म्यांमार में सेना के सत्ता हथियाने के बाद अब सेना को मजबूती देने में कई विदेशी कंपनियों की भूमिका पर एक बार फिर चर्चा हो रही है। रविवार रात सेना ने नव निर्वाचित संसद की बैठक से कुछ घंटे पहले देश में तख्ता पलट दिया। चुनाव में भारी बहुमत से जीती पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की नेता आंग सान सू ची सहित कई बड़े राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया है।
इसकी पश्चिमी देशों ने कड़ी आलोचना की है। अमेरिका ने फिर से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है। ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस घटना के खिलाफ प्रस्ताव भी पेश किया, जिसका अमेरिका और फ्रांस ने समर्थन किया, लेकिन चीन और रूस के विरोध के कारण प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
लेकिन अब म्यांमार की सेना के गुप्त कारोबार में शामिल रही कई ऐसे देशों की कंपनियों की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो खुद को लोकतांत्रिक कहते हैं। सबसे पहले इस मामले का खुलासा अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन- ऐमनेस्टी इंटरनेशनल ने किया था। पिछले सितंबर में उसने एक जांच रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि किस तरह अंतरराष्ट्रीय कारोबारी घरानों ने म्यांमार की सेना को धन उपलब्ध कराया।
उस रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार की एक गुप्त कंपनी समूह का संबंध अंतरराष्ट्रीय कारोबारियों से है। ये कंपनी समूह सेना को धन देता है। सेना की जिन इकाइयों को उसने धन मुहैया कराया, उनमें रखाइन प्रांत की यूनिट भी है। इस इकाई पर रोहिंग्या मुसलमानों के मानव अधिकारों के घोर हनन और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करने के आरोप है।
एमनेस्टी ने लीक हुए दस्तावेजों के हवाले से बताया था कि इस गुप्त कंपनी का नाम म्यांमार इकॉनमिक होल्डिंग्स लिमिटेड (एमईएचएल) है। ये कंपनी समूह खनन, बीयर उत्पादन, तंबाकू, वस्त्र उत्पादन और बैंकिंग सेक्टर में सक्रिय है। इस कंपनी के समूह का संबंध आठ स्थानीय और विदेशी उद्योग घरानों से है। उनमें जापान की बीयर उत्पादक कंपनी किरिन और दक्षिण कोरिया की कंपनियां पोस्को, इनो ग्रुप और पैन पैसिफिक ग्रुप शामिल हैं।
लीक हुए दस्तावेजों से इस बात का खुलासा हुआ था कि दशकों तक देश पर शासन करने वाली सेना ने किस तरह खुद को वित्तीय रूप से स्वायत्त बनाए रखा। यानी वह अपने वित्तीय संसाधानों के लिए सिर्फ सरकारी बजट से आने वाले धन पर निर्भर नहीं रही। इस कारण वह अपने संसाधन, गतिविधियों और खर्च के ऑडिट से बची रही। एमईएचएल के दस्तावेजों से जाहिर हुआ था कि सेना की अनेक इकाइयों की इस कंपनी समूह में शेयर होल्डिंग है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा था कि उसने जो तथ्य सामने रखे, उससे मानव अधिकारों के उल्लंघनों के लिए म्यांमार की सेना के साथ- साथ एमएचईएल और उसके देसी और विदेशी पार्टनर्स की भी जवाबदेही बनती है। एमनेस्टी ने कहा कि इन कंपनियों ने जो मुनाफा कमाया, उसका लाभांश सभी शेयर होल्डरों में बंटा, जिसमें सेना की इकाइयां भी हैं। इस खुलासे के बाद एमनेस्टी ने एमईएचएल और उसकी तमाम पार्टनर कंपनियों को पत्र लिख कर कुछ सवालों से जवाब मांगे।
