टीम डिजिटल, अमर उजाला, कानपुर
Updated Sat, 06 May 2017 07:15 PM IST
‘पिता के कंधे पर बेटे की लाश’ इस संवेदनशील वीडियो और तस्वीर के सामने आने के बाद योगी सरकार को राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग ने नोटिस भेज दिया है। मानवाधिकार आयोग ने इटावा में सरकारी अस्पताल से एंबुलेंस न मिलने पर एक पिता को बेटे का शव कंधे पर लादकर ले जाने के मामले को बड़ी गंभीरता से लिया है।
आयोग ने पाया है कि मीडिया रिपोर्ट्स में ये उजागर हो चुका है कि अस्पताल के डॉक्टरों की असंवेदनशीलता और लापरवाह रवैये काे चलते अधिकांश लोगों को इलाज से भी वंचित होना पड़ जाता है। ऐसे लोग गरीब परिवारों से आते हैं। यह घटना भी मानव अधिकारों के उल्लंघन के बराबर है।
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (एनएचआरसी) के मुख्य सचिव ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए इस पूरी घटना के बारे में विस्तृत रिपोर्ट चार सप्ताह के अंदर मांगी है।
एनएचआरसी ने यह भी पाया है कि इटावा जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी राजीव यादव ने कथित तौर पर स्वीकार किया है कि उनकी तरफ से गलती थी और उन्होंने आश्वासन दिया है कि दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
एनएचआरसी ने अपने नोटिस में आगे कहा कि लड़के को जब अस्पताल ले जाया गया तब डॉक्टर मृतक के पिता से पूछ नहीं सकते थे कि उन्हें एंबुलेंस की जरूरत है या नहीं। मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अस्पताल में उपलब्ध एम्बुलेंस वाहनों की संख्या और अस्पताल में उपलब्ध ड्राइवरों की संख्या का पूरा ब्यौरा मांगा है।
इटावा के जिला अस्पताल में एक 45 साल के पिता को 15 साल के बेटे का शव अपने कंधे पर रखकर ले जाना पड़ा। ये घटना दो मई की है। अस्पताल ने शव को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस तक मुहैया नहीं कराई। उदयवीर अपने बेटे पुष्पेंद्र का इलाज कराने के लिए इटावा के जिला अस्पताल लाया था।
उदयवीर का आरोप था कि अस्पताल में डॉक्टरों ने उसके बेटे का इलाज नहीं किया। उसके बेटे के पैरों में दर्द था। डॉक्टरों ने उसे बिना देखे ही मृत घोषित कर दिया और उसे अस्पताल से ले जाने के लिए कह दिया. उसके बाद पिता अपने बेटे के शव को कंधे पर रखकर अस्पताल परिसर से बाहर निकल गया.
उदयवीर का कहना है कि वह दो बार अपने बेटे को अस्पताल लेकर आया था। उदयवीर ने बताया कि अस्पतालों ने कहा कि लड़के के शरीर में अब कुछ नहीं बचा है। जबकि उसके तो बस पैरों में दर्द था। डॉक्टरों ने मेरे बच्चे को बस चंद मिनट देखा और कहा कि इसे ले जाओ।
उदयवीर का गांव अस्पताल से 7 किलोमीटर दूर है। डॉक्टरों ने पुष्पेंद्र के लिए एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं कि जोकि गरीबों के लिए फ्री है। जब वह अस्पताल से बेटे के शव को कंधे पर लेकर बाहर निकला तो किसी ने मोबाइल पर इसका वीडियो बना लिया। उदयवीर बेटे के शव को बाइक से घर लेकर गए। उदयवीर ने कहा कि किसी ने मुझे नहीं बताया कि मैं अपने बेटे के शव को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस का हकदार हूं या नहीं।
‘पिता के कंधे पर बेटे की लाश’ इस संवेदनशील वीडियो और तस्वीर के सामने आने के बाद योगी सरकार को राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग ने नोटिस भेज दिया है। मानवाधिकार आयोग ने इटावा में सरकारी अस्पताल से एंबुलेंस न मिलने पर एक पिता को बेटे का शव कंधे पर लादकर ले जाने के मामले को बड़ी गंभीरता से लिया है।
आयोग ने पाया है कि मीडिया रिपोर्ट्स में ये उजागर हो चुका है कि अस्पताल के डॉक्टरों की असंवेदनशीलता और लापरवाह रवैये काे चलते अधिकांश लोगों को इलाज से भी वंचित होना पड़ जाता है। ऐसे लोग गरीब परिवारों से आते हैं। यह घटना भी मानव अधिकारों के उल्लंघन के बराबर है।
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (एनएचआरसी) के मुख्य सचिव ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए इस पूरी घटना के बारे में विस्तृत रिपोर्ट चार सप्ताह के अंदर मांगी है।
एनएचआरसी ने यह भी पाया है कि इटावा जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी राजीव यादव ने कथित तौर पर स्वीकार किया है कि उनकी तरफ से गलती थी और उन्होंने आश्वासन दिया है कि दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
एनएचआरसी ने अपने नोटिस में आगे कहा कि लड़के को जब अस्पताल ले जाया गया तब डॉक्टर मृतक के पिता से पूछ नहीं सकते थे कि उन्हें एंबुलेंस की जरूरत है या नहीं। मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अस्पताल में उपलब्ध एम्बुलेंस वाहनों की संख्या और अस्पताल में उपलब्ध ड्राइवरों की संख्या का पूरा ब्यौरा मांगा है।