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सऊदी अरब जाकर क्यों फंस जाते हैं भारतीय मजदूर?
अशोक कुमार/ बीबीसी
Updated Mon, 08 Aug 2016 10:13 AM IST
sushma swaraj
- फोटो : `
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तेल की दौलत से मालामाल सऊदी अरब दुनिया भर के लाखों कामगारों की मंजिल रहा है, लेकिन आजकल वहां हजारों भारतीय मजदूर फाकाकशी को मजबूर हैं। सऊदी अरब में लगभग दस हजार लोग बेरोगजार हो गए हैं और उन्हें महीनों से वेतन नहीं मिला है। अब भारत सरकार से गुहार लगाने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं है। भारत सरकार ने तत्परता दिखाई। इन लोगों तक खाना पहुंचाया और हर मदद का वादा भी किया।
लेकिन जिस देश में लाखों विदेशी कामगार काम करते हैं, उनके हित और अधिकारों की रक्षा करने की क्या जिम्मेदारी वहां की सरकार पर नहीं आती है? मध्य पूर्व मामलों के जानकार और जेएनयू में प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं, “वहां का लेबर मार्केट फ्री मार्केट कहा जाता है। आधिकारिक तौर पर सरकार इसमें शामिल नहीं है। ये काम कंपनियों को दिया गया है। मान लीजिए कोई कंपनी काम कर रही है तो उन्हें परमिट दिया जाता है कि वो इतने मजदूर, प्लंबर, मिस्त्री या इलेक्ट्रिशियन वो ले कर आ सकते हैं।”
वो बताते हैं, “सरकार का काम सिर्फ वीजा मंजूर करना है, फिर कंपनी मजदूरों से किस तरह का सलूक करती है, कितना वेतन देती है या फिर क्या करती है, इस बारे में सरकार कोई दखल नहीं देती है।” कहा तो यहां तक जाता है कि सऊदी अरब में सरकार वीजा नीलाम करती है और जो कंपनी सबसे ज्यादा पैसा देती है, उसे बड़ी संख्या में वीजा दिए जाते हैं। फिर यही कंपनियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, थाईलैंड या फिलीपींस जैसे देशों से अकसर एजेंटों के जरिए नौकरी पर लोगों को रखती हैं।
इनमें से कोई दूध पहुंचाता है, कोई अस्पतालों में सफाई करता है, कोई कूड़ा उठाता है, कोई बढई है, कोई प्लंबर और कोई नाई। इन लोगों के भेजे पैसे से न सिर्फ उनका परिवार चलता है, उनके देश का खजाना भी भरता है। सऊदी अरब में रहने वाले भारतीय भारत को हर साल अरबों डॉलर की रकम भेजते हैं। भारतीयों मजदूरों की मौजूदा समस्या को उनकी कंपनी की आर्थिक मुश्किलों से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन सऊदी अरब में विदेशी कामगारों के शोषण के मामले तो अकसर सामने आते हैं।
कई साल तक सऊदी अरब में तैनात रहे पूर्व राजनयिक जिक्र उर रहमान कहते हैं, “उनके श्रम मंत्रालय के कानून सख्त हैं। लेकिन जहां उनका कानून लागू नहीं होता, वहां वो दखलंदाजी नहीं करते हैं।” वो कहते हैं, “जहां तक शोषण की बात है तो इसके लिए भी उनके यहां कानून हैं लेकिन बहुत सारे लोगों को इन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं होती है और वो सीधे दूतावासों में आ जाते हैं।” मानवाधिकार संगठन एम्नेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि बीते 25 साल में भारत से जितने लोग सऊदी अरब गए हैं, उतने किसी खाड़ी देश में नहीं गए हैं। ऐसे में हजारों भारतीयों को अगर खाने के लाले पड़ जाएं तो क्या समझा जाए, अरब न्यूज के पूर्व संपादक और सऊदी विश्लेषक खालेद अल-मैना कहते हैं कि इससे सऊदी अरब की 'प्रतिष्ठा को धक्का' लगता है।
