कतर में फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन में अब साल भर का समय ही बचा है। इस बीच एक बार फिर वहां इस आयोजन के लिए चल रहे निर्माण कार्यों में मजदूरों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के हनन के गंभीर आरोप लगे हैं। बताया गया है कि निर्माण कार्य में लगी कंपनियों के शोषण के कारण कई मजदूरों की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई है।
कतर सरकार का दावा है कि उसने आव्रजक मजदूरों की सुरक्षा के लिए पूरे कदम उठाए हैं। वर्ल्ड कप के निर्माण कार्यों में बाहरी देशों से आए लगभग 20 लाख मजदूर काम कर रहे हैं। ये संख्या कतर की कुल आबादी के 95 फीसदी के बराबर है। ज्यादातर मजदूर भारत, बांग्लादेश, नेपाल, फिलीपीन्स, और केन्या से लाए गए हैं। आरोप है कि उन्हें कामकाज की खराब स्थितियों और 30 डिग्री सेल्सियस से ऊंचे तापमान में लगातार काम करना पड़ा है।
एक साल में 50 आव्रजक मजदूरों की मौत
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने बीते शुक्रवार को एक रिपोर्ट जारी की। आईएलओ का दोहा में दफ्तर मौजूद है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ल्ड कप के निर्माण कार्यों से जुड़े 50 आव्रजक मजदूरों की बीते एक साल में मृत्यु हो गई है। इनमें से ज्यादा की मृत्यु या तो ऊंचाई से गिरने या सड़क हादसों के कारण हुई। बीते 12 महीनों में काम के दौरान 38 हजार से ज्यादा मजदूर जख्मी हुए, जिनमें तकरीबन पांच गंभीर रूप से घायल हुए। आईएलओ की इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि एक साल से पहले के वर्षों में कुल कितनी मौतें हुईं।
आईएलओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि असल में काम के दौरान कुल जितनी मौतें हुईं, मुमकिन है कि उनका ठीक से रिकॉर्ड न रखा गया हो। इसमें मांग की गई है कि स्वस्थ मजदूर अचानक कैसे मर गए, इसकी पूरी जांच कराई जानी चाहिए। इसके पहले मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल आरोप लगा चुका है कि पिछले एक दशक में हजारों आव्रजक मजदूरों की मौत हुई है। उसने कहा है कि उनमें से कई मौतें असुरक्षित स्थितियों में काम करने की मजबूरी के कारण हुईं।
‘काफला’ सिस्टम से मजदूरों को दी राहत
एमनेस्टी इंटरनेशन के रिसर्चर मे रोमानोस ने अमेरिकी टीवी चैनल एनबीसी से कहा- ‘जो लोग मरे, वे स्वस्थ दिखते थे। कतर में काम करने योग्य होने की स्वास्थ्य परीक्षा में वे कामयाब हुए थे। युवावस्था में उनकी मृत्यु के बाद जारी मृत्यु प्रमाणपत्रों में मौत की वजह दिल का दौरा, सांस रुक जाना, या प्राकृतिक कारणों को दर्ज किया गया।’
इस बीच फुटबॉल के प्रशंसकों ने भी कतर में मजदूरों के कामकाज की बेहतर स्थिति के लिए मुहिम छेड़ दी है। डेनमार्क की टीम ने तो पिछले हफ्ते यह एलान कर दिया कि कतर में मानवाधिकारों की स्थिति संबंधी अपनी शिकायत के कारण वह वर्ल्ड कप के विज्ञापन अभियान में भाग नहीं लेगी। इस साल मार्च में नॉर्वे और जर्मनी की फुटबॉल टीमों ने अपने मैचों के दौरान ऐसी शर्ट पहनीं, जिन पर मानवाधिकारों की रक्षा के नारे लिखे हुए थे।
आलोचनाओं के कारण कतर सरकार ने वर्ल्ड कप के निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों को ‘काफला’ सिस्टम से मुक्ति दे दी थी। इस सिस्टम के तहत आव्रजक मजदूरों के पासपोर्ट जमा करवा लिए जाते थे। लेकिन ताजा रिपोर्ट से जाहिर हुआ है कि ऐसे उपायों से मजदूरों की कार्यस्थितियों में कोई सुधार नहीं हुआ है।
