दो अक्तूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में हुए वीभत्स कांड की खबर से पूरे प्रदेश में मातम और अफरातफरी का माहौल बन गया था। दिल्ली रैली में गए अपनों की कुशलक्षेम जानने के लिए लोग बेहद परेशान थे।
देहरादून में तब महिला अस्पताल के सामने स्थित पुलिस कंट्रोल रूम में सुबह से ही लोगों का पहुंचना शुरू हो गया था। दोपहर तक करीब एक हजार से अधिक लोगों का हुजूम कंट्रोल रूम के बाहर एकत्र हो गया था।
पढें, सीने में खाई गोली के जख्म दिखाने को चाहिए 'प्रमाणपत्र'इस भीड़ को संभालना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था। शहर में जगह-जगह पुलिस और तत्कालीन मुलायम सरकार के खिलाफ आक्रोश सड़कों पर दिख रहा था।
महिलाओं से दुराचार जैसी खबरों से लोगों में उबालआंदोलनकारी मंच के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि रामपुर तिराहे पर हुई घटना की सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही थी। आंदोलनकारियों पर पुलिस फायरिंग, महिलाओं से दुराचार जैसी खबरों से लोगों में उबाल था।
पढें, 'बीटल्स' की चौरासी कुटिया के दीवाने हैं विदेशीहालात बिगड़ते देख शहर में पुलिस और पीएसी तैनात कर दी गई। आंदोलनकारियों के परिजन पुलिस के साथ मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हुए। बाद में प्रशासन ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया। मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा न मिलने के लिए वे उत्तराखंड की सरकारों की कमजोर पैरवी को जिम्मेवार मानते हैं।
पुलिस ने नारसन में रोके आंदोलनकारियोंआंदोलनकारी रामलाल खंडूड़ी बताते हैं कि एक अक्तूबर की मध्य रात्रि से ही पुलिस ने नारसन से आंदोलनकारियों की गाड़ियों को रोकना शुरू कर दिया था। वे भी मुजफ्फरनगर नहीं पहुंच पाए थे।
आंदोलनकारियों के पुलिस फायरिंग में शहीद होने और महिलाओं से दुर्व्यवहार की सूचनाएं मिलने लगी थी। खंडूड़ी मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलाने और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले और लापता सभी आंदोलनकारियों को शहीद का दर्जा दिलाने की मांग करते हैं।
पढें, ...जब देवदूत बन गए थे मुजफ्फरनगर के लोगछह शहीद, साठ से अधिक हुए थे घायलमुजफ्फरनगर कांड में नेहरू कालोनी के रविंद्र रावत उर्फ पोलू, भाववाला निवासी सतेंद्र चौहान, बद्रीपुर निवासी गिरीश भद्री, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश के सूर्यप्रकाश थपलियाल और उखीमठ रुद्रप्रयाग के अशोक केशिव शहीद हुए थे।
मुजफ्फरनगर में घायल होने के बाद दूसरे दिन दून अस्पताल में शहीद हुए शिमला बाईपास के बलवंत सिंह जगवाण को अब तक शहीद का दर्जा नहीं मिला। इसी तरह लापता हुए रेसकोर्स के रमेश रतूड़ी समेत कई आंदोलकारियों को भी अब तक शहीद का दर्जा नहीं मिलने पर आंदोलनकारी कड़ी नाराजगी जताते हैं। भानियावाला के राजेश नेगी लापता हुए। आंदोलनकारियों की मांग पर सरकार ने उन्हें शहीद का दर्जा दिया। इसके अलावा साठ से अधिक लोग घायल हुए थे।
पढें, केदारनाथः जत्थों में चलेंगे यात्री, पुलिस भी होगी साथरामपुर तिराहे के शहीदों को देंगे श्रद्घांजलिउत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान दिल्ली जाते समय मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में शहीद हुए आंदोलनकारियों को बुधवार सुबह श्रद्घांजलि दी जाएगी। राज्य आंदोलनकारी मंच के तत्वावधान में सुबह साढ़े 9 बजे कचहरी स्थित शहीद स्मारक पर शहीदों को श्रद्घासुमन अर्पित किए जाएंगे। इनके साथ ही विभिन्न आंदोलनकारी संगठन और सामाजिक संस्थाएं भी शहीद स्मारक पर पहुंचकर शहीदों को श्रद्घंाजलि देंगे।
