अमेरिका में महंगाई हर रोज बढ़ रही है। जरूरी चीजों के लिए हर कुछ दिन पर उपभोक्ताओं को पहले से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि कीमतें जिस हद तक बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए ये मुमकिन नहीं लगता कि फिर कभी दाम घटकर उस सीमा के अंदर आएंगे, जिन पर वस्तुओं को खरीदने की लोगों को आदत रही है। महंगाई की शुरुआत कोरोना महामारी के आने के साथ ही हो गई थी। अब यह कमरतोड़ रूप ले चुकी है।
वेबसाइट एक्सियोस.कॉम ने एक विश्लेषण में कहा है कि मुद्रास्फीति दर किसी न किसी सीमा पर जाकर स्थिर जरूर हो जाएगी। लेकिन उसके बाद चीजें या सेवाएं पहले की तरह सस्ती हो पाएंगी, ये संभावना कमजोर है। कोरोना महामारी के पहले तक अमेरिका में मुद्रास्फीति दर नियंत्रण में थी। अमेरिका के सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व सालाना दो फीसदी की दर पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की नीति पर चल रहा था। कई वर्षों से वह अपने इस लक्ष्य में सफल था।
महंगाई बढ़ने से बड़ी कंपनियां खुश
लेकिन महामारी आने के बाद से हालात उसके काबू में नहीं रहे हैं। सप्लाई चेन में आई रुकावटों, और श्रमिकों की कमी की वजह से महंगाई में बढ़ोतरी शुरू हुई। तब से प्राकृतिक गैस, खाद्य पदार्थ और आम उपभोग की वस्तुएं लगातार महंगी होती गई हैं। दाम बढ़ने का ये सिलसिला कहां रुकेगा, ये अभी किसी को समझ नहीं आ रहा है। इस बीच जो एक सेक्टर खुश है, वह बड़ी कंपनियां हैं। महंगाई बढ़ने के कारण उनका मुनाफा बढ़ा है।
अब अमेजन ने ऑनलाइन विक्रेताओं के लिए सरचार्ज (अधिभार) लगाने का एलान किया है। कंपनी ने कहा है कि जब मौजूदा संकट दूर होगा, तब ये सरचार्ज वापस ले लिया जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आम तौर पर जो कीमतें एक बार चढ़ जाती हैं, वे फिर कभी अपने पुराने स्तर पर नहीं लौटतीं। इसका मतलब यह है कि उपभोक्ताओं पर अभी जो भार पड़ा है, संभव है कि अब इसे उन्हें हमेशा उठाना पड़े।
महंगाई से निजात मिलने की संभावना नहीं
विश्लेषक होप किंग और नाथन बोमेय ने वेबसाइट एक्सियोस पर एक टिप्पणी में लिखा है कि निकट भविष्य में महंगाई से लगी चोट से निजात मिलने की कोई संभावना नहीं है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक सबसे तेजी से दाम खाद्य पदार्थों के बढ़ रहे हैं। पिछले महीने उपभोक्ताओं को राशन खर्च पर जितना बिल चुकाना पड़ा था, उससे अधिक रकम इस महीने उन्हें खर्च करनी पड़ रही है।
अमेरिकी वित्त कंपनी एमएससीआई के रिसर्च अधिकारी थॉमस वेरब्रकेन ने कहा है- ‘बाजार में आम तौर पर उम्मीद यही है कि मुद्रास्फीति दर आने वाले वर्षों में गिर कर फेडरल रिजर्व की तय सीमा के अंदर आ जाएगी। लेकिन यह उम्मीद पूरी होने की संभावना नहीं है कि कीमतें वापस वहां पहुंच जाएंगी, जहां वे कोविड-19 महामारी के पहले थीं।’
फेडरल रिजर्व महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की नीति घोषित कर चुका है। लेकिन उसका दुनिया के दूसरे हिस्सों में खराब असर हुआ है। खासकर विकासशील देशों के बाजार से निवेशक पैसा निकाल कर अमेरिका में निवेश कर रहे हैँ। इससे उन देशों में शेयर बाजार गिर रहे हैं और वहां की मुद्रा सस्ती हो रही है। नतीजतन, वहां महंगाई और बढ़ने का अंदेशा है।
