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Siddharthnagar News: कालानमक की नई प्रजाति से उत्पादन बढ़ा, बिगड़ा जायका
कालानमक की नई प्रजाति से उत्पादन बढ़ा, बिगड़ा जायका
- कालानमक धान पर शोध से तैयार हुई नई प्रजातियों में कम हो गई खुशबू
- नई प्रजातियों के कालानमक चावल से दूसरे शहरों में खराब हो रहा है नाम
संवाद न्यूज एजेंसी
सिद्धार्थनगर। अपनी महक और अलग स्वाद के लिए प्रसिद्ध कालानमक चावल का जायका नए प्रयोगों के बाद कुछ कम हो गया है। पुरानी लंबी डंठल वाली कालानमक धान की प्रजाति और शोधों के बाद तैयार की गई नई प्रजातियों के धान के जायके में फर्क आ गया है। इसके चलते चावल की बिक्री दरों में भी बदलाव करना पड़ रहा है।
वर्ष 2018 में एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल होने के बाद कालानमक चावल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग मार्केटिंग की गई। कालानमक चावल का निर्यात भी बढ़ा, लेकिन विभिन्न प्रकार के शोध के बाद कालानमक धान को कम समय में उगाने, पैदावार को बढ़ाने की कामयाबी के साथ स्वाद कुछ कम हो गया। दूसरे शहरों में कम खुशबू वाले कालानमक को पहुंचने के बाद गुणवत्ता पर सवाल उठ रहा है। जिले में कालानमक चावल के प्रमाणीकरण की कोई व्यवस्था नहीं होना भी एक कारण है।
लंबी डंठल वाली कालानमक धान की प्रजाति को तैयार होने में 165-170 दिन लगता है, जबकि नई प्रजातियों को तैयार में होने में 140 से 155 दिन ही लगता है। कम समय में उगने वाले धान को किसानों ने अपनाया ताकि लागत कम आए और उन्हें भी फायदा भी हो, लेकिन अब बाजार में हो रही किरकिरी किसानों का मोह भंग कर रही है।
जोगिया क्षेत्र के सिसवा बुजुर्ग के किसान सूर्य प्रकाश एवं भारत तिवारी ने बताया कि नई प्रजाति के कालानमक चावल कम मुलायम है और पकने के बाद जल्द ही दाना कठोर हो जाता है। जिसके चलते बाजार में इसे कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है।
कम है नई प्रजाति की चावल की कीमत
कालानमक चावल के लिए खेसरहा में बनाए गए कॉमन फैसलिटी सेंटर (सीएफसी) ने कालानमक धान की दरें तय की है, जिसमें लंबी डंठल वाले कालानमक धान की कीमत 75 रुपये प्रति किलो है, जबकि छोटी ठंडल वाले कालानमक की दरें 40-45 रुपये प्रति किग्रा निर्धारित की गई है। कालानमक धान पर शोध करने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी ने कहा कि कालानमक धान को अधिक उन्नतिशीलशील बनाने के लिए शोध किए जा रहे हैं। उनका दावा है कि शुरुआती दौर में छोटी प्रजातियों में सुगंध और स्वाद कम थी, लेकिन नई प्रजाति पूरी तरह से पुराने कालानमक की तरह उपयोगी है। जिला कृषि अधिकारी सीपी सिंह ने बताया कि जिले में कालानमक धान का रकबा करीब 15 हजार हेक्टेयर हो गया है। नए सत्र में किसानों को प्रमाणित बीज दिए जाएंगे और कम उपयोगी प्रजाति बाहर हो जाएगी।
कालानमक की दस प्रजातियों का हो रहा ट्रायल
आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज ओयाध्या से संचालित कृषि विज्ञान केंद्र सोहना में तीन साल से कालानमक के दस प्रकार के बीजों का ट्रायल हो रहा है। केंद्र के अध्यक्ष व वैज्ञानिक डॉ. ओपी वर्मा ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान की ओर ट्रायल किया जा रहा है कि इस जलवायु में कौन सा कालानमक सबसे बेहतर है। इसमें ठंडल, अवधि के साथ तत्व एवं स्वाद, सुगंध की जांच की परख होगी। जो बीज सबसे बेहतर होगा, उसके नई प्रजाति के रूप में लांच किया जाएगा।
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