दो अक्तूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में हुए वीभत्स कांड की खबर से पूरे प्रदेश में मातम और अफरातफरी का माहौल बन गया था। दिल्ली रैली में गए अपनों की कुशलक्षेम जानने के लिए लोग बेहद परेशान थे।
देहरादून में तब महिला अस्पताल के सामने स्थित पुलिस कंट्रोल रूम में सुबह से ही लोगों का पहुंचना शुरू हो गया था। दोपहर तक करीब एक हजार से अधिक लोगों का हुजूम कंट्रोल रूम के बाहर एकत्र हो गया था।
पढें, सीने में खाई गोली के जख्म दिखाने को चाहिए 'प्रमाणपत्र'
इस भीड़ को संभालना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था। शहर में जगह-जगह पुलिस और तत्कालीन मुलायम सरकार के खिलाफ आक्रोश सड़कों पर दिख रहा था।
महिलाओं से दुराचार जैसी खबरों से लोगों में उबाल
आंदोलनकारी मंच के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि रामपुर तिराहे पर हुई घटना की सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही थी। आंदोलनकारियों पर पुलिस फायरिंग, महिलाओं से दुराचार जैसी खबरों से लोगों में उबाल था।
पढें, 'बीटल्स' की चौरासी कुटिया के दीवाने हैं विदेशी
हालात बिगड़ते देख शहर में पुलिस और पीएसी तैनात कर दी गई। आंदोलनकारियों के परिजन पुलिस के साथ मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हुए। बाद में प्रशासन ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया। मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा न मिलने के लिए वे उत्तराखंड की सरकारों की कमजोर पैरवी को जिम्मेवार मानते हैं।
पुलिस ने नारसन में रोके आंदोलनकारियों
आंदोलनकारी रामलाल खंडूड़ी बताते हैं कि एक अक्तूबर की मध्य रात्रि से ही पुलिस ने नारसन से आंदोलनकारियों की गाड़ियों को रोकना शुरू कर दिया था। वे भी मुजफ्फरनगर नहीं पहुंच पाए थे।
आंदोलनकारियों के पुलिस फायरिंग में शहीद होने और महिलाओं से दुर्व्यवहार की सूचनाएं मिलने लगी थी। खंडूड़ी मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलाने और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले और लापता सभी आंदोलनकारियों को शहीद का दर्जा दिलाने की मांग करते हैं।
पढें, ...जब देवदूत बन गए थे मुजफ्फरनगर के लोग
छह शहीद, साठ से अधिक हुए थे घायल
मुजफ्फरनगर कांड में नेहरू कालोनी के रविंद्र रावत उर्फ पोलू, भाववाला निवासी सतेंद्र चौहान, बद्रीपुर निवासी गिरीश भद्री, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश के सूर्यप्रकाश थपलियाल और उखीमठ रुद्रप्रयाग के अशोक केशिव शहीद हुए थे।
मुजफ्फरनगर में घायल होने के बाद दूसरे दिन दून अस्पताल में शहीद हुए शिमला बाईपास के बलवंत सिंह जगवाण को अब तक शहीद का दर्जा नहीं मिला। इसी तरह लापता हुए रेसकोर्स के रमेश रतूड़ी समेत कई आंदोलकारियों को भी अब तक शहीद का दर्जा नहीं मिलने पर आंदोलनकारी कड़ी नाराजगी जताते हैं। भानियावाला के राजेश नेगी लापता हुए। आंदोलनकारियों की मांग पर सरकार ने उन्हें शहीद का दर्जा दिया। इसके अलावा साठ से अधिक लोग घायल हुए थे।
पढें, केदारनाथः जत्थों में चलेंगे यात्री, पुलिस भी होगी साथ
रामपुर तिराहे के शहीदों को देंगे श्रद्घांजलि
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान दिल्ली जाते समय मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में शहीद हुए आंदोलनकारियों को बुधवार सुबह श्रद्घांजलि दी जाएगी। राज्य आंदोलनकारी मंच के तत्वावधान में सुबह साढ़े 9 बजे कचहरी स्थित शहीद स्मारक पर शहीदों को श्रद्घासुमन अर्पित किए जाएंगे। इनके साथ ही विभिन्न आंदोलनकारी संगठन और सामाजिक संस्थाएं भी शहीद स्मारक पर पहुंचकर शहीदों को श्रद्घंाजलि देंगे।