तब जापानी कंपनी किरिन होल्डिंग्स ने कहा था कि वह ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या एमईएचएल के साथ उसके साझा उद्यम का इस्तेमाल सैनिक मकसदों से किया गया। इस कंपनी के प्रवक्ता ने एक ब्रिटिश अखबार से कहा था कि उसने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और अपनी सलाहकार वित्तीय कंपनी डिलॉइट से इसका स्वतंत्र मूल्यांकन करने को कहा है।
दक्षिण कोरियाई कंपनी ने पोस्को ने कहा कि उसने एमईएचएल को सिर्फ एक बार 2017 में लाभांश का भुगतान किया था। उसके पहले और बाद में कोई भुगतान नहीं किया गया। पोस्को ने कहा कि उसने एमईएचएल से अगस्त 2020 में पुष्टि करने को कहा था कि उसे हुए सभी भुगतानों का इस्तेमाल सिर्फ एमईएचल के मूल कारोबारी मकसदों के लिए किया गया।
लेकिन कंपनी समूह ने ऐसी कोई पुष्टि नहीं की। एक अन्य दक्षिण कोरियाई कंपनी पैन पैसिफिक ने बताया कि उसकी कोशिश के बावजूद एमईएचएल ने इस बारे में कोई सूचना नहीं दी कि वह उसने नैतिक जवाबदेही के पालन के लिए क्या कदम उठाए हैँ। इसके बाद उस कंपनी समूह के पैन पैसिफिक ने अपना संबंध तोड़ लिया।
बांग्लादेश के अखबार द ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक जिस गोपनीय शेयर होल्डर रिपोर्ट के आधार पर एमनेस्टी ने ये रिपोर्ट तैयार की, वह उसे म्यांमार के एक सिविल सोसायटी संगठन- जस्टिस फॉर म्यांमार ने मुहैया कराई थी। म्यांमार की सेना ने तब इस खबर को फेक न्यूज बताया था। लेकिन अब देश में बहुत से लोग म्यांमार में लोकतंत्र के फिर खात्मे के बाद सेना को मजबूती देने वाली देशी और विदेशी कंपनियों की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
विस्तार
म्यांमार में सेना के सत्ता हथियाने के बाद अब सेना को मजबूती देने में कई विदेशी कंपनियों की भूमिका पर एक बार फिर चर्चा हो रही है। रविवार रात सेना ने नव निर्वाचित संसद की बैठक से कुछ घंटे पहले देश में तख्ता पलट दिया। चुनाव में भारी बहुमत से जीती पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की नेता आंग सान सू ची सहित कई बड़े राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया है।
इसकी पश्चिमी देशों ने कड़ी आलोचना की है। अमेरिका ने फिर से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है। ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस घटना के खिलाफ प्रस्ताव भी पेश किया, जिसका अमेरिका और फ्रांस ने समर्थन किया, लेकिन चीन और रूस के विरोध के कारण प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
लेकिन अब म्यांमार की सेना के गुप्त कारोबार में शामिल रही कई ऐसे देशों की कंपनियों की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो खुद को लोकतांत्रिक कहते हैं। सबसे पहले इस मामले का खुलासा अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन- ऐमनेस्टी इंटरनेशनल ने किया था। पिछले सितंबर में उसने एक जांच रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि किस तरह अंतरराष्ट्रीय कारोबारी घरानों ने म्यांमार की सेना को धन उपलब्ध कराया।
उस रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार की एक गुप्त कंपनी समूह का संबंध अंतरराष्ट्रीय कारोबारियों से है। ये कंपनी समूह सेना को धन देता है। सेना की जिन इकाइयों को उसने धन मुहैया कराया, उनमें रखाइन प्रांत की यूनिट भी है। इस इकाई पर रोहिंग्या मुसलमानों के मानव अधिकारों के घोर हनन और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करने के आरोप है।
