पिछले साल सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक वर्चुअल बैठक चल रही थी। कुछ ही देर बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल उठे और इस बैठक को छोड़कर चले गए।
ऐसा करने के पीछे वजह ये थी कि बैठक में शामिल पाकिस्तान के प्रतिनिधि ने अपने पीछे पाकिस्तान का एक नया राजनीतिक नक्शा लगाया हुआ था जिसमें जम्मू-कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र और सर क्रीक और गुजरात के जूनागढ़ को पाकिस्तान के हिस्से के तौर पर दिखाया गया था।
इस बैठक की मेजबानी रूस कर रहा था और उसने पाकिस्तान को उस नक्शे को न इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। लेकिन पाकिस्तानी प्रतिनिधि उस नक्शे को इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटना चाहते थे। वो पाकिस्तानी प्रतिनिधि मोईद यूसुफ थे जिन्हें 18 मई को पाकिस्तान का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है।
मोईद बमुश्किल चालीस साल के हैं और वे मुख्य तौर पर अकादमिक हलके से आते हैं, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के स्कॉलर के तौर पर जाना जाता है। पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर अब तक ज्यादातर अनुभवी सैनिक अधिकारी ही बैठते रहे हैं, मोईद का, यहां तक कि उनके परिवार का भी पाकिस्तान की सेना से कोई ताल्लुक नहीं है।
वे अंडर ग्रैजुएट के तौर पर ही पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए थे। बॉस्टन यूनिवर्सिटी एलुम्नाइ एसोसिएशन की वेबसाइट बताती है कि वे बहुत कम उम्र में ही बहुत सारी अकादमिक उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं।
वेबसाइट को यूसुफ ने अपने बारे में बताया था, 'मैं डॉक्टरों के परिवार से आता हूं। मेरे दादा, मेरे माता-पिता और मेरी बहन सब डॉक्टर हैं। मेरे परिवार के लोग यही चाहते थे कि मैं भी डॉक्टर बनूं। यह एक तरह से सुरक्षित करियर था और मेरे लिए तय भी था, लेकिन पाकिस्तान में सियासत लोगों का असली शगल है। चाय पीते हुए सियासत की ही बातें होती हैं। मुझे शुरुआत से ही लगा कि सियासत की बातें करने वाली दुनिया मुझे रास आएगी।'
नियुक्ति के बाद अटकलों का बाजार गर्म
कभी पेशेवर गोल्फर बनने की तमन्ना रखने वाले यूसुफ ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति का गहन अध्ययन करने का फैसला किया और पढ़ाई-लिखाई के रास्ते वे देश के सबसे अहम पदों में से एक पर जा पहुंचे हैं।
यूसुफ के पाकिस्तान के एनएसए बनने के बाद अटकलों का बाजार गर्म है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बैक-चैनल डिप्लोमेसी के एक नए दौर की शुरुआत होने जा रही है।जब इस साल फरवरी में भारत और पाकिस्तान ने सरहद पर संघर्षविराम की घोषणा की थी तो ऐसा माना जा रहा था कि ये डोवाल और यूसुफ के बीच हुई बैक-चैनल डिप्लोमेसी का नतीजा था।
यूसुफ ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि उनके और डोवाल के बीच ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई है। उन्होंने तब कहा था कि नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम डीजीएमओ के स्थापित चैनल के माध्यम से हुई चर्चा का परिणाम है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसी चर्चाएं लोगों की नजरों से परे ही होती हैं।
यूसुफ को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक के रूप में दिसंबर 2019 में नियुक्त किया गया था और उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। इस भूमिका में यूसुफ का काम प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक योजनाओं पर सलाह देना था। एनएसए के पद पर नियुक्त होने के बाद यूसुफ का दर्जा केंद्रीय मंत्री का कर दिया गया है।
एनएसए के पद पर उनकी नियुक्ति पाकिस्तान की विदेश नीति को एक नई दिशा देने की कोशिश में उठाया गया क़दम हो सकता है.
यूसुफ़ अमेरिकी राजनयिकों और थिंक टैंकों के साथ अच्छे संबंध रखते हैं और पाकिस्तानी सेना के साथ भी उनके रिश्ते ख़राब नहीं हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इमरान ख़ान की तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की सरकार ने 2019 में एनएसए के पद को ख़त्म कर दिया था. उस वक़्त यह अटकलें लगाई गई थीं कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी एनएसए की नियुक्ति के ख़िलाफ़ थे.