वो कहते हैं, “मजदूरों के साथ बहुत नाइंसाफी हुई है। मजदूर अपने पेट के लिए आते हैं, अपने परिवार और बच्चों को छोड़कर आते हैं। ऐसे में उन्हें वेतन तो समय पर मिलना चाहिए। लेकिन कोई सात महीने तो कोई आठ महीने से बैठा है और कोई उनकी मदद नहीं कर रहा है। इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं।” सऊदी अरब में काम करने वाले भारतीयों की संख्या लगभग तीस लाख है। अगर अन्य देशों से वहां पहुंचे कामगारों को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो तादाद 90 लाख के आसपास पहुंचती है। विदेशी कामगारों के शोषण की कहानियां अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनती हैं। उन्हें जिस वेतन का वादा किया जाता है वो नहीं मिलता और वो भी देर से दिया जाता है। काम के हालात ठीक नहीं होते। यहां तक कि पासपोर्ट भी कंपनी रख लेती है। कर्मचारी तभी अपने देश जा सकता है जब कंपनी चाहेगी, भले ही कर्मचारी की जो मजबूरी हो।
फिर भी सऊदी अरब गरीब मजदूरों को लुभाता है।
प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं, “भारत में कोई ड्राइवर पांच, छह या दस हजार रुपए में काम करता है तो वहां उसे 25 से 30 हजार रुपए आराम से मिलते हैं। वहां चूंकि खाने पीने का खर्च कम है, इसलिए कोई भी 10 से 15 हजार रुपए बचा लेता है और इसलिए वो लोग वहां जाते हैं।” एशिया और अफ्रीका के देशों से बड़ी संख्या में लोग सऊदी अरब जाते हैं। इसीलिए शायद सऊदी अरब को ये चिंता करने की जरूरत ही नहीं है कि वहां काम करने वालों की कमी होगी। ऐसे में कम वेतन और कम सुविधाओं पर भी लोग आसानी से तैयार हो जाते हैं।
कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाने वाला अर्थशास्त्र, कामगारों के शोषण की जमीन तैयार करता है। पूर्व राजनयिक जिक्र उर रहमान कहते हैं कि सऊदी अरब में ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई होती है, बशर्ते मामला अधिकारियों या फिर भारतीय दूतावास तक पहुंचे।
प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं, “कोई भी बात अगर हमारे दूतावास या उनके मंत्रालय की जानकारी में आती है तो वहां उस पर सख्त कार्रवाई होती है। बहुत सारे स्पॉन्सर्स को जेल होती है, उन पर जुर्माना लगता है और दंड लगाया जाता है। अगर ऐसा नहीं होता और मामला एकतरफा होता है तो ये बताइए कि 30 लाख भारतीय वहां कैसे होते?”
लेकिन मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की 2014 की एक रिपोर्ट कहती है कि रोजी रोटी की तलाश में विदेश जाने वाले ये लोग अदालत और कहचरी जाने से घबराते हैं। “उन्हें इस बात का डर सताता है कि अगर कंपनी के खिलाफ शिकायत लगाई तो उन पर कार्रवाई हो सकती है और यहां तक कि उनकी नौकरी भी जा सकती है।” सऊदी अरब में सबसे बड़े धार्मिक नेता ग्रांड मुफ्ती शेख अब्दुल अजीज अल शेख कह चुके हैं कि विदेशी कामगारों का शोषण पूरी तरह के गैर इस्लामी है।
ये बात उन्होंने अब नहीं, 14 साल पहले 2002 में कही थी। लेकिन प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं कि सैद्धांतिक रुख अपनी जगह है लेकिन जमीनी हालात अलग ही हैं। भारत सरकार हस्तक्षेप कर भले ही हजारों भारतीयों की मौजूदा समस्या को हल कर ले, लेकिन जब तक अपने घर में नौकरी के पर्याप्त मौके नहीं होंगे तब तक गरीबी और मुफलिसी में रहने वालों को सऊदी अरब जैसे खाड़ी देश अपनी तरफ खींचते रहेंगे और शायद लौट-लौट कर ऐसे संकट सामने आते रहेंगे।
