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Independence Day 2020: Saibasu fighters hoisted the tricolor in front of the Firangi
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Independence Day 2020: सैबसू के सेनानियों ने फिरंगियों के सामने फहराया था तिरंगा
राहुल त्रिपाठी, अमर उजाला, कानपुर
Published by: प्रभापुंज मिश्रा
Updated Fri, 14 Aug 2020 01:54 PM IST
स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां शुरू
- फोटो : संजय गुप्ता
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उत्तर प्रदेश में कानपुर के बिल्हौर गंगा तट के पास बसे सैबसू गांव के वीरों ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण निभाई और फिरंगियों को खूब छकाया। अंग्रेजों ने सेनानियों को फांसी, उम्र कैद, जेल, कोड़ों और गांव-घर से बेदखल किया गया। गांव के लोग एकजुट न हो सके, इसके लिए फिरंगियों ने सैबसू गांव के मंदिरों, कुओं पर सिपाहियों की तैनाती कर दी थी। बड़ी संख्या में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सैबसू वासी जेल गए थे।
राजनीति शास्त्र के शिक्षक सैबसू गांव के सुरेश चंद्र तिवारी ने बताया कि क्षेत्र में उनके यहां सर्वाधिक शिव मंदिर और कुएं हैं, इन्हीं मंदिरों में भगवान भोले नाथ की पूजा अर्चना के साथ देश को आजादी दिलाने के लिए नीति-रणनीति बनाई जाती थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे देवीप्रसाद पांडे, देवी प्रसाद शुक्ला, देवी प्रसाद तिवारी एक ही नाम के होने से अंग्रेजों की बघ्घी जीटी रोड से गांव तक पहुंचने ही नहीं देते थे।
अटक नरवा में खादी खोदकर रास्ता अवरुद्घ कर दिया जाता था। इसी तरह जगतनरायण तिवारी, गोवर्धन लाल शुक्ला, बद्रीप्रसाद गुजराती, नंद्रकिशोर मिश्रा, बृजकिशोर मिश्र, इनकी पत्नी बृजरानी मिश्र, हरि प्रसाद मिश्र, शशिभूषण बाजपेई उर्फ गुल्लर, मन्नालाल, सूरज प्रसाद, बनवारी लाल ने गांव के लोगों में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने के लिए वह सब किया जो अंग्रेजों को पसंद नहीं था।
सभी कई बार जेल गए। शशिभूषण ने तो आजादी की लड़ाई के लिए गांव के ही लड़कों की भोला सेना बनाई थी। उन्होंने अंग्रेजों के जुल्मों का जवाब देने के लिए गोला बनाकर उन पर हमला का प्रशिक्षण भी दिया था। नतीजतन अंग्रेजों ने शशिभूषण का पकड़कर पहले खूब सितम ढाया फिर नैनी इलाहाबाद में फांसी दे दी।
प्रधान पति विमलेश मिश्र ने बताया कि सैबसू बाजार ही सेनानियों की मुख्य जगह थी। पूरे क्षेत्र के वीर सपूत जुटते थे। गांव के राधेश्याम तिवारी ने बताया कि सेनानियों के जुटने की सूचना पर एकबार गांव के मंदिरों में बम भोले की जयकारे लगते अंग्रेजों पर ग्रामीणों ने बारुदी गोले बरसा दिया थे। उनके कैंप पर ही बाजार में तिरंगा फहरा दिया था। जिससे खिन्न होकर अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर खूब जुल्म भी ढहाए थे।
सैबसू की थीं बिल्हौर की पहली विधायक
सैबसू निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजकिशोर मिश्र और उनकी पत्नी बृजरानी ने आजादी की लड़ाई में महती भूमिका अदा की। 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद वर्ष 1952-57 के एसेंबली के चुनाव में तत्कालीन 136 बिल्हौर विधानसभा से कांग्रेस के दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न से वह बिल्हौर की पहली विधायक चुनी गईं थी।