विस्तार
अमेरिका में महंगाई हर रोज बढ़ रही है। जरूरी चीजों के लिए हर कुछ दिन पर उपभोक्ताओं को पहले से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि कीमतें जिस हद तक बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए ये मुमकिन नहीं लगता कि फिर कभी दाम घटकर उस सीमा के अंदर आएंगे, जिन पर वस्तुओं को खरीदने की लोगों को आदत रही है। महंगाई की शुरुआत कोरोना महामारी के आने के साथ ही हो गई थी। अब यह कमरतोड़ रूप ले चुकी है।
वेबसाइट एक्सियोस.कॉम ने एक विश्लेषण में कहा है कि मुद्रास्फीति दर किसी न किसी सीमा पर जाकर स्थिर जरूर हो जाएगी। लेकिन उसके बाद चीजें या सेवाएं पहले की तरह सस्ती हो पाएंगी, ये संभावना कमजोर है। कोरोना महामारी के पहले तक अमेरिका में मुद्रास्फीति दर नियंत्रण में थी। अमेरिका के सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व सालाना दो फीसदी की दर पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की नीति पर चल रहा था। कई वर्षों से वह अपने इस लक्ष्य में सफल था।
महंगाई बढ़ने से बड़ी कंपनियां खुश
लेकिन महामारी आने के बाद से हालात उसके काबू में नहीं रहे हैं। सप्लाई चेन में आई रुकावटों, और श्रमिकों की कमी की वजह से महंगाई में बढ़ोतरी शुरू हुई। तब से प्राकृतिक गैस, खाद्य पदार्थ और आम उपभोग की वस्तुएं लगातार महंगी होती गई हैं। दाम बढ़ने का ये सिलसिला कहां रुकेगा, ये अभी किसी को समझ नहीं आ रहा है। इस बीच जो एक सेक्टर खुश है, वह बड़ी कंपनियां हैं। महंगाई बढ़ने के कारण उनका मुनाफा बढ़ा है।
अब अमेजन ने ऑनलाइन विक्रेताओं के लिए सरचार्ज (अधिभार) लगाने का एलान किया है। कंपनी ने कहा है कि जब मौजूदा संकट दूर होगा, तब ये सरचार्ज वापस ले लिया जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आम तौर पर जो कीमतें एक बार चढ़ जाती हैं, वे फिर कभी अपने पुराने स्तर पर नहीं लौटतीं। इसका मतलब यह है कि उपभोक्ताओं पर अभी जो भार पड़ा है, संभव है कि अब इसे उन्हें हमेशा उठाना पड़े।
महंगाई से निजात मिलने की संभावना नहीं
विश्लेषक होप किंग और नाथन बोमेय ने वेबसाइट एक्सियोस पर एक टिप्पणी में लिखा है कि निकट भविष्य में महंगाई से लगी चोट से निजात मिलने की कोई संभावना नहीं है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक सबसे तेजी से दाम खाद्य पदार्थों के बढ़ रहे हैं। पिछले महीने उपभोक्ताओं को राशन खर्च पर जितना बिल चुकाना पड़ा था, उससे अधिक रकम इस महीने उन्हें खर्च करनी पड़ रही है।
अमेरिकी वित्त कंपनी एमएससीआई के रिसर्च अधिकारी थॉमस वेरब्रकेन ने कहा है- ‘बाजार में आम तौर पर उम्मीद यही है कि मुद्रास्फीति दर आने वाले वर्षों में गिर कर फेडरल रिजर्व की तय सीमा के अंदर आ जाएगी। लेकिन यह उम्मीद पूरी होने की संभावना नहीं है कि कीमतें वापस वहां पहुंच जाएंगी, जहां वे कोविड-19 महामारी के पहले थीं।’
फेडरल रिजर्व महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की नीति घोषित कर चुका है। लेकिन उसका दुनिया के दूसरे हिस्सों में खराब असर हुआ है। खासकर विकासशील देशों के बाजार से निवेशक पैसा निकाल कर अमेरिका में निवेश कर रहे हैँ। इससे उन देशों में शेयर बाजार गिर रहे हैं और वहां की मुद्रा सस्ती हो रही है। नतीजतन, वहां महंगाई और बढ़ने का अंदेशा है।