यूसुफ़ की नियुक्ति कुरैशी की आक्रामक विदेश नीति को संतुलित करने की एक कोशिश भी हो सकती है. हाल ही में क़ुरैशी ने भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ चीज़ों के व्यापार की बहाली को रोक दिया था.
दरअसल, एक उच्चस्तरीय समिति ने ये सिफ़ारिश की थी की पाकिस्तान को भारत से चीनी और कपास का आयात करना चाहिए. सरहद पर संघर्ष विराम के कुछ दिन बाद ही इस व्यापार की बहाली की कोशिश की जा रही थी, लेकिन क़ुरैशी ने इससे इनकार कर दिया.
वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार वुसअतुल्लाह ख़ान का कहना है कि यूसुफ़ की एनएसए के तौर पर नियुक्ति कोई बड़ी बात नहीं है.
वे कहते हैं, "यह ज़ाहिर है कि ये एक सलाहकार वाला ओहदा है. भारत और पाकिस्तान में एनएसए की ज़िम्मेदारियां तक़रीबन एक सी हैं. फ़र्क़ यह है कि पाकिस्तान में आर्मी की भूमिका हावी रहती है."
वुसअतुल्लाह कहते हैं कि "वे एक पढ़े-लिखे आदमी हैं, नौजवान हैं, उनका तजुर्बा अंतरराष्ट्रीय स्तर का है और वो इस भू-भाग को अच्छे से जानते हैं. उनका मानना है कि यूसुफ़ का पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से कोई संघर्ष नहीं होगा क्योंकि वे सीधे प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को जवाबदेह हैं."
2019 की फ़रवरी में हुए पुलवामा हमले और बालाकोट हवाई हमले के बाद यूसुफ़ ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान एक वास्तविक परमाणु संकट के क़रीब हैं और यह मामला तेज़ी से बिगड़ सकता है.
उन्होंने यह भी कहा था कि शीत युद्ध के विपरीत, भारत और पाकिस्तान के पास संकट को कम करने का कोई भरोसेमंद साधन नहीं है.
यूसुफ़ ने कहा था कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वे ये तो जानते हैं कि संकट कैसे शुरू होता है, लेकिन युद्ध कहाँ जाता है, वे नहीं जानते.
उस वक़्त यूसुफ़ ने यह भी कहा था कि अतीत में जब-जब भारत और पाकिस्तान एक बड़े संकट में पड़े हैं, तो अमेरिका ने ही मध्यस्थता करके उन्हें पीछे हटने के लिए राज़ी किया है. साथ ही, यह भी कहा था कि अतीत में शटल कूटनीति ही काम आई जब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के वरिष्ठ अधिकारी दोनों देशों में आए और उन्हें एहसास दिलाया कि टकराव को रोकने की ज़रुरत है.
यूसुफ़ ने कहा था कि उस शटल डिप्लोमेसी को तुरंत शुरू करने की ज़रुरत है.
यूसुफ़ यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस के एशिया सेंटर के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट हैं. उनका शोध पाकिस्तान में आतंकवाद को कम करने और दक्षिण एशियाई संकट प्रबंधन में अमेरिका की भूमिका पर केंद्रित रहा है.
उनकी हालिया किताब 'ब्रोकेरिंग पीस इन न्यूक्लियर एनवीरोंमेंट्स: यूएस क्राइसिस मैनेजमेंट इन साउथ एशिया' मई 2018 में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित की थी.
लंबे समय तक बॉस्टन और वॉशिंगटन में रह चुके यूसुफ़ बोस्टन विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पोस्ट ग्रैजुएट और राजनीति विज्ञान में डॉक्टरेट कर चुके हैं. वे बॉस्टन यूनिवर्सिटी, जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और क़ायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके हैं.
यूएसआईपी में शामिल होने से पहले यूसुफ़ बॉस्टन यूनिवर्सिटी के पैरडी स्कूल ऑफ़ ग्लोबल स्टडीज़ में फ्रेडरिक एस. पैरडी सेंटर में फ़ेलो थे और साथ ही हार्वर्ड केनेडी स्कूल के मोसावर-रहमानी सेंटर में रिसर्च फ़ेलो थे.
उन्होंने ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट में भी काम किया है. युसूफ़ ने एशियन डेवेलपमेंट बैंक, विश्व बैंक और स्टॉकहोम पॉलिसी रिसर्च के लिए भी बतौर सलाहकार काम किया है.
