1965 की लड़ाई में भारतीय सेना के जवानों के हौसलों के आगे पाकिस्तान के सेना बौनी हो गयी थी। आलम ये था कि कश्मीर को हासिल करने का सपना देखने वाला पाकिस्तान खुद लाहौर और सियालकोट को खो देने की कगार पर आ गया था ।
सेना के अदम्य साहस के बल पर भारत लाहौर तक कब्जा करने की स्थिति में पहुंच चुका था । भारत की सेना अटारी के रास्ते वाघा सीमा को पार करते पाकिस्तान के 18 किमी अंदर लाहौर तक पहुंच गयी थी ।
जैसे ही 1965 की लड़ाई शुरू हुई शिमला के डिगसेई से सेना की पलटन 9 जैकलाई को तुरंत अमृतसर पहुंचने के निर्देश जारी कर दिये गये । निर्देश मिलते ही 9 जैकलाई के सैनिक पूरे बंदोबस्त के साथ रातों रात शिमला से अमृतसर के रास्ते वाघा सीमा पर पहुंच गये । वहां पहुंचने पर सैनिको को निर्देश मिला कि पूरे दमखम के साथ पाक सेना पर हमला बोलते हुए आगे बढ़ें ।
जैसे ही भारतीय सैनिकों को पाक पर हमले के निर्देश मिले तो जोश से लबरेज 9 जैकलाई पलटन के जवानों ने पाकिस्तान की ओर कूच कर दी । वहीं दूसरी ओर से पाकिस्तान के सैनिक अपने टैंको के साथ भारत की ओर बढ़ रहे थे ।
इसी बीच 9 जैकलाई के जवानों को पता चला कि भारतीय सेना की एक टुकड़ी को पाकिस्तानी सैनिकों ने घेर लिया है, इस कारण एक बार कुछ देर के लिए भारतीय सैनिकों को मोर्चे से पीछे भी हटना पड़ा ।