विस्तार
कतर में फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन में अब साल भर का समय ही बचा है। इस बीच एक बार फिर वहां इस आयोजन के लिए चल रहे निर्माण कार्यों में मजदूरों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के हनन के गंभीर आरोप लगे हैं। बताया गया है कि निर्माण कार्य में लगी कंपनियों के शोषण के कारण कई मजदूरों की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई है।
कतर सरकार का दावा है कि उसने आव्रजक मजदूरों की सुरक्षा के लिए पूरे कदम उठाए हैं। वर्ल्ड कप के निर्माण कार्यों में बाहरी देशों से आए लगभग 20 लाख मजदूर काम कर रहे हैं। ये संख्या कतर की कुल आबादी के 95 फीसदी के बराबर है। ज्यादातर मजदूर भारत, बांग्लादेश, नेपाल, फिलीपीन्स, और केन्या से लाए गए हैं। आरोप है कि उन्हें कामकाज की खराब स्थितियों और 30 डिग्री सेल्सियस से ऊंचे तापमान में लगातार काम करना पड़ा है।
एक साल में 50 आव्रजक मजदूरों की मौत
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने बीते शुक्रवार को एक रिपोर्ट जारी की। आईएलओ का दोहा में दफ्तर मौजूद है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ल्ड कप के निर्माण कार्यों से जुड़े 50 आव्रजक मजदूरों की बीते एक साल में मृत्यु हो गई है। इनमें से ज्यादा की मृत्यु या तो ऊंचाई से गिरने या सड़क हादसों के कारण हुई। बीते 12 महीनों में काम के दौरान 38 हजार से ज्यादा मजदूर जख्मी हुए, जिनमें तकरीबन पांच गंभीर रूप से घायल हुए। आईएलओ की इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि एक साल से पहले के वर्षों में कुल कितनी मौतें हुईं।
आईएलओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि असल में काम के दौरान कुल जितनी मौतें हुईं, मुमकिन है कि उनका ठीक से रिकॉर्ड न रखा गया हो। इसमें मांग की गई है कि स्वस्थ मजदूर अचानक कैसे मर गए, इसकी पूरी जांच कराई जानी चाहिए। इसके पहले मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल आरोप लगा चुका है कि पिछले एक दशक में हजारों आव्रजक मजदूरों की मौत हुई है। उसने कहा है कि उनमें से कई मौतें असुरक्षित स्थितियों में काम करने की मजबूरी के कारण हुईं।
‘काफला’ सिस्टम से मजदूरों को दी राहत
एमनेस्टी इंटरनेशन के रिसर्चर मे रोमानोस ने अमेरिकी टीवी चैनल एनबीसी से कहा- ‘जो लोग मरे, वे स्वस्थ दिखते थे। कतर में काम करने योग्य होने की स्वास्थ्य परीक्षा में वे कामयाब हुए थे। युवावस्था में उनकी मृत्यु के बाद जारी मृत्यु प्रमाणपत्रों में मौत की वजह दिल का दौरा, सांस रुक जाना, या प्राकृतिक कारणों को दर्ज किया गया।’
इस बीच फुटबॉल के प्रशंसकों ने भी कतर में मजदूरों के कामकाज की बेहतर स्थिति के लिए मुहिम छेड़ दी है। डेनमार्क की टीम ने तो पिछले हफ्ते यह एलान कर दिया कि कतर में मानवाधिकारों की स्थिति संबंधी अपनी शिकायत के कारण वह वर्ल्ड कप के विज्ञापन अभियान में भाग नहीं लेगी। इस साल मार्च में नॉर्वे और जर्मनी की फुटबॉल टीमों ने अपने मैचों के दौरान ऐसी शर्ट पहनीं, जिन पर मानवाधिकारों की रक्षा के नारे लिखे हुए थे।
आलोचनाओं के कारण कतर सरकार ने वर्ल्ड कप के निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों को ‘काफला’ सिस्टम से मुक्ति दे दी थी। इस सिस्टम के तहत आव्रजक मजदूरों के पासपोर्ट जमा करवा लिए जाते थे। लेकिन ताजा रिपोर्ट से जाहिर हुआ है कि ऐसे उपायों से मजदूरों की कार्यस्थितियों में कोई सुधार नहीं हुआ है।