पिछले साल सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक वर्चुअल बैठक चल रही थी। कुछ ही देर बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल उठे और इस बैठक को छोड़कर चले गए।
ऐसा करने के पीछे वजह ये थी कि बैठक में शामिल पाकिस्तान के प्रतिनिधि ने अपने पीछे पाकिस्तान का एक नया राजनीतिक नक्शा लगाया हुआ था जिसमें जम्मू-कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र और सर क्रीक और गुजरात के जूनागढ़ को पाकिस्तान के हिस्से के तौर पर दिखाया गया था।
इस बैठक की मेजबानी रूस कर रहा था और उसने पाकिस्तान को उस नक्शे को न इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। लेकिन पाकिस्तानी प्रतिनिधि उस नक्शे को इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटना चाहते थे। वो पाकिस्तानी प्रतिनिधि मोईद यूसुफ थे जिन्हें 18 मई को पाकिस्तान का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है।
मोईद बमुश्किल चालीस साल के हैं और वे मुख्य तौर पर अकादमिक हलके से आते हैं, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के स्कॉलर के तौर पर जाना जाता है। पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर अब तक ज्यादातर अनुभवी सैनिक अधिकारी ही बैठते रहे हैं, मोईद का, यहां तक कि उनके परिवार का भी पाकिस्तान की सेना से कोई ताल्लुक नहीं है।
वे अंडर ग्रैजुएट के तौर पर ही पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए थे। बॉस्टन यूनिवर्सिटी एलुम्नाइ एसोसिएशन की वेबसाइट बताती है कि वे बहुत कम उम्र में ही बहुत सारी अकादमिक उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं।
वेबसाइट को यूसुफ ने अपने बारे में बताया था, 'मैं डॉक्टरों के परिवार से आता हूं। मेरे दादा, मेरे माता-पिता और मेरी बहन सब डॉक्टर हैं। मेरे परिवार के लोग यही चाहते थे कि मैं भी डॉक्टर बनूं। यह एक तरह से सुरक्षित करियर था और मेरे लिए तय भी था, लेकिन पाकिस्तान में सियासत लोगों का असली शगल है। चाय पीते हुए सियासत की ही बातें होती हैं। मुझे शुरुआत से ही लगा कि सियासत की बातें करने वाली दुनिया मुझे रास आएगी।'
नियुक्ति के बाद अटकलों का बाजार गर्म
कभी पेशेवर गोल्फर बनने की तमन्ना रखने वाले यूसुफ ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति का गहन अध्ययन करने का फैसला किया और पढ़ाई-लिखाई के रास्ते वे देश के सबसे अहम पदों में से एक पर जा पहुंचे हैं।
यूसुफ के पाकिस्तान के एनएसए बनने के बाद अटकलों का बाजार गर्म है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बैक-चैनल डिप्लोमेसी के एक नए दौर की शुरुआत होने जा रही है।जब इस साल फरवरी में भारत और पाकिस्तान ने सरहद पर संघर्षविराम की घोषणा की थी तो ऐसा माना जा रहा था कि ये डोवाल और यूसुफ के बीच हुई बैक-चैनल डिप्लोमेसी का नतीजा था।
यूसुफ ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि उनके और डोवाल के बीच ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई है। उन्होंने तब कहा था कि नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम डीजीएमओ के स्थापित चैनल के माध्यम से हुई चर्चा का परिणाम है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसी चर्चाएं लोगों की नजरों से परे ही होती हैं।
यूसुफ को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक के रूप में दिसंबर 2019 में नियुक्त किया गया था और उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। इस भूमिका में यूसुफ का काम प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक योजनाओं पर सलाह देना था। एनएसए के पद पर नियुक्त होने के बाद यूसुफ का दर्जा केंद्रीय मंत्री का कर दिया गया है।
एनएसए के पद पर उनकी नियुक्ति पाकिस्तान की विदेश नीति को एक नई दिशा देने की कोशिश में उठाया गया क़दम हो सकता है.
यूसुफ़ अमेरिकी राजनयिकों और थिंक टैंकों के साथ अच्छे संबंध रखते हैं और पाकिस्तानी सेना के साथ भी उनके रिश्ते ख़राब नहीं हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इमरान ख़ान की तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की सरकार ने 2019 में एनएसए के पद को ख़त्म कर दिया था. उस वक़्त यह अटकलें लगाई गई थीं कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी एनएसए की नियुक्ति के ख़िलाफ़ थे.
