कदौरा। कोरोना से जंग लड़ रहे संकट के कई सिपाहियों ने अपने रिश्तों पर भी मानो लॉकडाउन सा लगा रखा हो। कई के परिवार भी लॉकडाउन में फंसकर परेशानियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन ये यहां रहकर लॉकडाउन में फंसे लोगों की मदद करने में जुटे हैं। प्रस्तुत है, ऐसे ही दो संकट के सिपाहियों की आपबीती पर आधारित एक रिपोर्ट-
कदौरा थाने में तैनात दरोगा आलोक पाल की ड्यूटी एक माह से कभी कस्बे में लॉकडाउन का पालन कराने में तो कभी क्षेत्र में बने क्वारंटीन सेंटरों की निगरानी में लग रही है। व्यस्तता इतनी है कि कानपुर में रहने वाले परिवार के पास जाने की तो दूर उनसे बात करने की भी फुर्सत नहीं मिल रही है। देर रात जब खाली होते हैं तो परिवार सो चुका होता है।
आलोक बताते है कि माता-पिता की सेवा के लिए पत्नी पूनम सवा साल की बच्ची सुकृति के साथ बर्रा के तात्याटोपे नगर में रह रही है। कानपुर रेडजोन में है और पत्नी घर पर माता-पिता के लिए बेटे का भी फर्ज निभा रही है। जब कभी फोन पर वीडियो कॉल होती है तो सुकृति को गोद में दिखाते हुए नम आंखों से उसकी जुबां से सिर्फ इतना ही निकलता है कि घर कब आओगे, जिसे सुनकर उसे समझाना मुश्किल हो जाता है।
कदौरा क्षेत्र में एंबुलेंस में ईएमटी के पद पर तैनात गुलाब चंद्र का परिवार जौनपुर में रहता है, जो कि औरेंज जोन में है। गुलाब के मुताबिक, घर पर पत्नी रीना के अलावा बच्चे आयुषी (5), अंश (3) और पांच माह की बच्ची अर्पिता है। दिन में एक बार और फिर शाम को एक बार पूरा परिवार वीडियो कॉलिंग से जुड़ता है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ जब पत्नी अपनी चिंताओं को छिपाकर उनका हौसला बढ़ाती है तो वाकई दिल भर सा आता है।
एक महीने से वीडियो कॉल ही रिश्तों की डोर को मजबूती से बांधे हुए है। गुलाब बताते हैं कि रोजाना 6 से 7 मरीजों को कभी सीएचसी, पीएचसी और कभी कभी मेडिकल कालेज तक ले जाते हैं। जब कभी एंबुलेंस में ड्राइवर नहीं होता है तो वे स्वयं ड्राइविंग कर मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाने से भी पीछे नहीं हटते हैं।
कदौरा। कोरोना से जंग लड़ रहे संकट के कई सिपाहियों ने अपने रिश्तों पर भी मानो लॉकडाउन सा लगा रखा हो। कई के परिवार भी लॉकडाउन में फंसकर परेशानियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन ये यहां रहकर लॉकडाउन में फंसे लोगों की मदद करने में जुटे हैं। प्रस्तुत है, ऐसे ही दो संकट के सिपाहियों की आपबीती पर आधारित एक रिपोर्ट-
कदौरा थाने में तैनात दरोगा आलोक पाल की ड्यूटी एक माह से कभी कस्बे में लॉकडाउन का पालन कराने में तो कभी क्षेत्र में बने क्वारंटीन सेंटरों की निगरानी में लग रही है। व्यस्तता इतनी है कि कानपुर में रहने वाले परिवार के पास जाने की तो दूर उनसे बात करने की भी फुर्सत नहीं मिल रही है। देर रात जब खाली होते हैं तो परिवार सो चुका होता है।
आलोक बताते है कि माता-पिता की सेवा के लिए पत्नी पूनम सवा साल की बच्ची सुकृति के साथ बर्रा के तात्याटोपे नगर में रह रही है। कानपुर रेडजोन में है और पत्नी घर पर माता-पिता के लिए बेटे का भी फर्ज निभा रही है। जब कभी फोन पर वीडियो कॉल होती है तो सुकृति को गोद में दिखाते हुए नम आंखों से उसकी जुबां से सिर्फ इतना ही निकलता है कि घर कब आओगे, जिसे सुनकर उसे समझाना मुश्किल हो जाता है।
कदौरा क्षेत्र में एंबुलेंस में ईएमटी के पद पर तैनात गुलाब चंद्र का परिवार जौनपुर में रहता है, जो कि औरेंज जोन में है। गुलाब के मुताबिक, घर पर पत्नी रीना के अलावा बच्चे आयुषी (5), अंश (3) और पांच माह की बच्ची अर्पिता है। दिन में एक बार और फिर शाम को एक बार पूरा परिवार वीडियो कॉलिंग से जुड़ता है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ जब पत्नी अपनी चिंताओं को छिपाकर उनका हौसला बढ़ाती है तो वाकई दिल भर सा आता है।
एक महीने से वीडियो कॉल ही रिश्तों की डोर को मजबूती से बांधे हुए है। गुलाब बताते हैं कि रोजाना 6 से 7 मरीजों को कभी सीएचसी, पीएचसी और कभी कभी मेडिकल कालेज तक ले जाते हैं। जब कभी एंबुलेंस में ड्राइवर नहीं होता है तो वे स्वयं ड्राइविंग कर मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाने से भी पीछे नहीं हटते हैं।