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The ongoing trade war between the US and China did not help in increasing investment in the US
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अध्ययन रिपोर्ट में दावा: चीन के खिलाफ फेल हो गया अमेरिकी ट्रेड वॉर, भारी भरकम शुल्क लगाने का भी नहीं मिला कोई फायदा
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांगकांग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 25 Sep 2021 04:43 PM IST
सार
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अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि अमेरिकी कार्रवाई के बावजूद पिछले साल चीन में विदेशी निवेश 144.4 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। 2018 में चीन में अमेरिकी निवेश से चल रहीं 46 फीसदी सहयोगी कंपनियां बंद हो गईं। लेकिन इसके पीछे अमेरिका में लगाए शुल्कों की भूमिका सिर्फ एक प्रतिशत रही...
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध से अमेरिका में निवेश बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिली। इसके तहत अमेरिका में जो कदम उठाए गए, उनकी वजह से अमेरिकी कंपनियों ने चीन में अपना कारोबार बंद नहीं किया, न ही उन्होंने अमेरिका में अपना निवेश बढ़ाया। ये बात दो अनुसंधानकर्ताओं- सामंथा वॉर्तेर्म्स और जियाकुल जैक झांग ने अपने अध्ययन के आधार पर कही है। उनकी अध्ययन रिपोर्ट एसएसआरएन वेब प्लैटफॉर्म पर प्रकाशित हुआ है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिका ने चीन के खिलाफ शुरू किए गए व्यापार युद्ध के तहत 2018 के मध्य में चीन में निर्मित वस्तुओं पर अरबों डॉलर के शुल्क लगा दिए। अमेरिका का मकसद चीनी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ यह भी था कि अमेरिकी कंपनियां चीन में अपना पैसा लगाने को लेकर हतोत्साहित हों और वे वापस अमेरिका में निवेश करें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उधर चीन की जिन व्यापार नीतियों से नाराज होकर अमेरिका ने ये कदम उठाया, चीन ने उन्हें नहीं बदला। उलटे चीन ने भी कुछ जवाबी कदम उठाए।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि दोनों तरफ से बरती गई सख्ती के बावजूद दोनों देशों की कंपनियों के बीच करीबी तालमेल बना हुआ है। अमेरिकी कार्रवाई के बावजूद पिछले साल चीन में विदेशी निवेश 144.4 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि 2018 में चीन में अमेरिकी निवेश से चल रहीं 46 फीसदी सहयोगी कंपनियां बंद हो गईं। लेकिन इसके पीछे अमेरिका में लगाए शुल्कों की भूमिका सिर्फ एक प्रतिशत रही।
अनुसंधानकर्ताओं में एक वॉर्थेर्म्स यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में प्रोफेसर हैं। झांग अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कनसास में पढ़ाते हैं। उन्होंने कहा है- ‘हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की कंपनियां देशभक्ति की भावना से चीन से बाहर चली जाएंगी, इसकी संभावना नहीं है।’
अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये अध्ययन रिपोर्ट उस समय आई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन चीन के प्रति अमेरिकी नीति की व्यापक समीक्षा कर रहे हैं। इसके तहत डोनाल्ड ट्रंप के दौर में लगाए गए शुल्कों की उपयोगिता की भी समीक्षा की जा रही है।
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने कुछ समय पहले कहा था कि अमेरिका ने जो नए शुल्क लगाए, वे असल में अमेरिकी उपभोक्ताओं पर लगाए गए टैक्स साबित हुए। इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने जनवरी 2020 में चीन के साथ जिस व्यापार समझौते पर दस्तखत किए थे, उससे अमेरिका-चीन व्यापार के बीच मौजूद बुनियादी मुद्दों का हल नहीं निकला। ट्रंप प्रशासन के कदमों का नतीजा यह हुआ कि चीन में काम कर रही अमेरिका की 500 बड़ी कंपनियों में से 63 फीसदी पर उसका बुरा असर पड़ा। इसके बावजूद सिर्फ सात फीसदी कंपनियों ने चीन में अपना कामकाज बंद किया।
वॉर्थेर्म्स और झांग ने कहा है कि ट्रेड वॉर का बुरा असर छोटी कंपनियों पर पड़ा। उनमें भी खास कर उन कंपनियों पर जिन्होंने चीन में नया कारोबार शुरू किया था। इसके पहले अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना ने एक सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें अमेरिका में कारोबार कर रही 47 फीसदी अमेरिकी कंपनियों ने कहा था कि उनका सर्वोच्च प्राथमिकता यह है कि अमेरिका ने जो शुल्क लगाए थे, उन्हें वापस कराया जाए।
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