तेल की दौलत से मालामाल सऊदी अरब दुनिया भर के लाखों कामगारों की मंजिल रहा है, लेकिन आजकल वहां हजारों भारतीय मजदूर फाकाकशी को मजबूर हैं। सऊदी अरब में लगभग दस हजार लोग बेरोगजार हो गए हैं और उन्हें महीनों से वेतन नहीं मिला है। अब भारत सरकार से गुहार लगाने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं है। भारत सरकार ने तत्परता दिखाई। इन लोगों तक खाना पहुंचाया और हर मदद का वादा भी किया।
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लेकिन जिस देश में लाखों विदेशी कामगार काम करते हैं, उनके हित और अधिकारों की रक्षा करने की क्या जिम्मेदारी वहां की सरकार पर नहीं आती है? मध्य पूर्व मामलों के जानकार और जेएनयू में प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं, “वहां का लेबर मार्केट फ्री मार्केट कहा जाता है। आधिकारिक तौर पर सरकार इसमें शामिल नहीं है। ये काम कंपनियों को दिया गया है। मान लीजिए कोई कंपनी काम कर रही है तो उन्हें परमिट दिया जाता है कि वो इतने मजदूर, प्लंबर, मिस्त्री या इलेक्ट्रिशियन वो ले कर आ सकते हैं।”
वो बताते हैं, “सरकार का काम सिर्फ वीजा मंजूर करना है, फिर कंपनी मजदूरों से किस तरह का सलूक करती है, कितना वेतन देती है या फिर क्या करती है, इस बारे में सरकार कोई दखल नहीं देती है।” कहा तो यहां तक जाता है कि सऊदी अरब में सरकार वीजा नीलाम करती है और जो कंपनी सबसे ज्यादा पैसा देती है, उसे बड़ी संख्या में वीजा दिए जाते हैं। फिर यही कंपनियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, थाईलैंड या फिलीपींस जैसे देशों से अकसर एजेंटों के जरिए नौकरी पर लोगों को रखती हैं।
इनमें से कोई दूध पहुंचाता है, कोई अस्पतालों में सफाई करता है, कोई कूड़ा उठाता है, कोई बढई है, कोई प्लंबर और कोई नाई। इन लोगों के भेजे पैसे से न सिर्फ उनका परिवार चलता है, उनके देश का खजाना भी भरता है। सऊदी अरब में रहने वाले भारतीय भारत को हर साल अरबों डॉलर की रकम भेजते हैं। भारतीयों मजदूरों की मौजूदा समस्या को उनकी कंपनी की आर्थिक मुश्किलों से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन सऊदी अरब में विदेशी कामगारों के शोषण के मामले तो अकसर सामने आते हैं।
फिर भी सऊदी अरब गरीब मजदूरों को लुभाता है
कई साल तक सऊदी अरब में तैनात रहे पूर्व राजनयिक जिक्र उर रहमान कहते हैं, “उनके श्रम मंत्रालय के कानून सख्त हैं। लेकिन जहां उनका कानून लागू नहीं होता, वहां वो दखलंदाजी नहीं करते हैं।” वो कहते हैं, “जहां तक शोषण की बात है तो इसके लिए भी उनके यहां कानून हैं लेकिन बहुत सारे लोगों को इन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं होती है और वो सीधे दूतावासों में आ जाते हैं।” मानवाधिकार संगठन एम्नेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि बीते 25 साल में भारत से जितने लोग सऊदी अरब गए हैं, उतने किसी खाड़ी देश में नहीं गए हैं। ऐसे में हजारों भारतीयों को अगर खाने के लाले पड़ जाएं तो क्या समझा जाए, अरब न्यूज के पूर्व संपादक और सऊदी विश्लेषक खालेद अल-मैना कहते हैं कि इससे सऊदी अरब की 'प्रतिष्ठा को धक्का' लगता है।
