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Joe Biden administration begins review of US sanctions policy
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बाइडन प्रशासन की समीक्षा: अमेरिकी प्रतिबंध बनते हैं आम लोगों की पीड़ा, शासकों पर ज्यादा नहीं पड़ता फर्क
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 23 Oct 2021 07:55 PM IST
सार
अमेरिकी वित्त मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से अमेरिकी प्रतिबंधों में 933 फीसदी का इजाफा हुआ है। विशेषज्ञों ने राय जताई है कि प्रतिबंधों के अत्यधिक इस्तेमाल से ये उपाय कमजोर हो गया है, क्योंकि इनके निशाना बने देश और कंपनियां अपने कारोबार के लिए नए रास्ते तलाश लेती हैं...
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन
- फोटो : पीटीआई (फाइल)
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जो बाइडन प्रशासन ने अमेरिका की प्रतिबंध लगाने की नीति की समीक्षा शुरू की है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में प्रतिबंध लगाने की रफ्तार काफी बढ़ गई थी। अब बाइडन प्रशासन में यह राय बनी है कि प्रतिबंध एक ऐसा उपाय होना चाहिए, जिससे जिस देश पर इन्हें लगाया जाए, उसके व्यवहार में बदलाव आए। लेकिन अकसर ऐसा देखा गया है कि गुजरे वक्त में ऐसा नहीं हुआ है। उलटे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण निशाना बने देशों में आम नागरिकों की मुश्किलें बढ़ी हैं, जिससे अमेरिका के प्रति उनमें विरोध भाव और गहरा हो गया है।
अमेरिकी प्रतिबंधों में 933 फीसदी का इजाफा
अमेरिकी वित्त मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से अमेरिकी प्रतिबंधों में 933 फीसदी का इजाफा हुआ है। विशेषज्ञों ने राय जताई है कि प्रतिबंधों के अत्यधिक इस्तेमाल से ये उपाय कमजोर हो गया है, क्योंकि इनके निशाना बने देश और कंपनियां अपने कारोबार के लिए नए रास्ते तलाश लेती हैं। इसलिए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में प्रतिबंध अधिक जांच-परख के बाद ही लगाए जाने चाहिए। साथ ही इस बारे में फैसला लेते समय यह देखना चाहिए कि आम लोगों पर उनका क्या असर होगा। प्रतिबंध लगाते वक्त यह भी स्पष्ट कर लेना चाहिए कि किन शर्तों के पूरा होने के बाद उन्हें हटा लिया जाएगा।
‘प्रतिबंध एक हथियार हैं, उद्देश्य नहीं'
एक परिचर्चा में भाग लेते हुए पूर्व वित्त मंत्री जैक लिउ ने कहा- ‘प्रतिबंध एक हथियार हैं, वे अपने-आप में उद्देश्य नहीं हैं। अगर हथियार का उपयोग व्यापक कूटनीतिक नजरिए के साथ किया जाए, तो आप विरोधी को पीड़ा पहुंचा सकते हैं, लेकिन उससे आपका मकसद पूरा नहीं हो सकता।’ इस परिचर्चा में उप वित्त मंत्री एडवले अडेयेमो भी शामिल थे, जिन्होंने ताजा अध्ययन का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि अकर प्रतिबंध लगाने को ‘सख्ती’ और इन्हें हटाने को ‘कमजोरी’ के रूप में देखा जाता है। इस नजरिए के कारण नाकाम होने पर भी इस नीति को जारी रखा जाता है। इनका निशाना शासक होते हैं, लेकिन उनसे ज्यादा नुकसान आम नागरिकों को पहुंचता है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने नए प्रतिबंध लगाने को लेकर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की तुलना में कम उत्साह दिखाया है। लेकिन उन्होंने प्रतिबंध हटाने की अतिरिक्त इच्छा भी नहीं दिखाई है। बल्कि बेलारुस और क्यूबा पर उन्होंने कुछ नए प्रतिबंध लगाए हैं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय प्रतिबंध को-ऑर्डिनेटर रह चुके डैनियल फ्राइड ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा- ‘अकसर प्रतिबंध यह दिखाने के लिए लगा दिए जाते हैं कि सरकार ने कुछ किया।’