गांव का धार्मिक ग्रंथों में जिक्र हैं, लेकिन शासन प्रशासन की अनदेखी से न तो स्वतंत्रता सेनानियों का कोई स्मारक गांव में है और न ही पुरातत्व से जुड़े स्थलों के संरक्षण का इंतजाम। स्वतंत्रता सेनानियों के आवास और अन्य धरोहर दिनोंदिन मिटती जा रही हैं। इससे उनकों के वंशजों में रोष है।
उत्तर प्रदेश में कानपुर के बिल्हौर गंगा तट के पास बसे सैबसू गांव के वीरों ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण निभाई और फिरंगियों को खूब छकाया। अंग्रेजों ने सेनानियों को फांसी, उम्र कैद, जेल, कोड़ों और गांव-घर से बेदखल किया गया। गांव के लोग एकजुट न हो सके, इसके लिए फिरंगियों ने सैबसू गांव के मंदिरों, कुओं पर सिपाहियों की तैनाती कर दी थी। बड़ी संख्या में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सैबसू वासी जेल गए थे।
राजनीति शास्त्र के शिक्षक सैबसू गांव के सुरेश चंद्र तिवारी ने बताया कि क्षेत्र में उनके यहां सर्वाधिक शिव मंदिर और कुएं हैं, इन्हीं मंदिरों में भगवान भोले नाथ की पूजा अर्चना के साथ देश को आजादी दिलाने के लिए नीति-रणनीति बनाई जाती थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे देवीप्रसाद पांडे, देवी प्रसाद शुक्ला, देवी प्रसाद तिवारी एक ही नाम के होने से अंग्रेजों की बघ्घी जीटी रोड से गांव तक पहुंचने ही नहीं देते थे।
अटक नरवा में खादी खोदकर रास्ता अवरुद्घ कर दिया जाता था। इसी तरह जगतनरायण तिवारी, गोवर्धन लाल शुक्ला, बद्रीप्रसाद गुजराती, नंद्रकिशोर मिश्रा, बृजकिशोर मिश्र, इनकी पत्नी बृजरानी मिश्र, हरि प्रसाद मिश्र, शशिभूषण बाजपेई उर्फ गुल्लर, मन्नालाल, सूरज प्रसाद, बनवारी लाल ने गांव के लोगों में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने के लिए वह सब किया जो अंग्रेजों को पसंद नहीं था।
सभी कई बार जेल गए। शशिभूषण ने तो आजादी की लड़ाई के लिए गांव के ही लड़कों की भोला सेना बनाई थी। उन्होंने अंग्रेजों के जुल्मों का जवाब देने के लिए गोला बनाकर उन पर हमला का प्रशिक्षण भी दिया था। नतीजतन अंग्रेजों ने शशिभूषण का पकड़कर पहले खूब सितम ढाया फिर नैनी इलाहाबाद में फांसी दे दी।
प्रधान पति विमलेश मिश्र ने बताया कि सैबसू बाजार ही सेनानियों की मुख्य जगह थी। पूरे क्षेत्र के वीर सपूत जुटते थे। गांव के राधेश्याम तिवारी ने बताया कि सेनानियों के जुटने की सूचना पर एकबार गांव के मंदिरों में बम भोले की जयकारे लगते अंग्रेजों पर ग्रामीणों ने बारुदी गोले बरसा दिया थे। उनके कैंप पर ही बाजार में तिरंगा फहरा दिया था। जिससे खिन्न होकर अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर खूब जुल्म भी ढहाए थे।
सैबसू की थीं बिल्हौर की पहली विधायक
सैबसू निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजकिशोर मिश्र और उनकी पत्नी बृजरानी ने आजादी की लड़ाई में महती भूमिका अदा की। 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद वर्ष 1952-57 के एसेंबली के चुनाव में तत्कालीन 136 बिल्हौर विधानसभा से कांग्रेस के दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न से वह बिल्हौर की पहली विधायक चुनी गईं थी।
गांव का धार्मिक ग्रंथों में जिक्र हैं, लेकिन शासन प्रशासन की अनदेखी से न तो स्वतंत्रता सेनानियों का कोई स्मारक गांव में है और न ही पुरातत्व से जुड़े स्थलों के संरक्षण का इंतजाम। स्वतंत्रता सेनानियों के आवास और अन्य धरोहर दिनोंदिन मिटती जा रही हैं। इससे उनकों के वंशजों में रोष है।
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