वो कहते हैं, “मजदूरों के साथ बहुत नाइंसाफी हुई है। मजदूर अपने पेट के लिए आते हैं, अपने परिवार और बच्चों को छोड़कर आते हैं। ऐसे में उन्हें वेतन तो समय पर मिलना चाहिए। लेकिन कोई सात महीने तो कोई आठ महीने से बैठा है और कोई उनकी मदद नहीं कर रहा है। इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं।” सऊदी अरब में काम करने वाले भारतीयों की संख्या लगभग तीस लाख है। अगर अन्य देशों से वहां पहुंचे कामगारों को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो तादाद 90 लाख के आसपास पहुंचती है। विदेशी कामगारों के शोषण की कहानियां अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनती हैं। उन्हें जिस वेतन का वादा किया जाता है वो नहीं मिलता और वो भी देर से दिया जाता है। काम के हालात ठीक नहीं होते। यहां तक कि पासपोर्ट भी कंपनी रख लेती है। कर्मचारी तभी अपने देश जा सकता है जब कंपनी चाहेगी, भले ही कर्मचारी की जो मजबूरी हो।
फिर भी सऊदी अरब गरीब मजदूरों को लुभाता है।
प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं, “भारत में कोई ड्राइवर पांच, छह या दस हजार रुपए में काम करता है तो वहां उसे 25 से 30 हजार रुपए आराम से मिलते हैं। वहां चूंकि खाने पीने का खर्च कम है, इसलिए कोई भी 10 से 15 हजार रुपए बचा लेता है और इसलिए वो लोग वहां जाते हैं।” एशिया और अफ्रीका के देशों से बड़ी संख्या में लोग सऊदी अरब जाते हैं। इसीलिए शायद सऊदी अरब को ये चिंता करने की जरूरत ही नहीं है कि वहां काम करने वालों की कमी होगी। ऐसे में कम वेतन और कम सुविधाओं पर भी लोग आसानी से तैयार हो जाते हैं।
बताइए कि 30 लाख भारतीय वहां कैसे होते
विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह भारतीय मजदूरों की समस्या सुलझाने जेद्दा गए
कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाने वाला अर्थशास्त्र, कामगारों के शोषण की जमीन तैयार करता है। पूर्व राजनयिक जिक्र उर रहमान कहते हैं कि सऊदी अरब में ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई होती है, बशर्ते मामला अधिकारियों या फिर भारतीय दूतावास तक पहुंचे।
प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं, “कोई भी बात अगर हमारे दूतावास या उनके मंत्रालय की जानकारी में आती है तो वहां उस पर सख्त कार्रवाई होती है। बहुत सारे स्पॉन्सर्स को जेल होती है, उन पर जुर्माना लगता है और दंड लगाया जाता है। अगर ऐसा नहीं होता और मामला एकतरफा होता है तो ये बताइए कि 30 लाख भारतीय वहां कैसे होते?”
लेकिन मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की 2014 की एक रिपोर्ट कहती है कि रोजी रोटी की तलाश में विदेश जाने वाले ये लोग अदालत और कहचरी जाने से घबराते हैं। “उन्हें इस बात का डर सताता है कि अगर कंपनी के खिलाफ शिकायत लगाई तो उन पर कार्रवाई हो सकती है और यहां तक कि उनकी नौकरी भी जा सकती है।” सऊदी अरब में सबसे बड़े धार्मिक नेता ग्रांड मुफ्ती शेख अब्दुल अजीज अल शेख कह चुके हैं कि विदेशी कामगारों का शोषण पूरी तरह के गैर इस्लामी है।
ये बात उन्होंने अब नहीं, 14 साल पहले 2002 में कही थी। लेकिन प्रोफेसर कमाल पाशा कहते हैं कि सैद्धांतिक रुख अपनी जगह है लेकिन जमीनी हालात अलग ही हैं। भारत सरकार हस्तक्षेप कर भले ही हजारों भारतीयों की मौजूदा समस्या को हल कर ले, लेकिन जब तक अपने घर में नौकरी के पर्याप्त मौके नहीं होंगे तब तक गरीबी और मुफलिसी में रहने वालों को सऊदी अरब जैसे खाड़ी देश अपनी तरफ खींचते रहेंगे और शायद लौट-लौट कर ऐसे संकट सामने आते रहेंगे।
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