एमनेस्टी ने लीक हुए दस्तावेजों के हवाले से बताया था कि इस गुप्त कंपनी का नाम म्यांमार इकॉनमिक होल्डिंग्स लिमिटेड (एमईएचएल) है। ये कंपनी समूह खनन, बीयर उत्पादन, तंबाकू, वस्त्र उत्पादन और बैंकिंग सेक्टर में सक्रिय है। इस कंपनी के समूह का संबंध आठ स्थानीय और विदेशी उद्योग घरानों से है। उनमें जापान की बीयर उत्पादक कंपनी किरिन और दक्षिण कोरिया की कंपनियां पोस्को, इनो ग्रुप और पैन पैसिफिक ग्रुप शामिल हैं।
लीक हुए दस्तावेजों से इस बात का खुलासा हुआ था कि दशकों तक देश पर शासन करने वाली सेना ने किस तरह खुद को वित्तीय रूप से स्वायत्त बनाए रखा। यानी वह अपने वित्तीय संसाधानों के लिए सिर्फ सरकारी बजट से आने वाले धन पर निर्भर नहीं रही। इस कारण वह अपने संसाधन, गतिविधियों और खर्च के ऑडिट से बची रही। एमईएचएल के दस्तावेजों से जाहिर हुआ था कि सेना की अनेक इकाइयों की इस कंपनी समूह में शेयर होल्डिंग है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा था कि उसने जो तथ्य सामने रखे, उससे मानव अधिकारों के उल्लंघनों के लिए म्यांमार की सेना के साथ- साथ एमएचईएल और उसके देसी और विदेशी पार्टनर्स की भी जवाबदेही बनती है। एमनेस्टी ने कहा कि इन कंपनियों ने जो मुनाफा कमाया, उसका लाभांश सभी शेयर होल्डरों में बंटा, जिसमें सेना की इकाइयां भी हैं। इस खुलासे के बाद एमनेस्टी ने एमईएचएल और उसकी तमाम पार्टनर कंपनियों को पत्र लिख कर कुछ सवालों से जवाब मांगे।
तब जापानी कंपनी किरिन होल्डिंग्स ने कहा था कि वह ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या एमईएचएल के साथ उसके साझा उद्यम का इस्तेमाल सैनिक मकसदों से किया गया। इस कंपनी के प्रवक्ता ने एक ब्रिटिश अखबार से कहा था कि उसने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और अपनी सलाहकार वित्तीय कंपनी डिलॉइट से इसका स्वतंत्र मूल्यांकन करने को कहा है।
दक्षिण कोरियाई कंपनी ने पोस्को ने कहा कि उसने एमईएचएल को सिर्फ एक बार 2017 में लाभांश का भुगतान किया था। उसके पहले और बाद में कोई भुगतान नहीं किया गया। पोस्को ने कहा कि उसने एमईएचएल से अगस्त 2020 में पुष्टि करने को कहा था कि उसे हुए सभी भुगतानों का इस्तेमाल सिर्फ एमईएचल के मूल कारोबारी मकसदों के लिए किया गया।
लेकिन कंपनी समूह ने ऐसी कोई पुष्टि नहीं की। एक अन्य दक्षिण कोरियाई कंपनी पैन पैसिफिक ने बताया कि उसकी कोशिश के बावजूद एमईएचएल ने इस बारे में कोई सूचना नहीं दी कि वह उसने नैतिक जवाबदेही के पालन के लिए क्या कदम उठाए हैँ। इसके बाद उस कंपनी समूह के पैन पैसिफिक ने अपना संबंध तोड़ लिया।
बांग्लादेश के अखबार द ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक जिस गोपनीय शेयर होल्डर रिपोर्ट के आधार पर एमनेस्टी ने ये रिपोर्ट तैयार की, वह उसे म्यांमार के एक सिविल सोसायटी संगठन- जस्टिस फॉर म्यांमार ने मुहैया कराई थी। म्यांमार की सेना ने तब इस खबर को फेक न्यूज बताया था। लेकिन अब देश में बहुत से लोग म्यांमार में लोकतंत्र के फिर खात्मे के बाद सेना को मजबूती देने वाली देशी और विदेशी कंपनियों की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं।