डुमरियागंज। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आई विपदा में ऋषिकेश से 135 किलोमीटर आगे और केदारनाथ धाम से 35 किलोमीटर की दूरी पर फंसे 40 तीर्थयात्रियों के सही सलामत घर पहुंच जाने पर घरवालों ने राहत की सांस ली। करीब 16 दिन पहले गए लोगों को देखकर सबकी आंखों से आंसू बह पड़े।
डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के अंदुआ शनिचरा और मन्नीजोत गांव के 22 परिवारों के 40 लोग आठ जून को चारोधाम की यात्रा पर निकले थे। अयोध्या, मथुरा, वृंदावन, नैमीषारण्य होते हुए वे हरिद्वार पहुंचे थे। जहां से वे लोग केदारनाथ धाम जाने के लिए बस से ऋषिकेश पहुंचकर वहां दर्शन किए और रुक गए। 15 जून को सभी तीर्थयात्री ऋषिकेश से दोपहर में केदारनाथ के लिए रवाना हुए। वे करीब 135 किलोमीटर की यात्रा कर शाम को नैनबाग तल्ली पहुंचे। जहां विश्राम के लिए रात में रुक गये। 16 जून को केदारनाथ धाम के लिए रवाना होने के लिए तैयार होने लगे, मगर उसी समय उन्हें सूचना मिली कि पहाड़ों में देज बरसात हुई है। जिसके बाद वे वहीं पर रुक गये। रास्ता बंद होने के कारण वे वहीं भूखे प्यासे वापसी की राह देखने लगे।
इधर इनके परिजनों ने टीवी व समाचारपत्रों में वहां आई आफत को सुन व देख परिजनों को कई तरह की आशंका सताने लगी। घरवालों से इनका संपर्क भी टूट गया था।
रावण को सही सलामत देख रो पड़े राम
अंदुआ शनिचरा गांव निवासी 60 वर्षीय रामकुबेर उर्फ रावण से संपर्क टूट जाने के बाद उनके छोटे भाई राम सिंह उर्फ डींगुर ने सोमवार को घर सही सलामत लौटे अपने भाई को देख फूले नहीं समा रहे थे। घर के पास पहुंचते ही राम सिंह रावण को दौड़कर गले लगा रोने लगे। मोहल्ले के लोगों ने दोनों भाईयों के इस प्रेम को देख खुशी में अपना भी आंसू बहने से नही रोक सके। रावण ने बताया कि उनके तो कोई भी बेटा या बेटी नहीं है। लेकिन उनका सब कुछ उनके भाई का परिवार ही है। वे जब पहाड़ों में फंसे थे तो रोते हुए सोचते थे कि क्या वो अपने भाई और परिवार से मिल पायेगें या नही। उन्होनें बताया कि पहाड़ी नाले में उनके सामने लाशें बह रही थी। मगर उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था।
बेटे को गले लगा मिला संतोष
बिफई के पिता 80 वर्षीय राम सोहरत अपनी पत्नी दुलारी के साथ तीर्थयात्रा पर गये थे। भारी बारिश के कारण वे केदारनाथ के पास नैनबाग तल्ली में फंस गये। दोनों यही सोच रहे थे कि भगवान की कृपा होगी तभी वे वापस लौट पाएंगे। वह बेटे बिफई और रामसलारू, बहू विंध्यवासिनी और फूलमती व अन्य परिजनों से मिलने को बेचैन हो उठे। इधर इनका परिवार भी आशंका से घिरा था। वापस लौटते ही सबको सामने देख वह ईश्वर का दुहाई देने लगे। घर लौटे पति पत्नी ने बेटे और बहुओं को गले लगाकर सुकून पाया।
ऊपर वाले ने सुनी राम दुहाई की पुकार
भारी बारिश में फंसने के बाद राम दुहाई ने ऊपर वाले से प्रार्थना कर उसे उसके परिवार वालों से मिलाने की प्रार्थना की थी। राम दुहाई के साथ उसकी पत्नी चंद्रपति भी थी। जो इस दैवीय आपदा को देख अपने होश को खो बैठी थीं। रामदुहाई ने बताया कि अगर वे कुछ किलोमीटर और आगे बढ़े होते तो शायद उनका वापस लौट पाना मुश्किल हो पाता।
