निजी स्कूलों के मनमानी ढंग से फीस बढ़ाने पर नया सत्र शुरू होने के साथ ही विरोध शुरू हो गया था मगर फिर भी अप्रैल भर प्रशासन के अफसर अभिभावकों के साथ टालमटोल करते रहे। सूबे भर से इस तरह की शिकायतें शासन ने अध्यादेश जारी कर दिया, लेकिन शासन की ओर से सख्ती नहीं दिखाई गई लिहाजा अफसर अध्यादेश जारी होने के बाद भी खानापूरी करते रहे, लेकिन चुनावी मौसम शुरू होने के साथ अब अचानक शासन के सख्त होने के बाद अधिकारियों में भी खलबली मच गई है। अध्यादेश पर अब तक कितना पालन हुआ, यह रिपोर्ट डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने नौ जुलाई को होने वाली वीडियो कान्फ्रेंस में तलब की है। लिहाजा आनन-फानन में स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
डिप्टी सीएम को वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान यह ब्योरा दिया जाना है कि कितने स्कूलों ने फीस स्ट्रक्चर अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया और कितनों ने नहीं। डिप्टी सीएम का पत्र आते ही स्कूल संचालकों को फीस स्ट्रक्चर वेबसाइट पर अपलोड का फरमान जारी किया गया। शुक्रवार सुबह से ही कार्रवाई की चेतावनी जारी करते हुए स्कूल संचालकों को फोन भी किए गए। शाम तक इसका असर दिखा और 30 से ज्यादा स्कूलों ने फीस का ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड भी कर दिया। बाकी स्कूलों को शनिवार तक हर हाल में ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड करने के निर्देश दिए गए हैं। अधिकारी वीडियो कान्फ्रेंस से पहले रिकॉर्ड पूरे करने में जुटे हैं ताकि वो अपना गला बचा सकें।
बता दें कि शासन ने नौ अप्रैल को अध्यादेश जारी किया था, लेकिन अधिकारी टालमटोल करते रहे। मंडलीय समिति और जिला समिति का गठन हुआ। डीआईओएस कार्यालय पर कंट्रोल रूम बनाया गया। जिला समिति नेे सभी स्कूलों को नोटिस जारी किया कि वे अपनी फीस का स्ट्रक्चर वेबसाइट पर अपलोड करें। किसी भी स्कूल पर इसका असर नहीं हुआ। अभी तक स्कूलों ने वेबसाइट पर फीस स्ट्रक्चर अपलोड नहीं किया। तीन माह बाद जब शासन ने अध्यादेश की फिक्र ली तो तब जाकर अधिकारियों में खलबली मची।
किसी भी स्कूल की वेबसाइट होे सकती है चेक
सूत्रों की मानें तो डिप्टी सीएम किसी भी स्कूल की वेबसाइट चेक कर सकते हैं। उनके पत्र में इस बात का हवाला दिया गया है। इसलिए अधिकारी इस बात में जुटे हैं कि सभी स्कूलों की फीस वेबसाइट पर अपलोड हो जाए। फीस के अलावा शिक्षकों का ब्योरा भी वेबसाइट पर अपलोड किया जाना है।
बैंक स्टेटमेंट का सीए की ऑडिट रिपोर्ट से होगा मिलान
स्कूलों का फर्जीवाड़ा पकड़ने के लिए अब जिला समिति ने सभी स्कूलों से फीस के खाते का स्टेटमेंट मांगा है। तीन साल का स्टेटमेंट और सीए की ऑडिट रिपोर्ट का मिलान किया जाएगा जिसके बाद पता चलेगा कि किस स्कूल ने वास्तव में कितनी फीस वसूली। शिक्षकों को कितना वेतन दिया। इसके लिए स्कूलों को शनिवार तक का वक्त दिया है। 2015 में ली गई फीस को आधार मानकर देखा जाएगा कि पिछले तीन वर्षों में स्कूलों ने कितनी फीस बढ़ाई। अगर स्कूलों ने 9.28 फीसदी से ज्यादा फीस वसूली होगी तो उसको समायोजित किया जाएगा। अगर बच्चा 2015 से उसी स्कूल में पढ़ रहा है तो उस साल से फीस समायोजित की जाएगी।
फाइन और री-एडमिशन फीस तो छिपा गए स्कूल
सभी स्कूल हर साल री-एडमिशन फीस वसूलते हैं। जिला समिति के सामने इस फीस का कोई भी रिकार्ड नहीं दिया गया जबकि हर साल लाखों रुपये री-एडमिशन में जता होता है। इतना ही नहीं फीस लेट होने पर फाइन भी वसूलते हैं, रिकॉर्ड में उसका भी कोई जिक्र नहीं किया गया। अभिभावकों ने मांग उठाई कि उस फीस का भी स्कूलों से हिसाब लिया जाए।
कंट्रोलरूम में आई थी 80 से ज्यादा शिकायतें
डीआईओएस कार्यालय पर बने कंट्रोल में 80 से ज्यादा शिकायतें आईं थी। जिनको मंडलीय समिति में भेजा गया। हालांकि किसी भी शिकायत को लेकर स्कूल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। स्कूलों ने पहले क्वार्टर भी मनमर्जी से फीस वसूली और अब दूसरे क्वार्टर की फीस जमा करने की बारी भी आ गई है। अभी तक अध्यादेश को लेकर अधिकारी मीटिंग और कागजी कार्रवाई में ही जुटे हैं।
