विस्तार
पद्म भूषण अमृत लाल नागर वैसे तो पूरे लखनवी थे लेकिन आगरा उनकी रगों में बसता था। 17 अगस्त, 1916 को गोकुलपुरा में जन्मे और कुछ समय बाद नवाबों के शहर में जा बसे। ब्रज से उनका नाता कभी नहीं टूटा। यहां के लेखकों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों के साथ अकसर गुफ्तगू करने चले आते थे। अपनी पुत्री अचला नागर का विवाह भी उन्होंने मथुरा के एक प्रतिष्ठित परिवार में किया। शुरुआत में उन्होंने मेघराज इंद्र के नाम से कविताएं और तस्लीम लखनवी के नाम से व्यंगपूर्ण स्केच और निबंध लिखे।
हिंदी के दिग्गज साहित्यकारों में शुमार अमृत लाल नागर की पढ़ाई हाईस्कूल तक हुई थी। फिर स्वाध्याय से साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व व समाजशास्त्र का अध्ययन किया। कुछ समय तक नौकरी की, बाद में लेखन को ही पेशा बनाया। उन्होंने पत्रिका चकल्लस का संपादन किया और आकाशवाणी में बतौर ड्रामा प्रोड्यूसर कार्य किया। साल 1932 से वह पूरी तरह लेखन से जुड़ गए। उनकी भावनात्मक और चित्रात्मक लेखन शैली आज भी साहित्यकारों के बीच अलग पहचान रखती है।
‘मानस का हंस’ उपन्यास आज भी पाठकों की पहली पसंद है। नाच्यौ बहुत गोपाल, खंजन नयन, महाकाल, भूख, बूंद और समुद्र, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपूर, अमृत और विष, सात घूंघट वाला मुखड़ा... उनकी अमूल्य कृतियां हैं। कहानी संग्रह में वाटिका, तुलाराम शास्त्री, सिकंदरा हार गया, एक दिल हजार अफसाने, नाटक युगावतार, उतार-चढ़ाव, चढ़त न दूजौ रंग और व्यंग में नवाबी मसनद, चकल्लस, हम फिदाये लखनऊ काफी चर्चित रहीं। उन्होंने बाल साहित्य में नटखट चाची, बाल महाभारत, अक्ल बड़ी या भैंस, सात भाई चंपा...का सृजन किया।