डुमरियागंज। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आई विपदा में ऋषिकेश से 135 किलोमीटर आगे और केदारनाथ धाम से 35 किलोमीटर की दूरी पर फंसे 40 तीर्थयात्रियों के सही सलामत घर पहुंच जाने पर घरवालों ने राहत की सांस ली। करीब 16 दिन पहले गए लोगों को देखकर सबकी आंखों से आंसू बह पड़े।
डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के अंदुआ शनिचरा और मन्नीजोत गांव के 22 परिवारों के 40 लोग आठ जून को चारोधाम की यात्रा पर निकले थे। अयोध्या, मथुरा, वृंदावन, नैमीषारण्य होते हुए वे हरिद्वार पहुंचे थे। जहां से वे लोग केदारनाथ धाम जाने के लिए बस से ऋषिकेश पहुंचकर वहां दर्शन किए और रुक गए। 15 जून को सभी तीर्थयात्री ऋषिकेश से दोपहर में केदारनाथ के लिए रवाना हुए। वे करीब 135 किलोमीटर की यात्रा कर शाम को नैनबाग तल्ली पहुंचे। जहां विश्राम के लिए रात में रुक गये। 16 जून को केदारनाथ धाम के लिए रवाना होने के लिए तैयार होने लगे, मगर उसी समय उन्हें सूचना मिली कि पहाड़ों में देज बरसात हुई है। जिसके बाद वे वहीं पर रुक गये। रास्ता बंद होने के कारण वे वहीं भूखे प्यासे वापसी की राह देखने लगे।
इधर इनके परिजनों ने टीवी व समाचारपत्रों में वहां आई आफत को सुन व देख परिजनों को कई तरह की आशंका सताने लगी। घरवालों से इनका संपर्क भी टूट गया था।
रावण को सही सलामत देख रो पड़े राम
अंदुआ शनिचरा गांव निवासी 60 वर्षीय रामकुबेर उर्फ रावण से संपर्क टूट जाने के बाद उनके छोटे भाई राम सिंह उर्फ डींगुर ने सोमवार को घर सही सलामत लौटे अपने भाई को देख फूले नहीं समा रहे थे। घर के पास पहुंचते ही राम सिंह रावण को दौड़कर गले लगा रोने लगे। मोहल्ले के लोगों ने दोनों भाईयों के इस प्रेम को देख खुशी में अपना भी आंसू बहने से नही रोक सके। रावण ने बताया कि उनके तो कोई भी बेटा या बेटी नहीं है। लेकिन उनका सब कुछ उनके भाई का परिवार ही है। वे जब पहाड़ों में फंसे थे तो रोते हुए सोचते थे कि क्या वो अपने भाई और परिवार से मिल पायेगें या नही। उन्होनें बताया कि पहाड़ी नाले में उनके सामने लाशें बह रही थी। मगर उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था।
बेटे को गले लगा मिला संतोष
बिफई के पिता 80 वर्षीय राम सोहरत अपनी पत्नी दुलारी के साथ तीर्थयात्रा पर गये थे। भारी बारिश के कारण वे केदारनाथ के पास नैनबाग तल्ली में फंस गये। दोनों यही सोच रहे थे कि भगवान की कृपा होगी तभी वे वापस लौट पाएंगे। वह बेटे बिफई और रामसलारू, बहू विंध्यवासिनी और फूलमती व अन्य परिजनों से मिलने को बेचैन हो उठे। इधर इनका परिवार भी आशंका से घिरा था। वापस लौटते ही सबको सामने देख वह ईश्वर का दुहाई देने लगे। घर लौटे पति पत्नी ने बेटे और बहुओं को गले लगाकर सुकून पाया।
ऊपर वाले ने सुनी राम दुहाई की पुकार
भारी बारिश में फंसने के बाद राम दुहाई ने ऊपर वाले से प्रार्थना कर उसे उसके परिवार वालों से मिलाने की प्रार्थना की थी। राम दुहाई के साथ उसकी पत्नी चंद्रपति भी थी। जो इस दैवीय आपदा को देख अपने होश को खो बैठी थीं। रामदुहाई ने बताया कि अगर वे कुछ किलोमीटर और आगे बढ़े होते तो शायद उनका वापस लौट पाना मुश्किल हो पाता।