निजी स्कूलों के मनमानी ढंग से फीस बढ़ाने पर नया सत्र शुरू होने के साथ ही विरोध शुरू हो गया था मगर फिर भी अप्रैल भर प्रशासन के अफसर अभिभावकों के साथ टालमटोल करते रहे। सूबे भर से इस तरह की शिकायतें शासन ने अध्यादेश जारी कर दिया, लेकिन शासन की ओर से सख्ती नहीं दिखाई गई लिहाजा अफसर अध्यादेश जारी होने के बाद भी खानापूरी करते रहे, लेकिन चुनावी मौसम शुरू होने के साथ अब अचानक शासन के सख्त होने के बाद अधिकारियों में भी खलबली मच गई है। अध्यादेश पर अब तक कितना पालन हुआ, यह रिपोर्ट डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने नौ जुलाई को होने वाली वीडियो कान्फ्रेंस में तलब की है। लिहाजा आनन-फानन में स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
डिप्टी सीएम को वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान यह ब्योरा दिया जाना है कि कितने स्कूलों ने फीस स्ट्रक्चर अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया और कितनों ने नहीं। डिप्टी सीएम का पत्र आते ही स्कूल संचालकों को फीस स्ट्रक्चर वेबसाइट पर अपलोड का फरमान जारी किया गया। शुक्रवार सुबह से ही कार्रवाई की चेतावनी जारी करते हुए स्कूल संचालकों को फोन भी किए गए। शाम तक इसका असर दिखा और 30 से ज्यादा स्कूलों ने फीस का ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड भी कर दिया। बाकी स्कूलों को शनिवार तक हर हाल में ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड करने के निर्देश दिए गए हैं। अधिकारी वीडियो कान्फ्रेंस से पहले रिकॉर्ड पूरे करने में जुटे हैं ताकि वो अपना गला बचा सकें।
बता दें कि शासन ने नौ अप्रैल को अध्यादेश जारी किया था, लेकिन अधिकारी टालमटोल करते रहे। मंडलीय समिति और जिला समिति का गठन हुआ। डीआईओएस कार्यालय पर कंट्रोल रूम बनाया गया। जिला समिति नेे सभी स्कूलों को नोटिस जारी किया कि वे अपनी फीस का स्ट्रक्चर वेबसाइट पर अपलोड करें। किसी भी स्कूल पर इसका असर नहीं हुआ। अभी तक स्कूलों ने वेबसाइट पर फीस स्ट्रक्चर अपलोड नहीं किया। तीन माह बाद जब शासन ने अध्यादेश की फिक्र ली तो तब जाकर अधिकारियों में खलबली मची।
किसी भी स्कूल की वेबसाइट होे सकती है चेक
सूत्रों की मानें तो डिप्टी सीएम किसी भी स्कूल की वेबसाइट चेक कर सकते हैं। उनके पत्र में इस बात का हवाला दिया गया है। इसलिए अधिकारी इस बात में जुटे हैं कि सभी स्कूलों की फीस वेबसाइट पर अपलोड हो जाए। फीस के अलावा शिक्षकों का ब्योरा भी वेबसाइट पर अपलोड किया जाना है।
बैंक स्टेटमेंट का सीए की ऑडिट रिपोर्ट से होगा मिलान
स्कूलों का फर्जीवाड़ा पकड़ने के लिए अब जिला समिति ने सभी स्कूलों से फीस के खाते का स्टेटमेंट मांगा है। तीन साल का स्टेटमेंट और सीए की ऑडिट रिपोर्ट का मिलान किया जाएगा जिसके बाद पता चलेगा कि किस स्कूल ने वास्तव में कितनी फीस वसूली। शिक्षकों को कितना वेतन दिया। इसके लिए स्कूलों को शनिवार तक का वक्त दिया है। 2015 में ली गई फीस को आधार मानकर देखा जाएगा कि पिछले तीन वर्षों में स्कूलों ने कितनी फीस बढ़ाई। अगर स्कूलों ने 9.28 फीसदी से ज्यादा फीस वसूली होगी तो उसको समायोजित किया जाएगा। अगर बच्चा 2015 से उसी स्कूल में पढ़ रहा है तो उस साल से फीस समायोजित की जाएगी।
फाइन और री-एडमिशन फीस तो छिपा गए स्कूल
सभी स्कूल हर साल री-एडमिशन फीस वसूलते हैं। जिला समिति के सामने इस फीस का कोई भी रिकार्ड नहीं दिया गया जबकि हर साल लाखों रुपये री-एडमिशन में जता होता है। इतना ही नहीं फीस लेट होने पर फाइन भी वसूलते हैं, रिकॉर्ड में उसका भी कोई जिक्र नहीं किया गया। अभिभावकों ने मांग उठाई कि उस फीस का भी स्कूलों से हिसाब लिया जाए।
कंट्रोलरूम में आई थी 80 से ज्यादा शिकायतें
डीआईओएस कार्यालय पर बने कंट्रोल में 80 से ज्यादा शिकायतें आईं थी। जिनको मंडलीय समिति में भेजा गया। हालांकि किसी भी शिकायत को लेकर स्कूल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। स्कूलों ने पहले क्वार्टर भी मनमर्जी से फीस वसूली और अब दूसरे क्वार्टर की फीस जमा करने की बारी भी आ गई है। अभी तक अध्यादेश को लेकर अधिकारी मीटिंग और कागजी कार्रवाई में ही जुटे हैं।