चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के बाद चीन की तरफ से बड़ा बयान सामने आया है। चीन ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) को लेकर भारत पर निशाना साधते हुए कहा है कि कुछ सदस्य देश अपने एजेंडा लागू कराने के लिए FATF का राजनीतिकरण कर रहे हैं। वहीं चीन के इस रुख से स्पष्ट है कि वह इतनी जल्दी पाकिस्तान का हाथ छोड़ने वाला नहीं है और उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में लगा हुआ है।
चीनी विदेश मंत्रालय के एशियाई मामलों के विभाग के उप महानिदेशक याओ वेन ने कहा कि चीन नहीं चाहता कि कोई अकेला देश FATF का राजनीतिकरण करे। लेकिन कुछ देश पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में डालना चाहते हैं। उनके अपने राजनीतिक एजेंडे है, जिनका चीन विरोध करता है। याओ ने कहा कि चीन के चलते उनकी पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने की कोशिशें बेकार साबित हुईं।
याओ का कहना है कि हमने भारत और अमेरिका दोनों को स्पष्ट कर दिया है कि चीन इस मुहिम में उनके साथ नहीं है, क्योंकि यह FATF के उद्देश्यों से बाहर है। याओ के मुताबिक एफएटीएफ किसी देश को काली सूची में डालने के लिए नहीं है, बल्कि आतंक में इस्तेमाल हो रही फंडिंग के खिलाफ है। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान प्रभावी तरीके से राष्ट्रीय कार्ययोजना पर काम क रहा है और चीन आतंक के खिलाफ कार्रवाई के लिए उसे प्रोत्साहित कर रहा है।
इसी महीने पेरिस में अक्टूबर में हुई बैठक में एफएटीएफ ने पाकिस्तान को चार महीने का वक्त दिया है, और फरवरी 2020 तक अपनी सभी 27 कार्य योजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए कहा है। ऐसा न होने पर अगले पूर्ण सत्र में काली सूची (ब्लैकलिस्ट) में नाम डालने को लेकर चेताया है। पाकिस्तान को जून 2018 में 'ग्रे सूची' में रखा गया था और 27 सूत्रीय कार्ययोजना को लागू करने के लिए उसे 15 महीने का समय दिया गया था।
याओ वेन ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर अथॉरिटी की तैयारियों को लेकर पाकिस्तान की सराहना भी की। वहीं चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे पर याओ का कहना था कि चीन और पाकिस्तान के बीच मजबूत रिश्तों पर इस तरह के दौरों का कोई असर नहीं पड़ता। याओ ने यह भी कहा कि चीन और पाकिस्तान के बीच पारस्परिक रिश्ते बेहद मजबूत हैं, जबकि भारत के साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि भारत के साथ कई मुद्दों पर मतभेद हैं। याओ के मुताबिक भारत को पाकिस्तान की तरफ से पहले ही बताया जा चुका है कि पाकिस्तान युद्ध नहीं चाहता है, और कश्मीर के शांतिपूर्वक समाधान के पक्ष में है।
वहीं कश्मीर पर रुख को लेकर याओ ने कहा कि चीन पहले से ही स्पष्ट है कि वह कश्मीर को विवादास्पद क्षेत्र मानता है और इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर और सुरक्षा परिषद के संकल्प के मुताबिक हल करने की जरूरत है। साथ ही चीन, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर भारत की एकतरफा कार्रवाई का समर्थन नहीं करता है और इसके शांतिपूर्ण समाधान के लिए रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार है। हालांकि चीन के वरिष्ठ नेता कश्मीर को लेकर किसी भी प्रकार की आधिकारिक बयानबाजी से बचते रहे हैं, लेकिन कई चीनी अधिकारी ऐसे बयानों के जरिये चीन का नजरिया सामने रखते रहे हैं।
वहीं पाकिस्तान को भी लग रहा है कि अगर उसे ग्रे लिस्ट से बाहर रहना है तो चीन की नीतियों का पालन करना पड़ेगा। एफएटीएफ के दबाव और चीनी नीतियों के चलते ही पिछली 23 अक्टूबर को पाकिस्तान के वित्त मामलों के मंत्री हमद अजहर ने कहा कि आतंक के खिलाफ टैरर फंडिंग के 700 से ज्यादा संदेहास्पद मामले प्रक्रिया में हैं और जल्द ही उनपर न्यायिक फैसला आएगा। पाकिस्तान को जनवरी 2020 तक अंतरराष्ट्रीय सहयोग समीक्षा समूह (आईसीआरजी) को 27 सूत्रीय कार्ययोजना की कार्यवाही पर अपनी रिपोर्ट देनी है। पाकिस्तान अकेला ऐसा देश है, जिसकी निगरानी एफएटीएफ के दो स्थानीय समूह एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) और इंटरनेशनल कोआपरेशन रिव्यू ग्रुप की टास्क फोर्स कर रही है। एपीजी ने पाकिस्तान को 40 सिफारिशें, जबकि आईसीआरजी ने 27 कार्ययोजना पर काम करने की सलाह दी है।
वहीं आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की माली हालत को सुधारने के लिए चीन पुरजोर कोशिश कर रहा है। चीन को भी लगता है कि अगर एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट किया तो उसकी कई निवेश योजनाओं पर खतरा मंडरा सकता है और उसकी सबसे महत्वाकांक्षी सीपीईसी परियोजना का काम अटक सकता है। जिसके चलते वह पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबारने में जुट गया है। चीन सीपीईसी के अलावा पाकिस्तान में एक करोड़ डॉलर का निवेश करने की योजना बना रहा है। साथ ही, चीन ने पाकिस्तान से निर्यात किए जाने वाले 90 फीसदी उत्पादों पर शून्य शुल्क वसूलने का एलान किया है। जिसके बदले पाकिस्तान ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ने वाले 60 अरब डॉलर के ग्वादर बंदरगाह और इसके फ्री जोन पर चीनी ऑपरेटर्स को 23 साल के लिए सेल्स टैक्स और कस्टम ड्यूटी में छूट देने का एलान किया है।
ये चीन के प्रयासों का ही असर है कि इस महीने के आखिर में जारी वर्ल्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग रिपोर्ट में पाकिस्तान की रैंकिंग में भी सुधार हुआ है। पाकिस्तान की रैंकिंग सुधर कर 108वें स्थान पर पहुंच गई है, जो पिछले साल 136 के मुकाबले 28 स्थान ऊपर है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था में छह अहम आर्थिक सुधार किये हैं, जिसका प्रभाव उसकी रैंकिंग पर पड़ा है। हालांकि भारत के मुकाबले पाकिस्तान कहीं भी नहीं ठहरता है क्योंकि भारत का स्थान 63वां है और पहले मुकाबले 12 अंकों का सुधार हुआ है। पाक सरकार ने वैल्यू एडेड टैक्स के साथ कारपोरेट इनकम टैक्स में कटौती का एलान किया था। साथ ही बिजली दरों में पारदर्शिता के साथ लाहौर और कराची में नए आवेदकों के लिए ऑनलाइन पोर्टल के साथ प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये समय-सीमा तय की गई है।
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