न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कानपुर
Published by: प्रभापुंज मिश्रा
Updated Fri, 24 Dec 2021 11:59 AM IST
कानपुर के मैनावती मार्ग पर एनआरआई सिटी की जद में आई 17 बीघा जमीन अधिवक्ता व उनके सौतेले भाइयों के बीच विवाद की जड़ बन गई थी। मुकदमे की वजह से एनआरआई सिटी के मालिकों को जमीन पर कब्जा नहीं मिल पा रहा था। उसमें से करीब पांच बीघा जमीन की रजिस्ट्री भी फंसी थी। इसलिए एनआरआई सिटी के मालिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अधिवक्ता पर दबाव बना रहे थे। इसलिए परिजनों ने उन पर सीधे तौर पर साजिश रचकर हत्या कराने का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराई है।
शहर की नामचीन हस्तियों में एनआरआई सिटी के मालिक हैं। एक पान मसाला कंपनी के मालिक का सबसे अधिक शेयर है। जबकि एक बड़े सराफ व अन्य लोग भी साझेदार हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिवक्ता ने बताया कि राजाराम वर्मा के पिता ने दो शादियां की थीं। तीन सौतेले भाई हैं। मगर पूरी प्रॉपर्टी राजाराम के नाम पर थी। इसलिए सौतेले भाई राजबहादुर ने 2006 में बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया था। यहीं से आपसी विवाद शुरू हुआ।
राजबहादुर को करीब 12 बीघा व राजाराम को पांच बीघा जमीन मिली। राजबहादुर ने अपनी जमीन की रजिस्ट्री एनआरआई सिटी को कर दी थी। तब राजाराम ने रजिस्ट्री रद्द कराने की अपील की थी। दावा किया था कि खतौनी आदि में टेंपरिंग कर कागज तैयार किए गए। रजिस्ट्री भी फर्जी है। इसमें केस भी दर्ज हुआ था। अधिवक्ता ने बताया कि कुछ समय बाद राजाराम ने भी अपनी जमीन की डील एनआरआई सिटी से कर ली।
सिटी के मालिकों से एक मुश्त बड़ी रकम भी ले ली थी लेकिन बाद में जमीन की रजिस्ट्री नहीं की थी। तब से लगातार विवाद चल रहा था। फिलहाल जमीन पर एनआरआई सिटी का कब्जा नहीं था। मगर वह हर कोशिश में लगे थे कि जमीन मिल जाए, जिससे टाउनशिप पूरी की जा सके। जमीन न मिलने से प्रोजेक्ट पर सीधे तौर पर असर पड़ रहा था।
भाई को बनाया मोहरा, जमीन कब्जे का है खेल
परिजनों ने एफआईआर में आरोप लगाया है कि इसी जमीन की वजह से एनआरआई सिटी के मालिकों ने राजबहादुर के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची और उसको हत्यारों से अंजाम दिलाया। आरोप है कि राजबहादुर जमीन देने के पक्ष में रहा है। वह चाहता था कि राजाराम भी जमीन एनआरआई सिटी को दे दे। इसलिए एनआरआई सिटी के मालिकान ने एक तरह से राजबहादुर को मोहरा बना रखा था। जमीन न मिलने से एनआरआई सिटी के मालिकनों का प्रोजेक्ट अटका था। जिससे करोड़ों का नुकसान भी हो रहा था।
एक-एक की जांची जाएगी भूमिका
एनआरआई सिटी के कई मालिक हैं। पुलिस एक-एक का ब्योरा जुटा रही है। उनके मोबाइल नंबरों की सीडीआर निकाल रही है। जिससे लोकेशन के साथ पता कर रही है कि इन सभी के संपर्क में कौन-कौन लोग थे। पुलिस अफसरों का कहना है कि मामले में विस्तृत जांच की जा रही है। साक्ष्यों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
तत्कालीन एसएसपी ने की थी अधिवक्ता पर मेहरबानी
राजाराम के खिलाफ 12 केस दर्ज हैं। अधिकतर मामले धोखाधड़ी के हैं। नवाबगंज थाने से वह हिस्ट्रीशीटर थे। 2013 में तत्कालीन एसएसपी यशस्वी यादव ने अधिवक्ता की निगरानी बंद करवा दी थी। यह एक तरह से हिस्ट्रीशीटर पर नरमी बरतने का मामला है। सवाल उठा कि आखिर हिस्ट्रीशीटर होने के बावजूद यशस्वी यादव ने ऐसा क्यों किया था। इस संबंध में एक अधिवक्ता ने बताया कि एसएसपी की एक रिश्तेदार ने राजाराम की सोसाइटी में जमीन ली थी। जिसका कुछ पेंच राजाराम ने फंसा दिया था। इसी डीलिंग में अधिवक्ता पर नरमी बरती गई थी। हालांकि स्पष्ट तथ्य क्या है ये जांच में पता चलेगा।
कानपुर के मैनावती मार्ग पर एनआरआई सिटी की जद में आई 17 बीघा जमीन अधिवक्ता व उनके सौतेले भाइयों के बीच विवाद की जड़ बन गई थी। मुकदमे की वजह से एनआरआई सिटी के मालिकों को जमीन पर कब्जा नहीं मिल पा रहा था। उसमें से करीब पांच बीघा जमीन की रजिस्ट्री भी फंसी थी। इसलिए एनआरआई सिटी के मालिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अधिवक्ता पर दबाव बना रहे थे। इसलिए परिजनों ने उन पर सीधे तौर पर साजिश रचकर हत्या कराने का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराई है।
शहर की नामचीन हस्तियों में एनआरआई सिटी के मालिक हैं। एक पान मसाला कंपनी के मालिक का सबसे अधिक शेयर है। जबकि एक बड़े सराफ व अन्य लोग भी साझेदार हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिवक्ता ने बताया कि राजाराम वर्मा के पिता ने दो शादियां की थीं। तीन सौतेले भाई हैं। मगर पूरी प्रॉपर्टी राजाराम के नाम पर थी। इसलिए सौतेले भाई राजबहादुर ने 2006 में बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया था। यहीं से आपसी विवाद शुरू हुआ।
राजबहादुर को करीब 12 बीघा व राजाराम को पांच बीघा जमीन मिली। राजबहादुर ने अपनी जमीन की रजिस्ट्री एनआरआई सिटी को कर दी थी। तब राजाराम ने रजिस्ट्री रद्द कराने की अपील की थी। दावा किया था कि खतौनी आदि में टेंपरिंग कर कागज तैयार किए गए। रजिस्ट्री भी फर्जी है। इसमें केस भी दर्ज हुआ था। अधिवक्ता ने बताया कि कुछ समय बाद राजाराम ने भी अपनी जमीन की डील एनआरआई सिटी से कर ली।
सिटी के मालिकों से एक मुश्त बड़ी रकम भी ले ली थी लेकिन बाद में जमीन की रजिस्ट्री नहीं की थी। तब से लगातार विवाद चल रहा था। फिलहाल जमीन पर एनआरआई सिटी का कब्जा नहीं था। मगर वह हर कोशिश में लगे थे कि जमीन मिल जाए, जिससे टाउनशिप पूरी की जा सके। जमीन न मिलने से प्रोजेक्ट पर सीधे तौर पर असर पड़ रहा था।