यूसुफ़ की नियुक्ति कुरैशी की आक्रामक विदेश नीति को संतुलित करने की एक कोशिश भी हो सकती है. हाल ही में क़ुरैशी ने भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ चीज़ों के व्यापार की बहाली को रोक दिया था.
दरअसल, एक उच्चस्तरीय समिति ने ये सिफ़ारिश की थी की पाकिस्तान को भारत से चीनी और कपास का आयात करना चाहिए. सरहद पर संघर्ष विराम के कुछ दिन बाद ही इस व्यापार की बहाली की कोशिश की जा रही थी, लेकिन क़ुरैशी ने इससे इनकार कर दिया.
वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार वुसअतुल्लाह ख़ान का कहना है कि यूसुफ़ की एनएसए के तौर पर नियुक्ति कोई बड़ी बात नहीं है.
वे कहते हैं, "यह ज़ाहिर है कि ये एक सलाहकार वाला ओहदा है. भारत और पाकिस्तान में एनएसए की ज़िम्मेदारियां तक़रीबन एक सी हैं. फ़र्क़ यह है कि पाकिस्तान में आर्मी की भूमिका हावी रहती है."
वुसअतुल्लाह कहते हैं कि "वे एक पढ़े-लिखे आदमी हैं, नौजवान हैं, उनका तजुर्बा अंतरराष्ट्रीय स्तर का है और वो इस भू-भाग को अच्छे से जानते हैं. उनका मानना है कि यूसुफ़ का पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से कोई संघर्ष नहीं होगा क्योंकि वे सीधे प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को जवाबदेह हैं."
2019 की फ़रवरी में हुए पुलवामा हमले और बालाकोट हवाई हमले के बाद यूसुफ़ ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान एक वास्तविक परमाणु संकट के क़रीब हैं और यह मामला तेज़ी से बिगड़ सकता है.
उन्होंने यह भी कहा था कि शीत युद्ध के विपरीत, भारत और पाकिस्तान के पास संकट को कम करने का कोई भरोसेमंद साधन नहीं है.
यूसुफ़ ने कहा था कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वे ये तो जानते हैं कि संकट कैसे शुरू होता है, लेकिन युद्ध कहाँ जाता है, वे नहीं जानते.
उस वक़्त यूसुफ़ ने यह भी कहा था कि अतीत में जब-जब भारत और पाकिस्तान एक बड़े संकट में पड़े हैं, तो अमेरिका ने ही मध्यस्थता करके उन्हें पीछे हटने के लिए राज़ी किया है. साथ ही, यह भी कहा था कि अतीत में शटल कूटनीति ही काम आई जब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के वरिष्ठ अधिकारी दोनों देशों में आए और उन्हें एहसास दिलाया कि टकराव को रोकने की ज़रुरत है.
यूसुफ़ ने कहा था कि उस शटल डिप्लोमेसी को तुरंत शुरू करने की ज़रुरत है.
यूसुफ़ यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस के एशिया सेंटर के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट हैं. उनका शोध पाकिस्तान में आतंकवाद को कम करने और दक्षिण एशियाई संकट प्रबंधन में अमेरिका की भूमिका पर केंद्रित रहा है.
उनकी हालिया किताब 'ब्रोकेरिंग पीस इन न्यूक्लियर एनवीरोंमेंट्स: यूएस क्राइसिस मैनेजमेंट इन साउथ एशिया' मई 2018 में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित की थी.
लंबे समय तक बॉस्टन और वॉशिंगटन में रह चुके यूसुफ़ बोस्टन विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पोस्ट ग्रैजुएट और राजनीति विज्ञान में डॉक्टरेट कर चुके हैं. वे बॉस्टन यूनिवर्सिटी, जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और क़ायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके हैं.
यूएसआईपी में शामिल होने से पहले यूसुफ़ बॉस्टन यूनिवर्सिटी के पैरडी स्कूल ऑफ़ ग्लोबल स्टडीज़ में फ्रेडरिक एस. पैरडी सेंटर में फ़ेलो थे और साथ ही हार्वर्ड केनेडी स्कूल के मोसावर-रहमानी सेंटर में रिसर्च फ़ेलो थे.
उन्होंने ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट में भी काम किया है. युसूफ़ ने एशियन डेवेलपमेंट बैंक, विश्व बैंक और स्टॉकहोम पॉलिसी रिसर्च के लिए भी बतौर सलाहकार काम किया है.
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