जैक लिउ ने कहा कि प्रतिबंध का उद्देश्य यह नहीं हो सकता कि बीमार लोगों को दवाओं और भूखे लोगों को खाद्य पदार्थों से वंचित कर दिया जाए। प्रतिबंध का मकसद होता है कि संसाधनों से किसी देश को वंचित किया जाए, ताकि उसे आर्थिक मुसीबत झेलनी पड़े। लेकिन उसका दुष्परिणाम आम लोगों पर पड़ता है। विश्लेषकों ने कहा है कि लिउ ने असहज सच बात को सामने रखा है। लंबी अविधि तक जारी रहने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों की कीमत अकसर निर्दोष लोगों को ही चुकानी पड़ी है।
विस्तार
जो बाइडन प्रशासन ने अमेरिका की प्रतिबंध लगाने की नीति की समीक्षा शुरू की है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में प्रतिबंध लगाने की रफ्तार काफी बढ़ गई थी। अब बाइडन प्रशासन में यह राय बनी है कि प्रतिबंध एक ऐसा उपाय होना चाहिए, जिससे जिस देश पर इन्हें लगाया जाए, उसके व्यवहार में बदलाव आए। लेकिन अकसर ऐसा देखा गया है कि गुजरे वक्त में ऐसा नहीं हुआ है। उलटे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण निशाना बने देशों में आम नागरिकों की मुश्किलें बढ़ी हैं, जिससे अमेरिका के प्रति उनमें विरोध भाव और गहरा हो गया है।
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अमेरिकी प्रतिबंधों में 933 फीसदी का इजाफा
अमेरिकी वित्त मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से अमेरिकी प्रतिबंधों में 933 फीसदी का इजाफा हुआ है। विशेषज्ञों ने राय जताई है कि प्रतिबंधों के अत्यधिक इस्तेमाल से ये उपाय कमजोर हो गया है, क्योंकि इनके निशाना बने देश और कंपनियां अपने कारोबार के लिए नए रास्ते तलाश लेती हैं। इसलिए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में प्रतिबंध अधिक जांच-परख के बाद ही लगाए जाने चाहिए। साथ ही इस बारे में फैसला लेते समय यह देखना चाहिए कि आम लोगों पर उनका क्या असर होगा। प्रतिबंध लगाते वक्त यह भी स्पष्ट कर लेना चाहिए कि किन शर्तों के पूरा होने के बाद उन्हें हटा लिया जाएगा।
‘प्रतिबंध एक हथियार हैं, उद्देश्य नहीं'
एक परिचर्चा में भाग लेते हुए पूर्व वित्त मंत्री जैक लिउ ने कहा- ‘प्रतिबंध एक हथियार हैं, वे अपने-आप में उद्देश्य नहीं हैं। अगर हथियार का उपयोग व्यापक कूटनीतिक नजरिए के साथ किया जाए, तो आप विरोधी को पीड़ा पहुंचा सकते हैं, लेकिन उससे आपका मकसद पूरा नहीं हो सकता।’ इस परिचर्चा में उप वित्त मंत्री एडवले अडेयेमो भी शामिल थे, जिन्होंने ताजा अध्ययन का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि अकर प्रतिबंध लगाने को ‘सख्ती’ और इन्हें हटाने को ‘कमजोरी’ के रूप में देखा जाता है। इस नजरिए के कारण नाकाम होने पर भी इस नीति को जारी रखा जाता है। इनका निशाना शासक होते हैं, लेकिन उनसे ज्यादा नुकसान आम नागरिकों को पहुंचता है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने नए प्रतिबंध लगाने को लेकर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की तुलना में कम उत्साह दिखाया है। लेकिन उन्होंने प्रतिबंध हटाने की अतिरिक्त इच्छा भी नहीं दिखाई है। बल्कि बेलारुस और क्यूबा पर उन्होंने कुछ नए प्रतिबंध लगाए हैं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय प्रतिबंध को-ऑर्डिनेटर रह चुके डैनियल फ्राइड ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा- ‘अकसर प्रतिबंध यह दिखाने के लिए लगा दिए जाते हैं कि सरकार ने कुछ किया।’
जैक लिउ ने कहा कि प्रतिबंध का उद्देश्य यह नहीं हो सकता कि बीमार लोगों को दवाओं और भूखे लोगों को खाद्य पदार्थों से वंचित कर दिया जाए। प्रतिबंध का मकसद होता है कि संसाधनों से किसी देश को वंचित किया जाए, ताकि उसे आर्थिक मुसीबत झेलनी पड़े। लेकिन उसका दुष्परिणाम आम लोगों पर पड़ता है। विश्लेषकों ने कहा है कि लिउ ने असहज सच बात को सामने रखा है। लंबी अविधि तक जारी रहने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों की कीमत अकसर निर्दोष लोगों को ही चुकानी पड़ी है।
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